डीएनए हिंदी: Nepal News- नेपाल में नई सरकार गठन के महज दो महीने बाद फिर से राजनीतिक संकट पैदा हो गया है. पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली (KP Sharma Oli) की पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (CPN-UML) ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. पार्टी के मंत्रियों ने अपना इस्तीफा भी सौंप दिया है. इससे प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड (Nepal Prime Minister Pushpa Kamal Dahal Prachanda) की सरकार गिरना तया हो गया है. सरकार से डिप्टी पीएम और गृह मंत्री रबि लामिछाने (Rabi Lamichhane) की राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (RSP) पहले ही समर्थन वापस ले चुकी है. ऐसे में प्रचंड के पास सरकार चलाने के लिए पर्याप्त सांसद बाकी नहीं बचे हैं. कुछ लोग ओली के इस फैसले को उनका प्रचंड के साथ उस बात का बदला बता रहे हैं, जिसके चलते दो साल पहले ओली की सरकार गिर गई थी.
सुबह पार्टी सेक्रेटेरिएट मीटिंग में लिया फैसला
ANI ने CPN-UML के उपाध्यक्ष बिष्णु पौडेल के हवाले से सोमवार सुबह बताया था कि पार्टी ने सरकार से समर्थन वापसी का फैसला लिया है. उन्होंने बताया कि सुबह पार्टी सेक्रेटरिएट मीटिंग आयोजित की गई, जिसमें समर्थन वापसी का फैसला लिया गया. इसके बाद शाम 4 बजे के करीब सरकार में पार्टी की तरफ से तैनात सभी मंत्रियों ने अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री प्रचंड को भेज दिया.
Nepal | CPN-UML has decided to withdraw its support and walk out of the Pushpa Kamal Dahal government: Bishnu Paudel, Deputy chairman of the party
— ANI (@ANI) February 27, 2023
A Secretariat meeting was convened earlier this morning which made the decisions.
(Source: UML secretariat) pic.twitter.com/MvjMvmhRDO
प्रचंड का खराब व्यवहार बना कारण!
CPN-UML के उपाध्यक्ष बिष्णु पौडेल ने इस संकट के लिए प्रधानमंत्री प्रचंड को ही जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि पूर्व माओवादी गुरिल्ला कमांडर प्रचंड का व्यवहार अब भी ऐसा ही है. प्रचंड उनकी पार्टी के मंत्रियों के साथ भी अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं. इसी कारण पार्टी ने बहुमत वापस लेने और प्रचंड की सरकार से वॉक आउट करने का निर्णय लिया है.
Nepal | CPN-UML ministers submit their resignations to PM Pushpa Kamal Dahal.
— ANI (@ANI) February 27, 2023
(Pics source: PM Secretariat) https://t.co/by8VtJeQSG pic.twitter.com/QMqP0CfJcw
दो महीने पहले ही बनी थी सरकार
नेपाल में पिछले दो साल से लगातार राजनीतिक संकट बना हुआ है. इसके बाद हुए चुनाव में ओली और प्रचंड की पार्टियों ने कई अन्य दलों के साथ गठबंधन कर सरकार गठित की थी. महज दो महीने पहले ही नेपाली राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने पुष्प कमल दहल प्रचंड को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था. सात दलों के गठबंधन वाली यह सरकार दो महीने भी पूरे नहीं करती दिखाई दे रही है.
महज 32 सीट जीतकर भी पीएम बने थे प्रचंड
प्रचंड जब प्रधानमंत्री बने थे तो उनकी पार्टी ने चुनाव में महज 32 सीट जीती थीं, जबकि ओली की पार्टी के पास 7 पार्टियों के गठबंधन में सबसे ज्यादा 78 सीट थीं. इसके बावजूद डिप्टी पीएम और गृह मंत्री जैसे अहम पद भी राबी लामिछाने की RSP को मिल गए थे, जिसके महज 20 सांसद थे. सरकार में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के 14, जनता समाजवादी पार्टी के 12, जनमत पार्टी के 6 और नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के 4 सांसद थे. इस तरह सरकार के पास कुल 166 सांसदों का समर्थन था. अब सरकार से ओली की CPN-UML और RSP के 98 सांसदों के बाहर निकल जाने के बाद महज 68 सांसद ही बाकी रह गए हैं.
ओली की सरकार गिराई थी प्रचंड ने, अब उन्होंने लिया बदला
दो साल पहले ओली और प्रचंड एक ही पार्टी यानी CPN में थे. उस समय ओली के साथ संबंध बिगड़ने के बाद प्रचंड ने अपने समर्थक सांसदों के साथ अलग होकर नई पार्टी बना ली थी. इसके चलते ओली की सरकार गिर गई थी. माना जा रहा है कि अब ओली ने इसी बात का बदला लिया है. दरअसल दो महीने पहले चुनाव के समय प्रचंड तत्कालीन प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की सरकार के साथ खड़े थे. देउबा उन्हें प्रधानमंत्री पद देने को तैयार नहीं थे. ओली ने इसका लाभ उठाकर प्रचंड को अपने साथ आने का न्योता दिया था. हालांकि अब समर्थन वापसी के बाद माना जा रहा है कि ओली ने इस कदम से एक पंथ दो काज कर लिए हैं. उन्होंने देउबा को सरकार बनाने से रोक दिया और प्रचंड से भी बदला ले लिया है.
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नेपाल में CPN-UML ने समर्थन लिया वापस, सरकार गिरना तय, क्या ओली ने दिया प्रचंड को धोखा?