भारत के अधिकतर हिस्सों में गर्मी (Heatwave) ने अपना कहर बरपाया हुआ है. दिल्ली, यूपी, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार सहित ऐसे कई राज्य हैं जो भीषण गर्मी की मार झेल रहे हैं. बच्चों को गर्मी का वार सबसे ज़्यादा झेलना पड़ रहा है. ऐसे में पश्चिम बंगाल का में एक स्कूल ऐसा भी है जहां इस तपती गर्मी में बच्चे खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं.
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खबर पश्चिम बंगाल के मालदा से है जहां का तापमान लगभग 41 डिग्री के आसपास है. इस झुलसा देने वाली गर्मी में भी बच्चों को खुले आसमान के नीचे पढ़ना पड़ता है. यह स्कूल साल 2014 से चल रहा है. जला देने वाली गर्मी हो या जमा देने वाली सर्दी इस तरह से बच्चों को स्कूल में पढ़ाई करनी पड़ती है. स्कूल को कई बार आश्वासन दिया गया कि बहुत जल्द स्कूल की ईमारत को पक्का कर दिया जाएगा. लेकिन ऐसा लगता है की अब यह केवल ख्वाब ही है, बीते 8 सालों में आज भी वही तस्वीर देखने को मिलती है.
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मालदा ज़िले के माणिकचौक ब्लॉक का किशनटोला प्राइमरी स्कूल जिसकी इमारत 2014 में गंगा नदी में कटान के दौरान बह गई थी और तब से लेकर अब तक स्थिति एक जैसी ही बानी हुई है. बहाना यह दिया जा रहा है कि अब इस स्कूल के लिए कोई ज़मीन नहीं है क्योंकि यह इलाका नदी किनारे है और यहां बाढ़ के बाद से ही कोई जगह ऐसी नहीं बची जहां इस स्कूल के बिल्डिंग का निर्माण किया जा सके.
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साल 2017 के दिसंबर के महीने में लालू मंडल नाम के एक स्थानीय व्यक्ति ने अपनी ज़मीन इस स्कूल को दी थी लेकिन उसके बावजूद भी स्कूल के भवन का निर्माण नहीं हो पाया. इसलिए अभी भी यह बच्चे इस जबरदस्त गर्मी में बांस के पेड़ के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं.
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इस स्कूल में कुल छात्रों की संख्या 68 है और 3 शिक्षक. जब हमने माणिकचौक विधानसभा के विधायक सावित्री मित्र से बात की तो उन्होंने बताया कि दान की हुई ज़मीन काफी लम्बी है और इसलिए स्कूल निरीक्षक ने उस जमीन पर भवन निर्माण की अनुमति नहीं दी. इसके अलावा विधायक ने जल्द से जल्द प्रशासन से बात करके उचित व्यवस्था करने का आश्वासन दिया.
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वहीं स्कूल के हेडमास्टर गिरीश चंद्र मंडल ने भी बताया कि ज़मीन की चौड़ाई कम होने के चलते स्कूल भवन निर्माण संभव नहीं हो पा रहा. सरकार भी उदासीन दिख रही है. न ही स्कूल भवन निर्माण के लिए यहां के लोगों की इतनी सामर्थ्य है की वो ज़मीन खरीद सकें या दान कर सकें. राज्य सरकार के पास खुद जमीन खरीदने का अधिकार नहीं है. इसीलिए इन बच्चों को गर्मी का प्रकोप झेलते हुए बांस के पेड़ के नीचे पढ़ना पड़ रहा है.