डीएनए हिंदी: शी जिनपिंग, चीन के इतिहास में दूसरे ऐसे शासक हैं जिन्हें अपने विरोधियों को खामोश करना बेहतर तरीके से आता है. अपने खिलाफ उठ रही हर आवाज को वे दबाने में माहिर हैं, पर जनता की आवाज दबाई नहीं जा सकती है. कितनी भी तानाशाही क्यों न हो, अगर लोगों की रोजी-रोटी पर बन आएगी तो लोग खौफ खाकर घर में बैठेंगे नहीं, सड़कों पर उतरेंगे ही. चीन में यही हो रहा है. जीरो कोविड पॉलिसी के तहत लोगों को अपने-अपने घरों में कैद रहने का आदेश देना, चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी पर भारी पड़ रहा है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC) के नेताओं का सड़कों पर निकलना मुहाल हो गया है क्योंकि उनके खिलाफ जनता आक्रोशित है और सड़क पर उतर आई है.
चीन में सत्ता विरोधी लहर अब सड़कों पर नजर आ रही है. लोगों के हाथों में तख्तियां हैं, सरकार के खिलाफ लिखे श्लोगन हैं, नारेबाजी है और शी जिनपिंग के खिलाफ आक्रोश है. लोग अब चीख-चीखकर कह रहे हैं कि शी जिनपिंग को अब अपना पद छोड़ देना चाहिए, उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि इस पर काबिज रहने के वे हकदार नहीं है.
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कड़कती सर्दी में सड़कों पर लोग, गम, आक्रोश और सत्ता के खिलाफ नफरत
चीन के सारे प्रमुख शहरों में अब प्रदर्शनकारी नवंबर की सर्द रातों में सड़कों पर उतर आए हैं. कड़े कोविड प्रतिबंध लागू हैं लेकिन लोग समूहों में शी जिनपिंग के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. लोगों का यही कहना है कि शी जिनपिंग इस्तीफा दें. हालात ऐसे हैं कि प्रदर्शनकारियों को पुलिस रोक नहीं पा रही है. पुलिस, प्रदर्शनकारियों की आवाज दबाने के लिए उन पर सख्ती दिखा रही है. कुछ लोगों को कारों तक में बांध रखा है. शी जिनपिंग सरकार के खिलाफ अब देश की युवा आबादी भी उतर आई है. बीजिंग और नानजिंग के विश्वविद्यालयों के छात्र भी अब सड़कों पर हैं. छात्रों की एक ही मांग है कि कड़े कोविड प्रतिबंध कम किए जाएं और शी जिनपिंग सत्ता से हट जाएं.
क्या है चीन में सत्ता विरोधी प्रदर्शनों की असली वजह?
चीन के उरुमकी में गुरुवार को लॉकडाउन के दौरान एक अपार्टमेंट में भीषण आग लग गई थी. लोग जलकर मरते रहे लेकिन दमकल की गाड़ियां स्ट्रिक्ट लॉकडाउन की वजह से उन तक नहीं पहुंच सकीं. हादसे के 3 दिन बीत गए हैं लेकिन विरोध प्रदर्शन थमा नहीं है. यहां हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी उमड़े, जिसके बाद करीब 300 लोगों पर पुलिस ने मिर्च का स्प्रे फेंका, जिससे लोग भाग जाएं. चीन ने ऐसी सत्ता विरोधी लहर कभी नहीं देखी है. लोग इन मौतों के पीछे लॉकडाउन के कड़े नियमों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. प्रदर्शनकारी शहर-दर-शहर इकट्ठे हो रहे हैं.
विरोध प्रदर्शनों पर क्या कह रहे हैं उरुमकी के अधिकारी?
उरुमकी में तैनात अधिकारी यह खारिज कर रहे हैं कि मौतें कोविड प्रतिबंधों की वजह से पैदा हुई अव्यवस्था की वजह से हुई है. उन्होंने हादसे पर बस खेद जताया है. पर उनकी नीयत ऐसी नहीं लग रही है कि कोविड प्रतिबंध हटेंगे. शी जिनपिंग 2019 से ही जीरो कोविड पॉलिसी पर बेहद सख्त हैं.
