‘ये स्पष्ट तरीके से मोदी की गारंटी है कि 2029 तक, अगले 5 वर्षों में भारत सेमीकंडक्टर के टॉप 5 ईकोसिस्टम में से एक होगा. धोलेरा में, साणंद में, असम में यहां तीनों जगह से बनने वाली चिप्स दुनिया की हर कार में लगेगी, हर मोबाइल में लगेगी.’ 13 मार्च 2024 को भारत के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव के इस ऐलान के साथ ही भारत एक ऐसे क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए अग्रसर हो गया है जिसमें फिलहाल ताइवान, चीन और अमेरिका की बादशाहत है. पिछले ही दिनों केंद्रीय कैबिनेट ने सेमीकंडक्टर चिप के लिए 1.26 लाख करोड़ रुपए लागत की 3 परियोजनाओं को मंजूरी दी थी. इसके बाद प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी ने इन तीनों परियोजनाओं का शिलान्यास कर दिया.
इन परियोजनाओं में से एक है गुजरात के धोलेरा में, दूसरी है गुजरात के साणंद में और तीसरी है असम के मोरिगांव में. धोलेरा में जो प्लांट लग रहा है उसमें एक कंपनी तो है स्वदेशी जिसका नाम है टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स पावर लिमिटेड (TEPL) लेकिन दूसरी कंपनी है ताइवान की. ताइवान इसलिए क्योंकि सेमीकंडक्टर चिप बनाने के मामले में ताइवान फिलहाल दुनिया में सबसे आगे है. तो ताइवान की जो कंपनी धोलेरा प्लांट में काम करेगी उसका नाम है पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग (PSMC) .
सेमीकंडक्टर पर आत्मनिर्भरता क्यों है जरूरी?
जरा ठहरकर सोचिए कि ऑटोमेशन ने हमारी जिंदगियों को कितना आसान बना दिया है. आप अपनी कार में बैठकर सीटबेल्ट लगाना भूल जाएं तो कार आपको अलर्ट करने लगती है. आप वाशिंग मशीन में कपड़े डालकर इस भरोसे के साथ छोड़ सकते हैं कि जब कपड़े धुल जाएंगे तो मशीन खुद-ब-खुद बंद हो जाएगी. ऐसे बेशुमार उदाहरण हैं जहां एक छोटी सी सेमीकंडक्टर चिप हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है. टेलीकॉम, डिफेंस, ऑटो इंडस्ट्री, इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल्स और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर हेल्थकेयर और एग्रीकल्चर से जुड़ी तकनीक में सेमीकंडक्टर चिप्स का इस्तेमाल हो रहा है. जैसे-जैसे दुनिया डिजिटल शैली की तरफ बढ़ रही है, जैसे जैसे तकनीक में सबसे आगे निकलने की होड़ तेज हो रही है, सेमीकंडक्टर चिप की अहमियत भी बढ़ती जा रही है.
मैकेंजी की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021 में सेमीकंडक्टर का ग्लोबल मार्केट साइज 600 बिलियन डॉलर के आस पास था. अनुमान है कि साल 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा. भारत की बात करें तो 2021 में घरेलू सेमीकंडक्टर का मार्केट 27.2 बिलियन डॉलर था और 2026 तक ये आंकड़ा 64 बिलियन डॉलर पहुंचने का अनुमान है. हालांकि अभी तक भारत में सिलकॉन चिप की मैन्यूफैक्चरिंग शुरू नहीं हुई है. हम पूरी तरह इंपोर्ट पर निर्भर हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिलहाल इस खेल के बड़े खिलाड़ी हैं अमेरिका, ताइवान और चीन. अमेरिका R&D के लिए जाता जाता है, ताइवान असेंबली, टेस्टिंग और पैकेजिंग का एक्सपर्ट है और चीन मैन्यूफैक्चरिंग के मामले में नंबर वन है. ऐसे में भारत को अगर ग्लोबल महाशक्ति के तौर पर उभरना है तो चिप मैन्यूफैक्चरिंग में आत्मनिर्भर बनना जरूरी है. ताइवान और चीन की मोनोपोली खत्म करनी है तो भारत को मेड इन इंडिया चिप्स बनाने की दिशा में ठोस और लॉन्ग टर्म विजन के साथ काम करना होगा. और यही वजह है कि तीन मैन्यूफैक्चरिंग फैसिलिटीज के शिलान्यास करके भारत सरकार ने इस मिशन की जबर्दस्त शुरुआत कर दी है.
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भारत कैसे करेगा चीन का मुकाबला?
