डीएनए हिंदीः हिंदू धर्म में न केवल यह माना गया है कि मृत्यु के बाद पुनर्जन्म होता है, बल्कि यह भी माना जाता है कि मौत के बाद हर इंसान अपने कर्मों के आधार पर किसी न किसी योनी में जाता जाता है. तो चलिए आपको विभिन्न योनियों के अलावा यह भी बताएं कि पुनर्जन्म के बाद परिजनों द्वारा किया गया श्राद्ध का फल नए जन्म में मिलता है या नहीं.
कर्मों की गति के अनुसार मरने के बाद हर आत्मा किसी न किसी योनी में रहती है. यदि किसी को नहीं मिली है तो वह प्रेत योनि में चला जाता है. योनी तभी मिलती है जब मृत व्यक्ति ने अपने जीवन काल में कुछ अच्छे कर्म किए हों. अच्छे कर्म के अनुसार मृतक को पितृलोक या देवलोक में कुछ काल रहने के बाद पुनः मनुष्य योनि मिलती है और वहीं, कुछ पवित्र आत्माओं को मोक्ष यानी जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है.
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जिस आत्मा को प्रेत योनि मिलती है और जो पितृलोक चले जाते हैं उनके लिए भी श्राद्ध कर्म किया जाता है. अब सवाल यह है कि क्या जिनका दूसरा जन्म हो चुका है क्या उन्हें भी श्राद्ध का फल मिलता है? तो चलिए इसके बारे में जानने से पहले यह जानें कि इंसान मरने के बाद किस गति को प्राप्त होता है यानी कितनी तरह की योनी में जा सकता है और किसके लिए कौन सी योनी निर्धारित है यह भी समझें.
प्रेत योनि
प्रेतयोनि में जाना दुर्गति है. इसलिए पितृपक्ष में जब इनका पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है तो इन्हें सदगति मिलती है और इनके कर्मों का पाप या फल कुल को नहीं मिलता. जो पूर्वज पितृलोक नहीं जा पाते या जिन्हें दोबारा जन्म नहीं मिला ऐसी अतृप्त और आसक्त भाव में लिप्त आत्माओं के लिए गया में पिंडदान किया जाता है. गया में श्राद्ध करने के बाद अंतिम श्राद्ध बदरीका क्षेत्र के ब्रह्मकपाली में करना होता है, जहां से आत्मा प्रेत योनी से छूटकर मनुष्य योनी में जन्म ले लेती है या पितृलोक में पितरों के साथ निश्चित काल के लिए चली जाती है.
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पितृलोक या देवलोक
पितृलोक में आत्मा का आना सौभाग्य सूचक होता है और यहां आत्माएं अपने पूर्वजों से मिलती हैं और हर दुख-कष्ट से मुक्त होकर यहां सुख भोगती हैं और एक निश्चित समय पर मनुष्य का शरीर धारण करती हैं.जब धरती पर पितृपक्ष प्रारंभ होता है तब ऐसी ही हमारे पितृ अपने वंशजों को देखने के लिए धरती पर आते हैं और उनके द्वारा किए जा रहे श्राद्ध कर्म का भोग ग्रहण करके उन्हें आशीर्वाद देकर उनके दुखों को मिटा देते है. यजुर्वेद में उल्लेखित है कि शरीर छोड़ने के पश्चात वो आत्माएं ब्रह्मलोक में जा कर ब्रह्मलीन होती हैं जिन्होंने अपने जीवनकाल में सतकर्म किए होते हैं. ऐसी आत्मा देवलोक में वास करती है.
पुनर्जन्म
प्रेत योनि पहुंची आत्माएं शरीर को पाने के लिए भटकती हैं और नए शरीर मिलते ही इनका पुनर्जन्म हो जाता है. जन्म लेने वालों में भी जरूरी नहीं कि वे मनुष्य योनि में ही जन्म लें. कर्मों के अनुसार जन्म किसी भी जीव के रूप में हो सकता है. बात दें कि ऐसी आत्माओं का किसी भी जीव के रूप में जन्म हो जाए और अगर इनके परिजन इनका श्राद्ध करते हैं तो उसका फल उन्हें पुनर्जन्म में भी मिलता है और उनके पूर्व कर्म से मिलने वाले कष्ट दूर होते हैं. असल में अन्न-जल को अग्नि में दान करने से अग्नि उक्त अन्न-जल को हमारे पितरों तक पहुंचाकर उन्हें तृप्त करती है. श्राद्ध और तर्पण जिसके निमित्त किया गया उस तक जल और अग्नि के माध्यम से यह सुगंध रूप में पहुंचकर उन्हें तृप्त करता है. वास्तव में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध में दिए गए भोजन का सूक्ष्म अंश परिणित होकर उसी अनुमात और मात्रा में प्राणी को मिलता है जिस योनि में वह प्राणी वर्तमान में है. इस संबंध में पुराणों में कई जगहों पर उल्लेख मिलता है कि उस जीवित प्राणी को भी श्राद्ध के भोग का अंश मिलता है जिससे कि उसका हृदय तृप्त हो जाता है. जल, अग्नि और वायु उसके अंश को पहुंचाने में माध्यम बनते हैं.
यमलोक की यात्रा
आत्मा सत्रह दिन तक यात्रा करने के पश्चात अठारहवें दिन यमपुरी पहुंचती है. गरूड़ पुराण में यमपुरी के इस रास्ते में वैतरणी नदी का उल्लेख मिलता है. वैतरणी नदी विष्ठा और रक्त से भरी हुई है. जिसने गाय को दान किया है वह इस वैतरणी नदी को आसानी से पार कर यमलोक पहुंच जाता है अन्यथा इस नदी में वे डूबते रहते हैं और यमदूत उन्हें निकालकर धक्का देते रहते हैं.
यमपुरी पहुंचकर आत्मा एक और नदी के पास पहुंच जाती है जिसका जल स्वच्छ होता है और जिसमें कमल के फूल खिले रहते हैं. इसी नदी के किनारे छायादार बड़ का एक वृक्ष होता है, जहां आत्मा थोड़ी देर विश्राम करती हैं. यहीं पर उनके परिजनों द्वारा किए गए पिंडदान और तर्पण का भोजन मिलता है जिससे उसमें पुनः शक्ति का संचार हो जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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