लक्जमबर्ग दुनिया से सबसे अमीर देशों में से एक है. यहां रहने वाले लोग बेहद परेशान हैं. रहन-सहन का स्तर, यहां इतना बढ़ गया है कि लोगों का कहना मुश्किल हो गया है. न तो यहां रेंट देना आसान है, न ही घर खरीदना. लक्जमबर्ग के निवासी यूरोपियन यूनियन के सबसे धनाढ्य लोगों में शुमार हैं फिर भी अपने लिए घर खरीद पाना, उनके लिए आसान नहीं हैं. लोग किराए से बचने के लिए दूसरे देश में चक्कर काटते हैं. लक्जमबर्ग में रहने वाले लगभग आधे लोग देश के नागरिक नहीं हैं. यहां घर का किराया इतना महंगा है कि लोग अफोर्ड नहीं कर पाते हैं. मध्यम वर्गीय लोगों के लिए वहां रह पाना बेहद मुश्किल हो गया है.
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ग्रैंड डची में रहने वाले लोगों के लिए सबसे बड़ी चुनौती रहने की है. यहां करीब 6,60,000 लोग रहते हैं, जिनके लिए लक्जमबर्ग में टिक पाना चुनौती हो गया है. हालात ऐसे हैं कि लोग यहां सिर्फ किराए का घर लेने के काबिल बनने में पूरी उम्र गुजार देते हैं. यह अमेरिका के सबसे छोटे राज्य रोड आइलैंड से भी छोटा है लेकिन यहां की स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग इतना बढ़ गया है कि लोगों का रहना मुश्किल हो गया है.
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एक शिक्षिका और तीन बच्चों की मां पास्केल जौरौ को एक घर रेंट पर लेने के लिए पांच साल इंतजार करना पड़ा. एक प्राइवेट इलाके में दो कमरों का एक अपार्टमेंट किराए पर लेने में ही करीब 2,000 यूरो खर्च करने पड़ते हैं. अगर आप सिर्फ एक नौकरी कर रहे हैं और आय का अतिरिक्त साधन नहीं है तो यहां रहना आपके लिए आसान नहीं है. किफायती आवास दुर्लभ होता जा रहा है. युवाओं और सिंगल पेरेंट्स वाले परिवारों के लिए यहां रहना बेहद मुश्किल है.
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हाउसिंग ऑब्जर्वेटरी के एक शोधकर्ता एंटोनी पैकौड ने कहा है कि लक्जमबर्ग के लोग इतने मजबूर हैं कि वे वहां रहना अफोर्ड नहीं कर सकते हैं. उन्हें जिंदगी चलाने के लिए बेल्जियम या फ्रांस जाना पड़ता है. वे हर दिन अपने देश की सरहद लांघते हैं और इन देशों में रात बिताते हैं. इन देशों में संपत्ति की कीमतें कम हैं और रहन सहन का स्तर उस हद तक नहीं है, जैसा लक्जमबर्ग में है.
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लक्जमबर्ग अपने फाइनेंशियल सर्विस के लिए दुनियाभर में जाना जाता है. इस देश की अर्थव्यवस्था बेहद समृद्ध है. यह एक चिंताजनक स्थिति है. यूरोपीय यूनियन की स्टैटिक्स एजेंसी के आकंलन के मुताबकि लक्जमबर्ग में एक कर्मचारी की औसत कमाई साल 2022 में सालाना 47,000 यूरो थी. यह दूसरे देशों की तुलना में कहीं ज्यादा है लेकिन लोग फिर भी इस देश में टिक नहीं पा रहे हैं.
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लक्जमबर्ग की राजधानी में बने फ्लैट इतने महंगे हैं कि लोग अफोर्ड नहीं कर सकते हैं. इस शहर में बने फ्लैट 13,000 यूरो प्रति वर्ग मीटर मिल रहे हैं. पुराने फ्लैट 10,700 यूरो में बिकते हैं. एक घर की औसत लागत 1.5 मिलियन यूरो है. मतलब हर कोई करोड़पति है लेकिन घर खरीदने की हैसियत किसी की नहीं है.
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जून 2022 और जून 2023 के बीच किराए में 6.7 प्रतिशत इजाफा हुआ है. यह उस अवधि में 3.4 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर से कहीं ज्यादा है. लक्जमबर्ग यूनिवर्सिटी के एक राजनीतिक विश्लेषक फिलिप पोइरियर ने कहा है कि विधायी चुनावों में आवास अब इतना बड़ा सवाल बन गया है कि जो हर सवाल पर भारी है. वहां विकास नहीं, महंगाई मुद्दा है.
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लक्जमबर्ग में जमीनें कम हैं. घर की किल्लत है. खाली जमीनें नजर नहीं आती हैं. किराया इतना महंगा है कि लोगों के लिए उसे दे पाना असंभव होता जा रहा है. ये चुनावी मुद्दे हैं लेकिन इनका कोई हल नहीं है. प्रधान मंत्री जेवियर बेटटेल की लिबरल पार्टी ने आवास के लिए एक सुपर-मिनिस्ट्री बनाने का वादा किया है. इसका फंडा है कि ये खाली संपत्तियों पर अधिक कर लगाना चाहती है लेकिन सामाजिक आवास में निवेश करना चाहती है.
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समाजवादी नेता पॉलेट लेनार्ट और मौजूदा गठबंधन सरकार में स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि ऐसे घर बनाएं जाएं जहां खर्च कम हो. सरकार, वहीं निवेश करे. लक्जमबर्ग में हेरिटेज टैक्स लिया नहीं जा रहा है, जिसकी वजह से भी सरकार सही दिशा में खर्च नहीं कर रही है. उन्होंने कहा है कि लक्जमबर्ग में नागरिक आबादी का 0.5 प्रतिशत, या 3,000 लोगों के पास ऐसी जमीनें हैं जहां वे निर्माण करा सकते हैं. ये मालिक अपनी जमीन को यथासंभव लंबे समय तक अपने पास रखे हुए हैं क्योंकि कीमतें बढ़ रही हैं.
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लक्जमबर्ग में कमाई के अनगिनत साधन हैं. यहां विदेशी कामगारों की कोई कमी नहीं है. कंस्ट्रक्शन की संभावनाएं हैं लेकिन लक्जमबर्ग में रहने वाले आधे लोग देश के नागरिक ही नहीं हैं. लक्जमबर्ग में रहने वाला एक तबका ऐसा भी है, जो विदेश से आकर बसा है. उनके रहने का तरीका ऐसा है जो बेहद खर्चीला नहीं है. लक्जमबर्ग में या तो हाई क्लास रह सकता है, या लोअर क्लास. मध्यमवर्गीय लोगों के लिए इस शहर में रहना मुश्किल हो गया है.