डीएनए हिंदी: Tulsi Vivah, Katha in Hindi- तुलसी पूर्व जन्म मे एक लड़की थी,जिसका नाम वृंदा था. राक्षस कुल में जन्मी यह बच्ची बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी, जब वह बड़ी हुई तो उसका विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जलंधर से संपन्न हुआ. इस साल तुलसी विवाह 4 नवंबर को है और ये कथा सुने बगैर तुलसी विवाह संपूर्ण नहीं होगा.

Tulsi Katha in Hindi

एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फैंक दिया था, उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया. यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना. इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था.दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ, अपनी सत्ता के घमंड में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया. वहां से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया

भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धरकर माता पार्वती के पास गए, लेकिन मां ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया और वहां से अंतर्ध्यान हो गईं. देवी पार्वती ने गुस्से में आकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया. जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी, उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से ही जालंधर कभी मरता नहीं था और ना ही हारता था. इसलिए उसे मारने के लिए वृंदा के पतिव्रता धर्म को भंग करना जरूरी था.

इसी कारण भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुंचे,जहां वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं. भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं. ऋषि ने वृंदा के सामने पल में दोनों को भस्म कर दिया. उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा, ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए. एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में उसकी गर्दन. अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्छित हो कर गिर पड़ीं, होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें

भगवान ने अपनी माया से पुन:जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया, लेकिन स्वयं भी वह उसी शरीर में प्रवेश कर गए. वृंदा को इस छल एहसास नहीं हुआ. जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया, ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया

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कैसे बनीं तुलसी

इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया. अपने भक्त के श्राप को भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गये, सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रम्हांड में असंतुलन की स्थिति हो गई। यह देखकर सभी देवी देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान् विष्णु को श्राप मुक्त कर दे।

वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया, जहां वृंदा भस्म हुईं,वहां तुलसी का पौधा उग गया. भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा- हे वृंदा, तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो. अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी. तब से हर साल कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा.

इतिहास

उसी दैत्य जालंधर की यह भूमि जलंधर नाम से विख्यात है, सती वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है. कहते हैं कि इस स्थान पर एक प्राचीन गुफा भी थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी. सच्चे मन से 40 दिन तक सती वृंदा देवी के मंदिर में पूजा करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं

जिस घर में तुलसी होती हैं, वहां यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते, ऐसा मानते है कि मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है. जो मनुष्य तुलसी व आंवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं

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Tulsi vivah katha in hindi shaligram kaise hua tulsi ka janm vrat ke din tulsi ki ye kahani sune
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कैसे वृंदा से बनी तुलसी, कहां उगा पौधा, तुलसी विवाह के दिन ये कथा जरूर सुनें
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Tulsi Vivah Katha: कैसे वृंदा से बनी तुलसी, कहां उगा पौधा, तुलसी विवाह के दिन ये कथा सुनना है जरूरी