12 फरवरी को दुनिया भर में मानवतावादी पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की जयंती मनाते हैं. लिंकन को उनके मानवतावादी फैसले, उदार पहचान और मानवीय गुणों के लिए सालों बाद भी याद किया जाता है. अमेरिकी राष्ट्रपति की लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि अमेरिका में कई मेमोरियल, म्यूजियम उनके नाम पर हैं. अमेरिका ही नहीं विश्व के कई बड़े शहरों में इस महान विचारक की मूर्तियां लगाई गई हैं.
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अब्राहम लिंकन को लोग आज जितने प्यार और सम्मान से याद करते हैं उनकी पत्नी को उसके उलट कारणों से याद किया जाता है. लिंकन अपनी पत्नी की कलह से परेशा रहते थे इसलिए ज्यादातर वक्त दफ्तर में ही बिताते थे. उनके जीवनीकारों का कहना है कि लिंकन की पत्नी मैरी महत्वाकांक्षी और लालची किस्म की महिला थीं. व्हाइट हाउस से जाते हुए वह अपने साथ कई कीमती चीजें लेकर चली गई थीं.
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राष्ट्रपति बनने से पहले लिंकन ने स्थानीय स्तर पर कई चुनाव लड़े थे और सब हारे थे. रिपब्लिकन पार्टी ने जब उन्हें राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया तो विरोधियों ही नहीं खुद उनके करीबियों ने उन्हें हल्के में लिया था. लिंकन की भाषण शैली राजनीतिज्ञों जैसी नहीं थी. उनके भाषणों में मानवीयता और करुणा का पुट होता था. यही वजह है कि उनके संघर्ष, सादगी और करुणा ने लोगों के दिलों को छुआ था और वह राष्ट्रपति बन गए थे. उन्होंने एक जनवरी 1963 के दिन दास प्रथा के खिलाफ राष्ट्रपति के तौर पर कानून पर हस्ताक्षर किए थे. दासता के बारे में उन्होंने कहा था कि अगर दासता गलत नहीं है तो दुनिया में कुछ भी गलत नहीं है.
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अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र की जो परिभाषा दी थी आज वह पूरे विश्व में स्वीकार कर ली गई है. लिंकन ने लोकतंत्र के लिए कहा था, 'जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन.' आज पूरी दुनिया में लोकतंत्र के लिए इस परिभाषा का इस्तेमाल किया जाता है. दुनिया के कई देशों में हुए लोकतंत्र बहाली के लिए हुए आंदोलनों में इसे सूत्र वाक्य के तौर पर शामिल किया गया है.
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लिंकन की महानता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि उनकी हत्या की खबर सुनकर उनके प्रबल विरोधी भी रो पड़े थे. अपने जीवन में उन्होंने विरोधियों ही नहीं अपनों और करीबियों से बहुत कठोर वचन सुने थे. दास प्रथा खत्म करने की वजह से उनके करीबी अधिकारी और मंत्री तक उन पर हमलावर थे. अपने कार्यकाल में उन्होंने ऐसे फैसले लिए और बतौर इंसान उनके व्यक्तित्व के चमत्कारी गुणों ने उन्हें हर दिल अजीज बना दिया था. यह उनका करिश्माई व्यक्तित्व ही था कि जब उनकी हत्या हुई तो उनके धुर विरोधी भी रोए थे.
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अब्राहम लिंकन का जीवन बहुत मुश्किलों से भरा था. उन्होंने बहुत गरीबी में जिंदगी जी थी और इस वजह से शिक्षा पूरी नहीं कर पाए थे. यही वजह है कि राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने अपनी सादगी नहीं छोड़ी थी. कहा जाता है कि बतौर राष्ट्रपति भी वह अपने दैनिक कार्य खुद ही करते थे. उन्होंने अपने बेटे के शिक्षकों को पत्र लिखकर खास ताकीद की थी कि उसे राष्ट्रपति के बेटे के तौर पर नहीं बल्कि आम छात्र समझा जाए और वैसा ही बर्ताव भी किया जाए.