सनातन धर्म में होली के त्यौहार का बहुत ही खास महत्व है. रंगों के त्यौहार के रूप में मशहूर होने के बावजूद इसे देशभर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. मथुरा की होली के अलावा वृंदावन की फूलवालों की होली, काशी की मसान होली भी काफी मशहूर है. हर साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के अगले दिन काशी में मसान होली मनाई जाती है. इस बार मसान होली 11 मार्च को खेली जाएगी. खास बात ये है कि पहली बार इस होली में जाने पर महिलाओं को बैन किया गया है?
मसान होली में, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, लोग रंग-बिरंगे पाउडर, गुलाल और पानी की जगह राख (भस्म) लगाते हैं और उससे खेलते हैं. काशी के मणिकर्णिका घाट पर होने वाली इस मसान होली में इस्तेमाल की जाने वाली राख या भस्म अक्सर श्मशान घाटों और मृतकों के जले हुए शवों से लाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि यह परंपरा, जिसका पालन समाज के कुछ चुनिंदा लोगों द्वारा किया जाता था, जीवन की नश्वरता को स्वीकार करने के विचार से उत्पन्न हुई थी.
मसान होली की शुरुआत कैसे हुई थी?
शुरुआत में, मसान होली केवल तपस्वियों, अघोरियों और आध्यात्मिक साधकों से जुड़ी थी, जिन्होंने एक निश्चित स्तर की तपस्या प्राप्त की थी और काशी में अक्सर आते थे. बाबा, नागा साधु और अघोरी ही ऐसे लोग थे जो मसान होली खेलते थे क्योंकि मृतक की राख को केवल वे ही छूते थे और केवल उन्हें ही ऐसा करने के लिए आवश्यक ज्ञान प्राप्त हुआ था.
चूँकि अघोरियों और नागा साधुओं ने खुद को भौतिक और सांसारिक चीज़ों से अलग कर लिया है और ऐसा उन्होंने बहुत भक्ति के बाद किया है, इसलिए उन्हें ही मसान होली के रूप में भगवान शिव के साथ होली खेलने की अनुमति दी गई थी.
यह एक चलन कैसे बन गया?
समय के साथ, मसान होली एक चलन बनकर रह गई है जिसे हर कोई मनाता है और इसका बेसब्री से इंतजार करता है और फिर इसकी ढेर सारी तस्वीरें और वीडियो अपलोड करता है. एक ऐसा समारोह जो कभी बहुत ही अंतरंग था और जिसे सिर्फ़ कुछ चुनिंदा लोग ही करते थे, अब एक तमाशा बन गया है जो पर्यटकों और प्रभावशाली लोगों को आकर्षित करता है. और जो लोग महसूस करते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए, उनके लिए ये संकेत किसी बुरे शगुन से कम नहीं हैं.
अब, जब आप रंगभरी होली के ठीक बाद काशी जाते हैं, तो आप देखते हैं कि हज़ारों लोग मसान होली का आनंद ले रहे हैं और खुशी-खुशी एक-दूसरे पर राख मल रहे हैं और फिर इसे दुनिया के साथ साझा कर रहे हैं. लेकिन, ऐसा नहीं होना चाहिए और एक ऐसी रस्म जो इतनी खास है, उसे चलन नहीं बनना चाहिए.
मसान होली किसे नहीं खेलनी चाहिए?
इसका उत्तर बहुत सरल है, लेकिन इसके लिए कुछ स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो सकती है. संक्षेप में कहें तो, विद्यार्थी, बुजुर्ग, विवाहित लोग (पुरुष और महिला दोनों), बच्चे और कोई भी व्यक्ति जिसने अपनी सांसारिक और भौतिक इच्छाओं का त्याग नहीं किया है, उसे मसान होली नहीं खेलनी चाहिए.
श्मशान घाट और वहां मौजूद राख ऐसी चीज नहीं है जिसके साथ खेला जाना चाहिए, वास्तव में, श्मशान घाट में किसी को भी यूं ही प्रवेश नहीं करना चाहिए. केवल श्मशान घाट के अंदर प्रवेश करने के लिए नियम और कानून हैं. और सभी नियमों के बावजूद, यह देखना दुखद है कि लगभग कोई भी व्यक्ति प्रचलन के लिए और पर्याप्त जानकारी न होने के कारण मसान होली खेल रहा है.
इसके अलावा, एक व्यक्ति जो विवाहित है, उसका परिवार है या अभी भी पढ़ाई कर रहा है या अपने जीवन के चरम पर है, अगर वह मसान होली खेलना शुरू कर देता है और मृतकों की राख से खुद को रंगता है, तो यह उसके लिए कैसे सही है? एक जीवित इंसान जिसका दुनिया से रिश्ता और संबंध है, उसे ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिसमें मृतक शामिल हों.
महिलाओं की एंट्री पर क्यों लगा प्रतिबंध?
इस समारोह को बाबा महाश्मशान नाथ समिति आयोजित कर रही है. समिति ने अनुमान लगाया है कि इस वर्ष भीड़ की संख्या बढ़ सकती है. भारी भीड़ और हुड़दंग के कारण महिलाओं की सुरक्षा को देखते हुए उनके प्रवेश पर रोक लगाई गई है. समिति ने महिलाओं से आग्रह किया है कि वे इस पर्व को नाव और बजड़ों पर बैठकर देख सकती हैं. इसके अलावा वे कॉरिडोर से भी इसे देख सकती हैं.
इस समय शुरू होगा कार्यक्रम
11 मार्च को काशी के मणिकर्णिका घाट पर मसान की होली खेली जाने वाली है. इस अनोखी होली को चीता भस्म होली के नाम से भी जाना जाता है. होली का कार्यक्रम दोपहर 12 बजे से शुरू हो जाएगा. समिति के प्रमुख अध्यक्ष गुलशन कपूर ने बताया है कि होली का समारोह मसान नाथ की गर्भगृह में पूजा के बाद शुरू होगा.
Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी सामान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)
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मसाने की होली
आखिर क्या है काशी की मसान होली जिसे हर किसी को नहीं खेलना चाहिए, इस बार महिलाओं की एंट्री होगी बैन?