डीएनए हिंदीः गया के पंचवेदी पर श्राद्ध और पिंडदान से पितर को प्रेत योनी से मुक्ति मिलती है. श्राद्ध पूजा में यहां सत्तू उड़ाना बहुत जरूरी माना गया है वरना पूजा का फल पूर्वजों को नहीं मिल पाता है. 

हर किसी को कभी न कभी अपने मृत पूर्वजों की मुक्ति के लिए गया में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने आना ही होता है. गयाजी में पिंडदान का विशेष महत्व होता है. पितृपक्ष के दूसरे दिन पंचवेदी में कर्मकांड किया जाता है. ब्रह्मकुंड और प्रेतशिला में पिंडदान ब्रह्ना जी के पद चिन्ह पर किया जाता है और धर्मशीला पर सत्तू उड़ाकर पितर को याद किया जाता है. 

“उड़ल सत्तू पितर को पैठ” बोलते हुए सत्तू उड़ाया जाता है और पांच बार परिक्रमा किया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.

यह भी पढ़ें:  Pitru Paksha 2022: पुत्र की जगह कौन कर सकता है पिंडदान? पत्नी और दामाद को भी श्राद्ध का अधिकार

इन जगहों पर पिंडदान करने का विशेष महत्व
बिहार की धार्मिक नगरी गया जी में त्रैपाक्षिक कर्मकांड करने वाले पिंडदानी आज पिंडदान कर रहे हैं. इसके साथ ही प्रेतशिला में पिंडदान करने का महत्व है. पितृपक्ष के दूसरे दिन गया में पंचवेदी यानी प्रेतशिला, रामशिला, ब्रह्मकुंड, कागबली और रामकुंड में पिंडदान किया जाता है. पिंडदानी इन पांचों वेदियों पर पिंडदान करते हैं. इन पांचों वेदियों में प्रेतशिला सबसे प्रमुख पिंड वेदी माना गया है.

पितृपक्ष में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान जारी है. प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध उन लोगों को किया जाता है,  जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ हो. इस दिन श्राद्ध कर्म करने वालों को धन.सम्पत्ति में वृद्धि होती है. वहीं पूर्वज को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.

वहीं, प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ कहा जाता है. इस पहाड़ पर आज भी भूत-प्रेतों का वास है. जहां हजारों की संख्या में पिंडदानी 676 सीढ़ियां चढ़कर पिंडदान करने पहुंचे हुए हैं. इस पर्वत पर पिंडदानी सत्तू उड़ाकर पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं.

यह भी पढ़ें ः Pitru Paksha 2022: गया में पिंडदान से पहले जरूर कर लें ये काम, वरना पूजा हो जाएगी बेकार

“उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो”
मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने कहा कि इस पहाड़ पर बैठकर उनके पद चिन्ह पर पिंडदान करना होता है. जिसके बाद पीतर को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है. इस पर्वत पर तीन स्वर्ण रेखा है. तीनों स्वर्ण रेखा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव विराजमान हैं. उसी पर्वत को प्रेतशिला कहा गया और ब्रहा जी के पदचिह्न पर पिंडदान होता है. इस पर्वत पर धर्मशीला है, जिस पर पिंडदानी ब्रह्ना जी के पद चिन्ह पर पिंडदान करके धर्मशीला पर सत्तू उड़ाते हैं. “उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो”. सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितर को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जाती है. प्रेतशिला पर भगवान विष्णु की प्रतिमा है.

तिल और सत्तू अर्पित करते हुए, करें ये प्रार्थना: 

सत्तू में तिल मिलाकर अपसव्य से दक्षिण-पश्चिम होकर, उत्तर, पूरब इस क्रम से सत्तू को छिंटते हुए प्रार्थना करें कि हमारे कुल में जो कोई भी पितर प्रेतत्व को प्राप्त हो गए हैं, वो सभी तिल मिश्रित सत्तू से तृप्त हो जाएं. फिर उनके नाम से जल चढ़ाकर प्रार्थना करें. ब्रह्मा से लेकर चिट्ठी पर्यन्त चराचर जीव, मेरे इस जल-दान से तृप्त हो जाएं. ऐसा करने से उनके कुल में कोई प्रेत नहीं रहता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर

 

Url Title
Pitru Paksha gaya Pind Daan necessary to blow sattu on Panchvedi get rid of phantom vagina Pret Yoni ShShraddh
Short Title
पंचवेदी पर पितृ को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए जानें क्यों सत्तू उड़ाना है जरूरी
Article Type
Language
Hindi
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
पंचवेदी पर पितृ को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए जानें क्यों सत्तू उड़ाना है जरूरी
Caption

पंचवेदी पर पितृ को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए जानें क्यों सत्तू उड़ाना है जरूरी

Date updated
Date published
Home Title

Pitru Paksha 2022: गया में पंचवेदी पर पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए सत्तू उड़ाना क्यों है जरूरी