डीएनए हिंदी: दिसंबर महीने की शुरुआत में ही पश्चिम अफ्रीकी देश गांबिया में चुनाव हुए थे. इन चुनावों में एडामा बेरो ने दूसरी बार जीत हासिल की और राष्ट्रपति बने. पांच साल पहले बेरो की जीत के साथ ही गांबिया में 20 साल लंबी तानाशाही का अंत हुआ था. ये तो हुई हार-जीत और तानाशाही की बात. दिलचस्प मुद्दा ये है कि गांबिया में चुनाव की प्रक्रिया काफी अलग होती है. यहां कंचों से चुनाव होता है. यहां ना तो बैलेट पेपर होता है, ना EVM, ना ही VVPAT जैसी कोई मशीन.
कैसे होता गांबिया में चुनाव
पश्चिमी अफ्रीकी देश गांबिया में वोट डालने की व्यवस्था काफी अलग है. यहां राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च पद होता है. इसके लिए चुनाव होते हैं और राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच साल का होता है. चुनावों के लिए यहां आम जनता कंचों से वोट करती है और कंचों को गिनकर उम्मीदवारों की हार और जीत तय की जाती है.
क्या है पूरी प्रक्रिया
वोट डालने के लिए यहां भारत की तरह ही पोलिंग स्टेशन बनाए जाते हैं. हर पोलिंग स्टेशन पर मेटल सिलिंडर रखे जाते हैं. ये मेटल सिलिंडर उम्मीदवार की पार्टी से जुड़े रंग के होते हैं. आसानी के लिए इन सिलिंडरों पर उम्मीदवार का नाम भी लिख दिया जाता है. इन सिलिंडरों के ऊपर एक छेद हेता है. इस छेद के जरिए आम जनता कंचे सिलिंडर के अंदर डालती है. वोटों की गिनती के लिए आखिर में इन सिलिंडरों का इस्तेमाल होता है. अलग-अलग छेदों वाली एक स्क्वायर ट्रे में सारे कंचे निकालकर पोलिंग बूथ पर ही गिने जाते हैं. ये प्रक्रिया बिलकुल निष्पक्ष मानी जाती है और इस पर सभी का भरोसा होता है.
कब और क्यों हुई ये शुरुआत
गांबिया में कंचों के जरिए वोट डालने की शुरुआत ब्रिटिशर्स ने सन् 1965 में करवाई थी. यहां ज्यादातर लोगों के अशिक्षित होने की वजह से ये व्यवस्था की गई थी. खास बात ये है कि आज भी गांबिया के लोगों को इसी व्यवस्था पर विश्वास है और वो कंचों से ही वोट डालते हैं.
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