जगह-जगह उठ रही है शी जिनपिंग के इस्तीफे की मांग
उरुमकी में हुई मौतों के लिए जनता शी जिनपिंग को दोषी मांग रही है. शंघाई की सड़कों पर उतरे लोग साफ तौर पर कह रहे हैं कि शी जिनपिंग को अब पद छोड़ देना चाहिए. प्रदर्शनकारी'शी जिनपिंग इस्तीफा दो' और 'कम्युनिस्ट पार्टी पद छोड़ो' जैसे नारे भी दे रहे हैं.
प्रदर्शनकारियों में आक्रोश के साथ-साथ इस बात का दुख भी है कि 10 लोगों की जान चली गई है. उरुमकी में मारे गए लोगों को शंघाई में श्रद्धांजलि दी गई. लोगों ने फूल बिछाए. चीन में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन आसान नहीं है. चीन की पुलिस प्रदर्शनों को लेकर सहिष्णु नहीं है. उन्हें प्रर्दशनों का दमन बाखूबी आता है लेकिन इस बार हालात अलग हैं. शी जिनपिंग के खिलाफ जनता उतरी है, पुलिस लोगों पर अत्याचार भी कर रही है लेकिन आवाज दब नहीं रही है. आक्रोश बढ़ता जा रहा है.
शी जिनपिंग को ले डूबेगी जीरो कोविड पॉलिसी
शी जिनपिंग, माओत्से तुंग के बाद सबसे ताकतवर नेता हैं. पार्टी, अधिकारी से लेकर सेना तक उनका नियंत्रण बहुत सधा है. वे वही नेता हैं जिनके इशारे पर चीन के पूर्व राष्ट्रपति हु जिंताओ को पार्टी की महत्वपूर्ण बैठक के दौरान धक्के मारकर निकाल दिया गया. चीन में कोई उनके खिलाफ आवाज उठाने की सोच भी नहीं सकता. इतने ताकतवर नेता के खिलाफ भी जन आक्रोश अब सड़कों पर उतर आया है. शी जिनपिंग के लिए जनता का यह आक्रोश बेहद नया है. चीन भी ऐसे प्रदर्शनों का अभ्यस्त नहीं है. भीड़ को तितर-बितर करने का साहस अब सुरक्षाबलों में नहीं है क्योंकि जनता बागी हो गई है.
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बागी होने की एक बड़ी वजह है कि लोगों की आजीविका बाधित हो रही है. लोगों की कमाई चौपट हो रही है और घरों में सख्त कोविड नीतियों की वजह से उन्हें कैद होना पड़ रहा है. शी जिनपिंग कांग्रेस मीट के दौरान यह संकल्प दोहरा चुके हैं कि कोविड के खिलाफ उनकी जीरो कोविड नीति टस से मस नहीं होने वाली है. ऐसे में जनता जान चुकी है कि अगर विद्रोह नहीं हुआ तो शी जिनपिंग की मनमानी जारी रहेगी. खुद शी जिनपिंग इस बात से अनजान थे कि अब जनता की जान पर बन आई है और जनता अब थमने वाली नहीं है.
गुस्से और निराशा से भरे हुए हैं प्रदर्शनकारी
शंघाई में उमड़े प्रदर्शनकारी खुश नहीं हैं. सहज स्थिति में वे बाहर नहीं आए हैं. सरकार की नीतियों अब लोगों की जान पर भारी पड़ रही हैं. लोग अपनों से मिल नहीं पा रहे हैं. नौकरियां छूट रही हैं. इन नीतियों की आंच सब पर पड़ी है. चीन के अधिकारी भी बस आका का फरमान मान रहे हैं. उन्हें भी यह बात पता है कि इन नीतियों की वजह से लोगों की मुश्किलें हजारों गुना बढ़ गई हैं. दुनिया जब महामारी से उबरकर सामान्य हो चुकी है, हर जगह लॉकडाउन गुजरे जमाने का शब्द बन गया है तो वहीं चीन कोविड से हैरान-परेशान है. जब लोगों के लिए इन नीतियों को सह पाना असंभव हो गया तो उनका गुस्सा सड़कों पर नजर आने लगा.
नहीं थम रहे विरोध प्रदर्शन, कैसे दमन करेंगे शी जिनपिंग?
सोशल मीडिया पर तमाम ऐसी तस्वीरें, पोस्टर और वीडियो वायरल हो रही हैं, जिनमें लोग आक्रोशित नजर आ रहे हैं. लोग शी जिनपिंग और सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं. कुछ लोगों के हाथों में सफेद तख्तियां हैं, जिनमें शी जिनपिंग के खिलाफ नारे लगे हैं. कुछ लोग सफेद कागज दिखा रहे हैं. शंघाई का ऐसा हाल अब तक किसी ने नहीं देखा था. शी जिनपिंग के कार्यकाल में तो बिलकुल भी नहीं.
