डीएनए हिंदी: दिल्ली नगर निगम (Delhi MCD) में बंपर बहुमत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी (AAP) के हौसले बुलंद हैं. इस जीत के साथ ही आम आदमी पार्टी की अगुवाई वाली एमसीडी (MCD) के सामने दिल्ली के कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने की चुनौती है. अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने अपने चुनावी मेनिफेस्टो में कूड़े के पहाड़ खत्म करने की गारंटी भी थी. दिल्ली में इस समय ओखला, गाजीपुर और भलस्वा की डंपिंग साइट (Dumping Site) को मिलाकर करोड़ों टन कचरा पड़ा हुआ है. इन पहाड़ों को खत्म करने के लिए एमसीडी को इंदौर से सीखना होगा, जिसने ऐसे ही एक पहाड़ को खत्म करके शानदार उदाहरण पेश किया है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी कह चुके हैं कि अगर इस समस्या के समाधान के लिए उन्हें बीजपी शासित इंदौर नगर निगम से सीखना पड़े तो वह इसके लिए भी तैयार हैं.
देश की राजधानी दिल्ली में 27.6 मिलियन टन से ज़्यादा कचरा जमा हो गया है. यह ढाई साल पहले के 28 मिलियन टन से मामूली गिरावट पर है. ऐसा तब है जब इन लैंडफिल को साफ करने के लिए 250 करोड़ रुपये का बजट है. हालांकि, एक सवाल अभी भी उठता है कि इन कचरे के पहाड़ों को कब और कितनी जल्दी साफ किया जाएगा, क्योंकि आम आदमी पार्टी (आप) ने अपने घोषणापत्र में कहा था कि उनकी प्राथमिकता इस कचरे को हटाने की होगी जो शहर के निवासियों के लिए खतरा बन गया है.
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इस रफ्तार से हुई सफाई तो लगेंगे 197 साल
सूत्रों के मुताबिक, इन तीनों लैंडफिल साइट्स पर रोजाना औसतन 5,315 टन कचरा साफ किया जा रहा है. कचरे के ढेर में बढ़ोतरी को देखते हुए कहा जा रहा है कि इस रफ्तार पर लैंडफिल को साफ करने में 197 साल लग सकते हैं. पिछले 34 महीनों में यानी लगभग 3 साल में केवल 5.1 मिलियन टन कचरा हटाया गया है. AAP ने 4 दिसंबर को हुए निकाय चुनावों में जीत हासिल की. AAP ने बीजेपी शासित एमसीडी के 15 साल के शासन का हवाला देकर बीजेपी की विफलता और कूड़े के पहाड़ को लगातार निशाना बनाया था.
1980 के दशक की शुरुआत में दिल्ली में गाजीपुर लैंडफिल साइट बनाई गई. कटरा बढ़ा तो साल 1994 में भलस्वा में भी एक साइट बन गई. दिल्ली की बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ कचरा भी बढ़ता रहा तो दो साल बाद, 1996 में दक्षिणी दिल्ली के ओखला में एक तीसरा लैंडफिल साइट चालू हो गया. मौजूदा समय में गाजीपुर, भलस्वा और ओखला में ये कूड़े के पहाड़ जहरीले धुआं पैदा कर रहे हैं. गाजीपुर लैंडफिल साइट की ऊंचाई लगभग 73 मीटर ऊंची कुतुब मीनार की ऊंचाई के बराबर है. भलस्वा में लैंडफिल थोड़ा छोटा है. ओखला में कचरे का ढेर 42 मीटर ऊंचा है.
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कूड़े के पहाड़ों पर लग जाती है आग
लैंडफिल में डाला गया गीला कचरा सड़ने पर मीथेन गैस पैदा होती है. गर्मी के मौसम में मीथेन अनायास आग पकड़ लेती है. ऐसी समस्या से जूझ रहे इंदौर शहर ने वेस्ट मैनजमेंट का शानदार उदाहरण पेश किया है. यही कारण है कि कई सालों से इंदौर शहर स्वच्छता रैंकिंग में नंबर 1 पर है. इंदौर में कचरा लाने वाली गाड़ियों की निगरानी करने और कचरे के निस्तारण पर नजर रखने कि लिए बाकायदा एक कंट्रोल-कम-कमांड सेंटर स्थापित किया गया है.
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कचरे को अलग करने के बाद उसे छंटाई के लिए गारबेज ट्रांसफर स्टेशन (जीटीएस) ले जाया जाता है. इसे छह अलग-अलग कैटरगी में बांटा गया है. कचरे को मशीनों से दबाया जाता है और प्लास्टिक के बड़े कैप्सूल में डाला जाता है. इन कैप्सूलों का अंतिम डेस्टिनेशन ट्रेंचिंग ग्राउंड है, जहां अहमदाबाद स्थित नेपरा रिसोर्स लिमिटेड ने भारत का सबसे बड़ा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र स्थापित किया है.
इंदौर नगर निगम ने न सिर्फ़ कूड़े के पहाड़ को खत्म किया है बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि ऐसे पहाड़ दोबारा न बनें. दिल्ली नगर निगम को भी इंदौर से सीख लेनी होगी और जल्द से जल्द इस समस्या का निपटारा करना होगा.
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दिल्ली में कूड़े के पहाड़ों पर जमा है करोड़ों टन कचरा, इंदौर मॉडल से सीखेगी MCD?