भारत-पाकिस्तान विवाद के बीच पाकिस्तान को आईएमएफ की तरफ से 2.4 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज को मंजूरी दे दी गई. दोनों देशों के बीच जब युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई थी तब ये लोन पास होना कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है. लेकिन पाकिस्तान को ये लोन मिलने के बाद भी वहां की स्थिति में कुछ खास बदलाव देखने को नहीं मिलने वाला है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था काफी लंबे समय से गर्त में चल रही है. देश पर आर्थिक तंगी के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि IMF (International Monetary Fund) से भी पाकिस्तान की कुछ भी भला नहीं होने वाला हैं.
विकास की रफ्तार में लगा ब्रेक
पाकिस्तान की विकास की रफ्तार में ब्रेक लगने का कारण उनकी कमजोर नीतियां हो सकती है. हाल ही में हुई बढ़ोतरी के बावजूद भी, पाकिस्तान की आर्थिक संभावनाओं पर चुनौतियां हावी हैं. पिछले दशकों में दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के उभरते बाजार और विकासशील देशों (EMDC) की तुलना में पाकिस्तान के जीवन स्तर में गिरावट आई है. पाकिस्तान की फिजिकल पॉलिसी की कमजोरी ने बार-बार फाइनेंसिंग की जरूरतों को बढ़ावा दिया हैं. अब पाकिस्तान को इस स्थिति से उबरने में कई साल लग सकते हैं.
वैश्विक व्यापार और जनसंख्या बढोत्तरी बड़ा कारण
वैश्विक व्यापार में पाकिस्तान काफी कमजोर रहा है. पिछले 2 दशकों से तो पाकिस्तान ने वैश्विक व्यापार बढ़ाने की जगह बिल्कुल न करने जैसा काम किया है. 2010 के बाद से पाकिस्तान ने दूसरे देशों में बिक्री को एकदम ही बंद सा कर दिया है या कह सकते कि बिल्कुल न के बराबर कर दिया है. पाकिस्तान की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव पड़ते जा रहा है. इससे सरकार की वित्तीय स्थिति और अधिक कमजोर होती जा रही है और विकास परियोजनाओं पर निवेश करना कठिन होते जा रहा है.
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