डीएनए हिंदी: दुनिया के 90% तेल उत्पादन पर कब्जा रखने वाले 24 देशों के समूह ओपेक प्लस (OPEC+) ने बुधवार को रोजाना के तेल उत्पादन में 20 लाख बैरल की कटौती करने पर मुहर लगा दी. यह कटौती वैश्विक मांग का लगभग 2% है. वियना (Vienna) में हो रही इस मीटिंग के दौरान ओपेक प्लस पर सप्लाई में कटौती नहीं करने के लिए अमेरिका समेत कई देशों का बेहद दबाव था, इसके बावजूद समूह ने साल 2020 में कोविड महामारी शुरू होने के बाद तेल उत्पादन में सबसे बड़ी कटौती का निर्णय लिया है. इससे इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल (Crude Oil) के दामों पर बड़ा प्रभाव पड़ने की संभावना है, जो तीन महीने पहले 120 डॉलर प्रति बैरल से गिरकर 90 डॉलर पर पहुंच गए थे. क्रूड ऑयल के दामों में यह कटौती वैश्विक आर्थिक मंदी (global economic recession), अमेरिकी ब्याज दरों में बढ़ोतरी और डॉलर के मजबूत होने के कारण हुई थी. अब माना जा रहा है कि क्रूड ऑयल के दाम 120 डॉलर प्रति बैरल के भी पार जा सकते हैं.
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फैसले के साथ ही उछले क्रूड ऑयल के दाम
Reuters के मुताबिक, ओपेक प्लस की तरफ से उत्पादन में कटौती का फैसला लेने का असर भी तत्काल ही दिखने लगा है. बुधवार को इंटरनेशनल मार्केट में ब्रेंट क्रूड के दाम 92.08 डॉलर प्रति बैरल से करीब 28 सेंट तक उछल गए यानी दाम में करीब 0.3% का इजाफा हो गया है.
OPEC+ JMMC agrees oil output cuts of 2 mln bpd - sources https://t.co/DjYw8u47Fh pic.twitter.com/gEVaxpW2or
— Reuters (@Reuters) October 5, 2022
भारत जैसे देशों पर पड़ेगा असर
तेल उत्पादन में कमी के कारण क्रूड ऑयल के दामों में बढ़ोतरी का सीधा असर भारत जैसे देशों पर पड़ेगा, जो क्रूड ऑयल के बहुत बड़े आयातक हैं. भारत अपनी खपत का करीब 86 फीसदी क्रूड ऑयल आयात करता है. क्रूड ऑयल के दामों में बढ़ोतरी के कारण भारत का आयात बिल अब पहले से ज्यादा आएगा, जिससे चालू खाता और राजकोषीय घाटा बढ़ेगा. साथ ही इसके चलते बाजार से विदेशी निवेशक अपना निवेश निकालेंगे, जिससे मार्केट गिरेगा और डॉलर के मुकाबले रुपया और ज्यादा कमजोर होगा. साथ ही महंगे क्रूड ऑयल का सीधा असर देश में पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी के तौर पर भी दिखाई देगा.
इसके चलते आपकी जेब पर ऐसे प्रभाव
- क्रूड ऑयल के दाम बढ़ने से देश में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ेंगे
- ईंधन में 10% बढ़ोतरी से खुदरा महंगाई 0.8% तक बढ़ जाती है
- देश में किसी उत्पाद की कीमत में 14% हिस्सा ढुलाई खर्च का होता है
- महंगे डीजल से ढुलाई खर्च ज्यादा आएगा, जिससे सामान महंगे होंगे
- महंगे डीजल से उत्पादन लागत भी बढ़ेगी, इससे भी महंगाई बढ़ेगी
- महंगे पेट्रोल-डीजल से किराया या कार-बाइक के ईंधन पर आपका खर्च ज्यादा होगा
- महंगाई बढ़ने से RBI को फिर से ब्याज दर बढ़ानी पड़ेगी, इससे EMI बढ़ेगी
- महंगे उत्पाद होने से बाजार में मांग घटेगी, जिससे कंपनियां नौकरियां घटाएंगी
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गणित की भाषा में समझिए दाम बढ़ने पर नुकसान
पेट्रोल या डीजल के दाम बढ़ने पर आपको कैसे नुकसान होता है, इसे गणितीय आंकड़ों में ऐसे समझिए, आपका ऑफिस 25 किलोमीटर दूर है और आप अपने स्कूटर या कार में रोजाना 2 लीटर पेट्रोल भरवाते हैं. इस 3 लीटर पेट्रोल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से 200 रुपये है. अब पेट्रोल के दाम में 5 रुपये बढ़ गए तो आपका रोजाना का खर्च 10 रुपये ज्यादा यानी 210 रुपये हो गया. इस हिसाब से आपको महीने में ऑफिस आने-जाने के लिए 300 रुपये ज्यादा खर्च करने होंगे.
