डीएनए हिंदी: इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का मार्केट देश में तेजी से बढ़ रहा है. पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों की वजह से लोगों का रुझान ईवी की ओर है. हालांकि अभी इसके लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर सिर्फ मेट्रो सिटीज तक ही सीमित है लेकिन सरकार की ईवी स्टेशन बनाने की योजना यदि सफल हो गई तो वह दिन दूर नहीं जब देशभर की सड़कों पर इलेक्ट्रिक व्हीकल दौड़ते नजर आएंगे.
हालांकि अब भी कई लोगों के मन में अक्सर ये सवाल उठता है कि सीएनजी और ईवी में से बेहतर विकल्प कौनसा है. ईवी और सीएनजी की कॉस्ट में कितना अंतर है? क्या सीएनजी का नेटवर्क ईवी की तुलना में ज्यादा और सहज है...आइए जानते हैं
पहले बात सीएनजी के नेटवर्क की. आंकड़ों के अनुसार देशभर में 3180 सीएनजी स्टेशन हैं. भारत में सबसे ज्यादा गुजरात में 794 सीएनजी स्टेशन का नेटवर्क है. हालांकि टियर 1, टियर 2 तक तो सीएनजी नेटवर्क की ठीक पहुंच है लेकिन टियर 3 सिटीज में ये न के बराबर है.
जबकि इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के चार्जिंग स्टेशंस की बात की जाए तो वर्तमान में इंडियन ऑयल के देशभर में 448 ईवी चार्जिंग स्टेशन और 30 बैटरी स्वैपिंग स्टेशन हैं. कंपनी की योजना एक साल में चार्जिंग स्टेशनों की संख्या को 2000 तक बढ़ाने और अगले दो वर्षों में 8,000 स्टेशन जोड़ने की है. ये सभी चार्जिंग सुविधाएं इसके फ्यूल स्टेशनों पर लगेंगी.
वहीं एनएचएआई ने 2023 तक हाइवेज पर 40 हजार ईवी स्टेशन बनाने का लक्ष्य रखा है. इससे हर 40-60 किमी पर ई-वाहन चार्जिंग स्टेशन मिल सकेंगे. इस तरह तुलनात्मक रूप से ईवी के नेटवर्क की संभावना ज्यादा बेहतर बताई जा सकती है.
वहीं बात कॉस्टिंग की करें तो फिलहाल ईवी खरीदने के लिए महंगी कार खरीदनी पड़ती है. अभी 15 लाख से कम प्राइस के इस सेग्मेंट में महिंद्रा ई2ओ, टाटा की नेक्सॉन और टिगोर मार्केट में हैं. ऐसे में फिलहाल के लिए कहा जाए तो ईवी खरीदने के लिए सीएनजी की तुलना में ज्यादा पैसे खर्च करने होंगे.
दूसरी ओर माइलेज की बात करें तो एक सीएनजी अल्टो कार 54 रुपए में 24 किलोमीटर चलती है. इस तरह 10 लीटर सीएनजी में ये 240 किमी तक की दूरी तय सकती है. जिसका खर्च 540 रुपए आएगा. जबकि ईवी की बात करें तो एक ईवी 30 यूनिट में करीब 300 किमी चलती है. इसे घर में चार्ज करने में 8 से 10 घंटे और करीब 30 यूनिट लगते हैं.
30 यूनिट का घरेलू खर्च 7 से 8 रुपए प्रति यूनिट आता है. 8 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से भी जोड़ें तो 240 रुपए में ईवी 300 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकती है. इसलिए माइलेज के मामले में ईवी बेहतर विकल्प है. किसी राज्य में बिजली की दरें कम हैं तो सोने पे सुहागा.
दूसरी ओर कार के स्पेस की बात करें तो सीएनजी कार व्हीकल का काफी बूट स्पेस ले लेती है. जिससे सामान रखना एक बड़ी चुनौती बन जाती है. जबकि इलेक्ट्रिक कार की बैटरी प्लेट्स सीट के नीचे रखी जाती हैं. इससे उसका बूट स्पेस या डिग्गी खाली रहती है.
बहरहाल तुलनात्मक रूप से इलेक्ट्रिक कार सीएनजी की तुलना में बेहतर नजर आती है. देखना होगा कि लोगों का रुझान इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की ओर कितना बढ़ता है और सरकार इस दिशा में क्या प्रयास करती है.
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