शिव और शक्ति की एकता की प्रतीक महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के त्योहार को भारत में बहुत महत्व दिया जाता है. शिव पुराण के अनुसार जिस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ (Mahashivratri 2025) था, उसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है. हालांकि शास्त्रों में कहा गया है कि जिस दिन सृष्टि का आरंभ हुआ वह दिन महाशिवरात्रि (Mahashivratri ki Katha) है. ऐसे में आइए जानते हैं महाशिवरात्रि से जुड़ी कौन सी तीन कथाएं सबसे ज्यादा प्रचलित हैं...
पुराण और शास्त्रों में मिलता है महाशिवरात्रि का उल्लेख
महाशिवरात्रि पर्व का उल्लेख न केवल शिव पुराण और शास्त्रों में मिलता है, बल्कि स्कंद पुराण, अग्नि पुराण, पद्म पुराण और गरुड़ पुराण में भी मिलता है. महाशिवरात्रि के दिन शिव भक्त उपवास रखते हैं और भगवान शिव की भक्ति भाव से पूजा करते हैं. इसके अलावा इस दिन रुद्राभिषेक और जागरण जैसे कठोर उपाय भी किए जाते हैं. बता दें कि महाशिवरात्रि से जुड़ी कई कहानियां सुनने को मिलती हैं. हालांकि, ये तीन कहानियां उनमें से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं.
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पहली कथा: महादेव शिव लिंग के रूप में हुए प्रकट
शास्त्रों के अनुसार, महादेव पहली बार महाशिवरात्रि के दिन लिंग के रूप में प्रकट हुए थे, जो शिवलिंग एक प्रकाशमान ज्योतिर्लिंग यानी अग्निमय शिवलिंग के रूप में था. इस शिवलिंग का न तो कोई आरंभ था और न ही अंत. इस शिवलिंग का आदि और अंत जानने के लिए भगवान ब्रह्मा हंस का रूप धारण करते हैं और शिवलिंग के आदि की खोज में निकल पड़ते हैं. हालांकि, भगवान ब्रह्मा लिंगम का आरंभ ढूंढे बिना ही वापस लौट जाते हैं. तब भगवान विष्णु वराह का रूप धारण करते हैं और लिंग के अंत की खोज में निकल पड़ते हैं, भगवान विष्णु भी उसे ढूंढे बिना लौट जाते हैं.
दूसरी कथा: द्वादश ज्योतिर्लिंग
शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन देशभर में द्वादश यानी 12 ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे. इन 12 ज्योतिर्लिंगों में से सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं. इन 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है.
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तीसरी कथा: शिव और शक्ति का मिलन
शास्त्रों के अनुसार, देवी पार्वती ने शिव के लिए कठोर तपस्या की और कहा कि यदि उनका विवाह होगा तो वह शिव से होगा. देवी पार्वती की तपस्या के परिणामस्वरूप, माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को देवी पार्वती का शिव से विवाह होता है. शास्त्रों में कहा गया है कि हम आज भी इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाते हैं.
महाशिवरात्रि से जुड़ी कई कहानियां हैं, जो प्रचलित हैं. इनमें से ये तीन कहानियां सबसे अधिक महत्व प्राप्त कर चुकी हैं. शिवरात्रि की कहानी मान्यताओं के आधार पर भिन्न हो सकती है. हालांकि, उपरोक्त तीन कहानियाँ ही सबसे अधिक महत्व प्राप्त कर चुकी हैं.
Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी सामान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)
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