डीएनए हिंदी: रूस ने यूक्रेन के साथ जारी युद्ध के बीच में एक और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट लॉन्च किया है. 47 साल बाद रूस ने अपना लैंडर चांद पर भेजने के लिए लॉन्च किया है. भारत के चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के लॉन्च के एक महीने बाद रूस ने अपना प्रोजेक्ट लॉन्च किया है. हालांकि माना जा रहा है कि यह भारत के चंद्रयान-3 से पहले ही चांद पर लैंड कर जाएगा. लॉन्चिंग सोयुज 2.1बी (Soyuz 2.1b) रॉकेट से किया गया. इसे लूना-ग्लोब (Luna-Glob) मिशन भी कहते हैं. यूक्रेन पर हमले के बाद यह रूस का सबसे बड़ा स्पेस मिशन है. माना जा रहा है कि रूस इस मिशन के जरिए स्पेस क्षेत्र में अपनी ताकत और महत्वाकांक्षा का संदेश पूरी दुनिया को देना चाहता है.
वैश्विक राजनीति में धमक दिखाने की कोशिश
बता दें कि पिछले डेढ़ साल से रूस पर पूरी दुनिया के कई देशों ने प्रतिबंध लगाया है, लेकिन पुतिन वैश्विक राजनीति में अपनी धमक दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं. रूस के इस मिशन की सफलता पर बधाई देते हुए इसरो ने ट्वीट किया है. बता दें कि इस मिशन की 1990 में शुरुआत हुई थी और रूस ने उस वक्त इसरो से मदद मांगी थी. हालांकि बात नहीं बन सकी और दोनों देशों की स्पेस एजेंसी साथ में इस मिशन को पूर नहीं कर सकीं.
Congratulations, Roscosmos on the successful launch of Luna-25 💐
— ISRO (@isro) August 11, 2023
Wonderful to have another meeting point in our space journies
Wishes for
🇮🇳Chandrayaan-3 &
🇷🇺Luna-25
missions to achieve their goals.
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रूस की ओर से मिशन के लॉन्च पर कहा गया है कि हम किसी देश के साथ कोई प्रतियोगिता नहीं कर रहे हैं. भारत के साथ हमारी कोई प्रतियोगिता नहीं है. हम अपने स्पेस मिशन को मजबूती देना चाहते हैं. हमारा लैंडर अलग क्षेत्रों की परिक्रमा करेगा और अलग जगह पर लैंड करेगा. यूक्रेन पर हमले के बाद भी भारत और रूस के बीच संबंध और रणनीतिक साझेदारी पहले की तरह ही मजबूत है. दोनों देशों के बीच व्यापारिक और सैन्य साझेदारियों पर कोई असर नहीं पड़ा है.
चांद की सतह पर क्या काम करेगा Luna-25
लूना-25 चंद्रमा की सतह पर साल भर काम करेगा. इसका वजन 1.8 टन है. इसमें 31 KG के वैज्ञानिक यंत्र हैं. इसे खास तौर पर चांद पर मिलने वाली मिट्टी और दूसरे अवशेषों के परीक्षण के इरादे से तैयार किया गया है. इसमें एक खास यंत्र लगा है जो सतह पर की मिट्टी और पत्थर जमा करेगा. रूस के वैज्ञानिक इन पत्थरों और मिट्टी का परीक्षण करेंगे. साथ ही वहां पर पानी की संभावनाओं का भी आकलन करेंगे. इस यंत्र के जरिए इकट्ठा किए सैंपल सेफ्रोजन वाटर यानी जमे हुए पानी की खोज की जा सकेगी.
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भारत के चंद्रयान की सफलता के बाद रूस भी एक्टिव, 47 साल बाद मिशन मून की आई याद