डीएनए हिंदीः पितृपक्ष में नारायणबलि या नागबलि पूजा विशेष श्राद्ध माना गया है. ये विशेष श्राद्ध पूजा किन लोगों के लिए बहुत जरूरी है और इस पूजा के पीछे कारण क्या है, इससे जुड़ी बातें आज आपको इस खबर में बातएंगे.
असल में ये पूजा प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने या पितृदोष से मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण मानी गई हैऋ नारायणबलि पूजा तब होती है जब परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक या अकाल मृत्यु हुई हो. शास्त्रों में पितृ दोष निवारण के लिए नारायणबलि.नागबलि कर्म करने का विधान है का भी उल्लेख है.
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पितृ दोष को शांत करने का बहुत ही महत्वपूर्ण समय पितृपक्ष माना गया है. डृदोष कई कारणों से लगता है उसमें एक बड़ा कारण परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार न करना या श्राद्ध के समय पिंडदान-तर्पण न करना भी होता है. तब पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान किया जाता है.
किसको करना चाहिए नारायण नागबलीप्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है. परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु जैसे आत्महत्या, पानी में डूबने से, जलने या किसी भी दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है.
क्यों की जाती है यह पूजा
शास्त्रों में पितृ दोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है. यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है, इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है. यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है, जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है. जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं. संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए. यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है. यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है. घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं. माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है.
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कब नहीं की जा सकती है नारायण-नागबलि
नारायणबलि कर्म पौष तथा माघा महीने में तथा गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए. लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है. नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है.
धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है. कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं. इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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Pitru Paksha 2022: पितृपक्ष में क्यों होती है नारायणबलि या नागबलि पूजा, किसे करना चाहिए ये विशेष श्राद्ध