इसी तरह बच्चे के स्कूल की ट्रांसपोर्टेशन फीस 500 रुपये महीना है. अब डीजल महंगा हुआ तो यह फीस भी बढ़ेगी, जिसका असर आपकी जेब पर आएगा. आप रोजाना जो ब्रेड और दूध लेकर आते हैं, उसमें भी 50 पैसे तक का इजाफा ढुलाई लागत के तौर पर बढ़ जाएगा. यही लागत सब्जियों, फलों व दाल में भी बढ़ जाएगी. इसके उलट आपकी आमदनी तो वहीं की वहीं है यानी आपका खर्च बढ़ जाएगा और बचत घट जाएगी.
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अमेरिका ने की दाम बढ़ने से रोकने की कोशिश
सूत्रों के मुताबिक, वैश्विक मंदी की आहट को देखते हुए अमेरिका ने ओपेक देशों पर उत्पादन में कटौती नहीं करने का भरपूर दबाव बनाया था. सिटी एनालिस्ट्स ने अपने एक नोट में कहा है कि यदि बड़ी उत्पादन कटौती के कारण तेल के दामों में भारी बढ़ोतरी होती है तो यह जो बाइडेन प्रशासन को अमेरिका में मिड-टर्म चुनावों से पहले परेशान कर सकती है. इसके चलते अमेरिका में राजनीतिक प्रतिक्रियाएं देखने को मिल सकती हैं. हालांकि अमेरिका के इस दबाव का बहुत ज्यादा असर नहीं हो सका है.
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2% से ज्यादा दिखाई देगी कटौती
ओपेक प्लस समूह की तरफ से वैश्विक खपत के करीब 2% हिस्से की उत्पादन कटौती करने की बात कही है, लेकिन विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कटौती और भी ज्यादा साबित होगी, क्योंकि ओपेक प्लस का अगस्त में उत्पादन पहले ही 36 लाख बैरल कम रहा है.
क्यों की जा रही है उत्पादन में कटौती
इस साल फरवरी में रूस के यूक्रेन पर हमले (Russia Ukraine War) के बाद क्रूड ऑयल के दामों ने आसमान छू लिया था. हालांकि इसके बाद ये धीरे-धीरे नरम होते चले गए थे, लेकिन सितंबर में यूरोप में आर्थिक मंदी का आहट दिखाई देने के बाद क्रूड ऑयल के दाम अचानक नीचे गिरे थे और 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुके हैं. इस गिरावट का एक कारण जुलाई-अगस्त के दौरान चीन के कई बड़े शहरों में फिर से लॉकडाउन लगने के कारण उसकी तरफ से तेल आयात बड़े पैमाने पर घटाना भी रहा है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक देश है.
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इसके चलते ओपेक प्लस समूह में शामिल सभी देशों की कमाई घटी है. ऐसे में वे उत्पादन घटाकर इंटरनेशल मार्केट में क्रूड ऑयल के दाम बढ़ाना चाहते हैं ताकि उनकी कमाई ज्यादा बढ़ सके. इसका उदाहरण फरवरी में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद हुई कमाई में ये सभी देश देख चुके हैं. उस दौरान सऊदी अरब को दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था में शुमार किया गया था. ओपेक प्लस देशों का एक टारगेट आर्थिक मंदी आने की हालत में महंगे तेल के जरिए अपनी अर्थव्यवस्था की गति बनाए रखना भी है.
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ओपेक प्लस 2% घटाएगा क्रूड ऑयल प्रोडक्शन, जानिए इससे कैसे कटेगी आपकी जेब