स्वास्तिक का इस्तेमाल भारत ही नहीं दुनिया की कई सभ्यताओं में अलग-अलग तौर पर हुआ है. कभी स्वास्तिक पट्टी हिटलर की सेना की बांह पर भी नज़र आता था. स्वास्तिक से जुड़ी कई मान्यताएं हैं और कैसे हिटलर ने इस चिह्न को अपनाया, जानें इससे जुड़े सभी ऐतिहासिक और दिलचस्प पहलू.
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हिंदू धर्म में स्वास्तिक को शुभ चिह्न माना जाता है और रंगोली, पूजा-पाठ की जगह पर इसे बनाया जाता है. संस्कृत में स्वास्तिक का अर्थ सौभाग्य या शुभ होता है. इसी से मिलते-जुलते चिह्नों की मान्यता जापान और यूनान में भी है. यूनान में इसे लाल या सिंदूरी रंग से स्वास्तिक के जैसा ही चिह्न बनाया जाता है जिसे ओरेनेस कहते हैं. जापान और चीन में भी धार्मिक स्थलों पर चिह्न बनाने की परंपरा रही है.
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हिटलर ने नाजी सेना के लिए स्वास्तिक चिह्न को अपनाया था. खुद हिटलर अपनी बांह पर यह चिह्न अक्सर लगाता था. पश्चिम के इतिहासकारों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि स्वास्तिक की पहचान हमेशा फासीवाद से ही थी. स्टीवन हेलर ने ग्राफिक डिजाइन पर 'द स्वास्तिकः सिम्बल बियॉन्ड रिडेम्पशन' नाम से किताब लिखी है. इसमें उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुए लिखा है कि यूरोप और अमेरिका में 1930 से पहले तक स्वास्तिक प्रेम और शुभ कार्यों के संकेत का चिह्न था. नस्लभेदी हिटलर ने 1930 के दशक में इस चिह्न को अपनी सेना के लिए अपनाया था. हिटलर खुद को शुद्ध आर्य नस्ल का मानता था और वह यहूदियों से बेहद नफरत करता था. नाजी सेना के प्रतीक चिह्न बनने के बाद से स्वास्तिक को फासीवाद से जोड़कर देखा जाने लगा.
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कनाडा में इन दिनों अनिवार्य वैक्सीन के विरोध में हजारों ट्रक ड्राइवर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं. इन्हीं में से कुछ लोगों ने प्रदर्शन के दौरान स्वास्तिक झंडे भी दिखाए थे. 1930 के बाद के दौर में स्वास्तिक को फासीवाद के प्रतीक के तौर पर पश्चिमी देशों में देखा जाने लगा है. कनाडा की सरकार का कहना है कि कनाडा लोकतांत्रिक मूल्यों पर चलने वाला देश है और यहां फासीवाद की आहट या हिमायत नहीं बर्दाश्त की जा सकती है. भारत ने धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक पहचान के लिए संवेदनशील मानकर इससे जुड़ी अपनी चिंताएं साझा की हैं.
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हिटलर की नाजी सेना के इस्तेमाल की वजह से स्वास्तिक के साथ फासीवाद जुड़ गया था. आज भी स्वास्तिक को शुभ शगुन ही माना जाता है. अमेरिका की बड़ी कंपनियों में से एक कोका कोला भी अपने बॉटल पर स्वास्तिक चिह्न का इस्तेमाल कर चुकी है. पश्चिम में वास्तुकला, विज्ञापन और प्रॉडक्ट ने कई बार डिजाइन के तौर पर स्वास्तिक इस्तेमाल किया है. कोका कोला ने दूसरे विश्व युद्ध से पहले अपनी बॉटल पर स्वास्तिक चिह्न का इस्तेमाल खरीदारों को रिझाने के लिए किया था.
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स्वास्तिक की पहचान फासीवाद से हिटलर की वजह से जुड़ी और जर्मनी ने इसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद अपने देश में बैन कर दिया था. 2007 में जर्मनी ने वैश्विक बैन की कोशिश भी की थी लेकिन कामयाबी नहीं मिली थी. स्वास्तिक का इतिहास दूसरे विश्व युद्ध से भी हजारों साल पहले से है. यूक्रेन के म्यूजियमों में स्वास्तिक से मिलते चिह्न हैं. कोपेनहेगन में स्वास्तिक की उसी पुरानी पहचान को कायम करने के लिए एक कैंपेन चलाया जा चुका है. यूरोप में बहुत से कलाकार और टैटू आर्टिस्ट स्वास्तिक बना चुके हैं.