हिंदू धर्म का सबसे बड़ा उत्सव और त्योहार दिवाली है...रोशनी का यह त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. दिवाली की शुरुआत धनत्रयोदशी यानी धनतेरस से होती है. इस साल दिवाली का मतलब लक्ष्मी पूजन की तारीख को लेकर असमंजस है. कुछ लोग आज यानी 31 अक्टूबर तो कुछ 1 नवंबर को दिवाली मनाएंगे. इसके पीछे सारा भ्रम प्रदोष काल में अमावस्या तिथि के दो दिन आने को लेकर है. 31 अक्टूबर को देवी पूजा का शुभ समय कब है चलिए ज्योतिषी प्रीतिका मजुमदार से जानें.
दिवाली कब है?
दिवाली अश्विनी माह की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है. पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 3:12 बजे से 1 नवंबर को शाम 5:53 बजे तक रहेगी. इसके साथ ही दिवाली पूजा के लिए प्रदोष काल और वृषभ काल दो शुभ समय महत्वपूर्ण हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, प्रदोष और वृषभ काल के दौरान दिवाली पूजा या लक्ष्मी पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है.
यद्यपि प्रदोष काल में कमोबेश दो दिन आश्विन अमावस्या होती है, परंतु लक्ष्मी-कुबेर पूजन दूसरे दिन प्रदोष काल में करना चाहिए. कुछ ज्योतिषियों का कहना है कि अगर आप शुक्रवार 1 नवंबर को अमावस्या तिथि में ही लक्ष्मी पूजा करना चाहते हैं तो आपको इसे शाम 5:53 बजे तक ही करना होगा.
1962, 1963 और 2013 में भी दो दिन आश्विन अमावस्या प्रदोषकाल के दौरान आई थी. उस समय भी दूसरे दिन लक्ष्मी-कुबेर पूजन किया जाता था.
अमावस्या के दौरान लक्ष्मी पूजा का शुभ समय - शाम 5:36 बजे से शाम 6:15 बजे तक
प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजा का शुभ समय- शाम 5:35 बजे से रात 08:06 बजे तक
भारत के किस शहर में दिवाली कब है?
दरअसल उत्तर भारतीय 31 अक्टूबर को दिवाली मनाएंगे जबकि महाराष्ट्र के मराठी लोग 1 नवंबर को दिवाली मनाएंगे. दिल्ली और मुंबई में दिवाली 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को मनाई जाएगी. उत्तराखंड में 1 नवंबर, हरियाणा, बिहार और उत्तर भारत में 31 अक्टूबर को लक्ष्मी पूजा की जाएगी.
लक्ष्मी पूजन सामग्री
लक्ष्मी माता की तस्वीर या
मूर्ति गणपति बप्पा की तस्वीर या
मूर्ति कुबेर की तस्वीर या मूर्ति
सिक्के या नोट
आभूषण या चांदी के सिक्कों
पर भी कुंकवा ॐ या स्वास्तिक अंकित करना चाहिए.
चौरंग या पीठ
लाल रंग का कपड़ा
पानी
चावल
गंध
पंचामृत
हल्दी, कुंकु
अक्षदा
फूल
पांच पत्तियां सब्जी
झाड़ू
लाहिया बताशे
लक्ष्मी पूजा क्यों की जाती है?
हर त्यौहार के पीछे एक पौराणिक कथा होती है. लक्ष्मी पूजा को लेकर एक कथा भी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि लक्ष्मी पूजा के दिन ही भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी सहित सभी देवताओं को बलि कारागार से मुक्त किया था. माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं इसलिए इस दिन हम लक्ष्मी माता की पूजा करते हैं और जीत का जश्न मनाते हैं.
लक्ष्मी पूजन अनुष्ठान
लक्ष्मी पूजन अनुष्ठान करने के लिए सबसे पहले देवघर में एक चौक रखना चाहिए और उस पर लाल कपड़ा बिछाना चाहिए. दाहिनी ओर कलम की व्यवस्था करनी चाहिए, उन कलम में पांच विदा के पत्ते रखें, एक रुपये के सिक्के रखें और कलम के ऊपर नारियल रखना चाहिए. जो चौक आपने लिया है उस पर बीच में चावल का रस बना लें. इस पर गणपति, कुबेर, लक्ष्मी की मूर्ति या फोटो लगानी चाहिए. अगर आपके पास कुछ नहीं है तो आप सुपारी भी रख सकते हैं. इसके बाद चतुर्भुज पर बची हुई जगह पर एक नोटबुक और पेन रखें तथा पैसे और सिक्के रखें. इसके बाद हल्दी लगाकर चौरंगा की पूजा करनी चाहिए. फरल और लह्या बताशे का प्रसाद चढ़ाना चाहिए. नई झाड़ू की पूजा की जाती है क्योंकि झाड़ू को लक्ष्मी माना जाता है.
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