सेमीकंडक्टर मार्केट में चीन का दबदबा जगजाहिर है. सेमीकंडक्टर बनाने की प्रक्रिया जितनी जटिल और खर्चीली है उसे देखते हुए भारत को कई स्तर पर रणनीति बनानी होगी. सबसे पहले तो सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन फैसिलिटी बनाने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर और मैन्यूफैक्चरिंग में भारी निवेश करना होगा. साथ ही इन फैसिलिटीज को बिजली, पानी और अन्य जरूरी लॉजिस्टिक्स के स्तर पर पूरा सहयोग देना होगा. सेमीकंडक्टर बनाने की दिशा में कंपनियों की दिलचस्पी बढ़े इसके लिए सरकार टैक्स छूट, सब्सिडी और रेगुलेटरी प्रोसेस को आसाना बनाने जैसे कदम उठाने चाहिए. इंडस्ट्री से जुड़े जानकारों का कहना है कि निवेशकों का भरोसा जीतने के लिए भारत को भ्रष्टाचार और लालफीताशाही वाली छवि से छुटकारा पाना होगा. सेमीकंडक्टर चिप बनाने में जो खर्चा होता है उसका तकरीबन 25 फीसदी सिर्फ रिसर्च एंड डेवलपमेंट में जाता है.
इस काम को गति देने के लिए सरकार अकादमिक संस्थाओं और उद्योगों के साथ हाथ मिला सकती है, तकनीक और अनुसंधान के लिए फंडिंग प्रोग्राम चला सकती है. सरकार को ऐसे देशों और कंपनियों के साथ पार्टनरशिप भी करनी चाहिए जो चीन से अलग अपनी सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन को विस्तार देना चाहती हैं. प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार इस जरूरत को अच्छे से समझती है. यही वजह है कि 15 दिसंबर 2021 में ही सरकार ने 76,000 करोड़ की इन्सेंटिव स्कीम का एलान कर दिया था. प्रधानमंत्री ने इंडस्ट्री से गुजारिश की थी कि भारत को सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग का ग्लोबल हब बनाने के लिए मिलकर प्रयास करें. इस सपने को अंजाम तक पहुंचाने के लिए वेदांता और फॉक्सकॉम के बीच ज्वॉइंट वेंचर भी हुआ था लेकिन जुलाई 2023 में फॉक्सकॉम ने इस साझीदारी से खुद को अलग कर दिया.
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आसान नहीं चिप पावरहाउस बनने की राह
खास बात ये है कि धोलेरा में जो प्लांट लग रहा है उसमें टार्गेट ये रखा गया है कि आज से 4-5 साल बाद 28 नैनोमीटर चिप का प्रोडक्शन शुरू हो जाए जिसे बाद में 22 नैनोमीटर तक लाया जाएगा. जबकि ताइवान, चीन और अमेरिका जैसे बड़े खिलाड़ी आज की तारीख में ही 3, 5, 7 नैनमीटर के चिप्स बना रहे हैं. अंदाजा लगाइए कि ये चिप कितने स्मार्ट और हाइटेक होंगे. इतना ही नहीं, भारत को अपना लक्ष्य सिर्फ चीन से मुकाबले तक सीमित नहीं रखना है बल्कि भविष्य की टेक्नोलॉजी और ट्रेंड को देखते हुए खुद को मार्केट लीडर के तौर पर स्थापित करना है.
जाहिर है भारत के लिए ये एक ऐसा मिशन है जिसमें लॉन्ग टर्म निवेश और रणनीति ही नहीं, बड़ी तादाद में स्किल्ड लेबर और बहुत सारे धैर्य की जरूरत होगी. इस लक्ष्य को हासिल करने में कई वर्ष ही नहीं, कई दशक लगेंगे. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मौजूदा सरकार ने जिस तरह की राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई है वो अपने आप में अच्छा संकेत है.
(लेखक पिछले 24 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय. प्रिंट, टीवी, डिजिटल तीनों माध्यमों में काम करने का है अनुभव. फिलहाल Zee Business Digital के संपादक के तौर पर कार्यरत. इनकी कारोबार जगत, साहित्य, संगीत और सिनेमा से जुड़े विषयों में विशेष रुचि है. इनसे सोशल मीडिया X पर https://twitter.com/Girijeshk और फेसबुक पर https://www.facebook.com/girijeshk/ जुड़ा जा सकता है.)
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सेमीकंडक्टर चिप के सहारे चीन को पछाड़ भारत बनेगा आत्मनिर्भर, ये है मोदी की गारंटी