डीएनए हिंदी: द्वारका और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) के निधन के बाद उन्हें मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के नरसिंह पुर जिले के झोतेश्वर में परमहंसी गंगा आश्रम में भू-समाधि दी गई. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई अन्य हस्तियों ने शंकराचार्य के निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित की. अलग अलग धर्म मे अलग अलग रूप में अंतिम संस्कार किया जाता है. हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद लोगों का अंतिम संस्कार जलाकर किया जाता है लेकिन यहां साधु-संतों का अंतिम संस्कार अलग तरह से किया जाता है. साधु-संतों की मृत्यु के बाद उन्हें भू-समाधि (Bhu-Samadhi) या जल समाधि दी जाती है.
यह भी पढ़ें- पीली सरसों का वास्तु उपाय, दूर हो जाएगी घर की परेशानियां
1981 में मिली थी स्वरूपानंद सरस्वती को शंकराचार्य की उपाधि
शंकराचार्य स्वरुपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दीघोरी गांव में हुआ था. 5 भाइयों में सबसे छोटे स्वरुपानंद सरस्वती के बचपन का नाम पोथीराम उपाध्याय था. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 9 साल की उम्र में ही अपना घर छोड़ दिया था जिसके बाद उन्हें करपात्री जी महाराज का सान्निध्य प्राप्त हुआ और वहां से उनके स्वरुपानंद सरस्वती बनने का सफर शुरू हुआ. वर्ष 1981 में स्वरुपानंद सरस्वती को शंकराचार्य की उपाधि मिली थी.
यह भी पढ़ें- कब है करवा चौथ का व्रत, शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, सामग्री और क्या है उस दिन खास संयोग
कैसे दी जाती है भू- समाधि
साधु-संतों के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार संप्रदाय पर निर्भर करता है. वैष्णव संतों के मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार अग्नि संस्कार के रूप में किया जाता है. साधु-संतों के लिए अग्नि का सीधे स्पर्श करने की मनाही होती है इसलिए उनकी मृत्यु के बाद उन्हें भू समाधि या जल समाधि दी जाती है. भू-समाधि के लिए साधु-संतों को सिद्धिसन या पद्मासन की मुद्रा में बिठाकर जमीन में दफना दिया जाता है साथ ही उनसे जुड़ी चीजों को भी उनके पास रख दिया जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इं
- Log in to post comments
Swaroopanand Saraswati: आग के हवाले नहीं किया जाता है साधु संतों के शव को, जानिए उन्हें कैसे दी जाती है भू-समाधि