Hundreds gathered in #Beijing, #China near Liangma river showing blank paper in hand - a symbol of demands for easing #COVID restrictions.#COVID19 pic.twitter.com/fSFcSEZJoI
— All India Radio News (@airnewsalerts) November 27, 2022
शंघाई की सड़कों पर जिनपिंग ने सुरक्षा अधिकारियों की पूरी पलटन उतार दी है. उन्हें प्रदर्शनकारियों से जूझना पड़ रहा है. लोगों को गाड़ियों में ठूंसा जा रहा है, आवाज दबाने की कोशिश की जा रही है लेकिन लोगों का के गुस्से का गुबार कम नहीं हो रहा है.
लोग पुलिस की गाड़ियों पर बल प्रयोग कर रहे हैं. उनसे धक्का-मुक्की की खबरें भी सामने आ रही हैं. जनता का आक्रोश जायज है इसलिए पुलिस भी बेहद सख्ती से नहीं निपट पा रही है, जैसे अब तक निपटती रही है. बीजिंग, शंघाई, नानजिंग और सिन्हुआ जैसे शहरों में छात्र सड़कों पर उतर आए हैं. ये छात्र मांग कर रहे हैं कि चीन में लोकतंत्र आए, शी जिनपिंग पद से इस्तीफा दें और लोगों को आजादी मिले. चीन में आजादी की मांग पहली बार ऐसे हो रही है.
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जहां से दुनियाभर में फैला कोविड, वहां पर क्या है हाल?
चीन के वुहान शहर की एक लैब से पूरी दुनिया में कोविड वायरस फैला था. जिन-जिन देशों में कोरोना वायरस की दस्तक हुई, वह देश तबाह हो गया. दुनियाभर में लाखों लोग मारे गए. वुहान में कड़े लॉकडाउन के बाद चीन ने स्थितियां सामान्य कर दीं. लॉकडाउन सहते-सहते लोग ऊब गए हैं. वुहान में भी अब सड़कों पर प्रदर्शनकारी उतर आए हैं. उनकी भी एक सुर से मांग यही है कि शी जिनपिंग इस्तीफा दें. पुलिस की बैरिकेडिंग उन्हें रोकने में नाकाम हो रही है.
उरुमकी के हादसे से बौखलाए लोग, शी जिनपिंग पर बढ़ रहा इस्तीफे का दबाव
अगर उरुमकी में 10 लोगों की जान नहीं जाती तो शायद चीन के लोग इतने आक्रोशित नहीं होते. अपार्टमेंट में कैद होकर लोग मर गए लेकिन उन तक मदद नहीं पहुंची. उनकी राख देखकर जनता आक्रोशित है और इंसाफ मांग रही है. चीन का शायद ही ऐसा कोई कोना हो जहां विरोध न हो रहा है. शंघाई, वुहान, सिन्हुआ, बीजिंग, नानजिंग झिंजियांग और तिब्बत तक विरोध प्रदर्शनों की लहर पहुंच गई है.
3 साल से लोगों में था उबाल, अब सड़क पर आया नजर
साल 2019 से ही चीन कहीं न कहीं आंशिक कोविड प्रतिबंधों का सामना कर रहा है. दुनिया अब कोविड से उबर गई है लेकिन चीन नहीं. जीरो कोविड पॉलिसी की वजह से व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर ठप्पे लगे, पढ़ाई बंद हुई, उद्योग-धंधे बंद हो गए. समाज का कोई ऐसा तबका नहीं है जिस पर लॉकडाउन की मार न पड़ी हो. शी जिनपिंग के खिलाफ लोगों का आक्रोश तीन साल पुराना है, जो अब मुखर होकर आ रहा है. शी जिनपिंग की ऐसी सामूहिक आलोचना कभी नहीं हुई थी. अब देखने वाली बात यह है कि शी जिनपिंग इन विरोध प्रदर्शनों का सामना करते हैं या प्रतिरोध दबाने का अपना पुराना तरीका इस्तेमाल करते हैं, जिनमें लोगों पर फायरिंग करना भी उन्हें गलत नजर नहीं आता.
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शी जिनपिंग के खिलाफ जनता की बगावत, सड़कों पर जनसैलाब, चीन में कैसे उठी सत्ता विरोधी लहर?