डीएनए हिंदी: Navratri First Day Devi Parvati/ Shailputri- BK Yogesh नवरात्रि (Navratri 2022) में देवी मां के नौ स्वरूपों (Devi Maa Nine Swarup) की पूजा की जाती है, देवी के नौ स्वरूपों का मतलब नौ शक्तियां, जैसे आत्मा की शक्तियां हैं, ठीक वैसे ही देवी के नौ स्वरूप अलग अलग शक्तियों को दर्शाते हैं. नवरात्रि के पहले दिन (Navratri First Day) मां शैलपुत्री यानि देवी पार्वती का पूजन किया जाता है. शैलपुत्री का पूर्व जन्म सती के अगले जन्म के रूप में दर्शाया गया है. आज हम आपको पार्वती किस शक्ति का प्रतीक हैं जिसे हमें भी अपने जीवन में धारण करना चाहिए, ब्रह्माकुमारीज हमें नौ दिनों तक लगातार बताएंगी कि देवियों के स्वरूपों में कौन सी शक्ति छिपी है और उसका महत्व क्या है.
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विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति (Power of Detachment and Withdraw)
ब्रह्माकुमारीज की सीनियर राजयोगा टीचर और मोटिवेशनल स्पीकर बीके उषा ने बहुत ही बेहतरीन तरीके से देवी की शक्तियों को आत्मा की अष्ट शक्तियों का साथ मिलाया है और हमें ये समझाने की कोशिश की है कि कैसे हम सिर्फ देवी की पूजा ना करें बल्कि उनकी शक्तियों को अपने जीवन में धारण भी करें.
देवी पार्वती में विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति है. ठीक वैसे ही हमें भी अपने जीवन में कोई भी परिस्थिति आए उससे डीटैच होकर हैंडल करना सिखना है. सही समय पर परिस्थिति से खुदको अलग कर लेना, आत्मा का जीवन जीने का तरीका है. कोई भी परिस्थिति या लोग हमपर हावी ना हो, हम न्यारे और प्यारे होकर किसी भी हालात से लड़ सकें. आत्मा के अंदर ये शक्ति होनी चाहिए कि वो खुद को किसी भी बात से अलग रख सके. किसी भी बात का सामना बगैर हलचल में आए कर सके. कोई कैसा भी व्यवहार करे, हमें प्रभावित नहीं होना है. बातें तो आएंगी लेकिन हम उन कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कैसे स्थिर रहते हैं, ये महत्वपूर्ण है. अगर हम किसी भी बात को दिल से लगाकर हैंडल करेंगे तो उसका सही समाधान नहीं निकाल पाएंगे इसलिए डिटैच होने से हम दूसरों को भी शक्तिशाली बना सकते हैं.
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दूसरों को चेंज करने के बारे में ना सोचें बल्कि खुद को परिवर्तन करने की प्रतिज्ञा लें. जब आत्मा की शक्ति बढ़ जाएगी तब किसी के खराब व्यवहार पर भी हम अस्थिर नहीं होंगे. लोग अलग अलग संस्कारों के होते हैं, फिर भी हमें हर हालातों में खुद को शांत रखना है. किसी भी बड़ी चीज को छोटे में समेट लेना है. जैसे कछुआ करता है.
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हमें अपने अंदर की शक्ति का आह्वाण करना है. पार्वती जी हमें यही सिखाती हैं. परिवर्तन करने के की शक्ति, जिसके लिए वे हमेशा तैयार रहती हैं. जब शंकर जी तपस्या के लिए चले गए तब पार्वती जी ने यहीं रहकर अपने आपके दिव्य गुणों को निखारा, वे इस दुनिया से अलग नहीं गई.इसका मतलब ही है हमें गृहस्थ में रहना है, परिवार, समाज के बीच रहना है लेकिन अपने शरीर और संबंधों से डीटैच होकर चलना है, ताकि हमें दुख ना हो. हमें खुद को बदलने के लिए हमेशा तैयार रहना है. दूसरों को नहीं बदलना, दूसरों से उम्मीद नहीं करनी है.
पार्वती (Devi Parvati) जी के साथ जो दो गाय दिखती हैं, वे भी दिव्यता और दाता की प्रतीक हैं. गाय जो बगैर किसी उम्मीद के बस देती ही जाती है, गाय से मिलने वाली हर चीज हम अपने जीवन में इस्तेमाल करते हैं, लेकिन बदले में वो कुछ नहीं मांगती. इसका मतलब हमें भी दूसरों को बस देना है, किसी से लेने की उम्मीद नहीं करनी है,
कैसे पड़ा शैलपुत्री का नाम (Why the Name 'Shailputri,' Katha)
कथा के अनुसार, सति के पिता ने जब यज्ञ का आह्वान किया तो सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया लेकिन शिव जी को नहीं दिया, जिसका सती ने विरोध किया. जब परिवार के अन्य सदस्यों ने गलत शब्दों का उपयोग करके उन्हें अपमानित किया तब वह यज्ञ कुंड में जाकर कूद गईं क्योंकि उन्हें शिव के प्रति इतना आदर और सम्मान भाव था कि वे उनके लिए प्राण देने से भी नहीं चूंकि. इसलिए आगे वर्णन है कि दूसरे जन्म में वो शैलराज की पुत्री के रूप में जन्म लेती हैं, इसलिए उनका नाम शैलपुत्री पड़ा. शैलपुत्री मतलब पर्वत की कन्या, वैसे भी भारत में जहां कहीं भी कन्या का जन्म होता है तो कहा जाता है कि लक्ष्मी आ गई.कन्या को लक्ष्मी का पवित्र स्वरूप माना जाता है, जिनके पैदा होने से ही पवित्रता का आभामंडल फैल जाता है, जब भी कन्या का जन्म होता है तो चारों ओर पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा आ जाती है.
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शैलपुत्री पवित्रता का प्रतीक (Shailputri is Symbol of Purity)
जब भी कन्या का जन्म हो, पवित्रता की शक्ति उसके साथ आती है अर्थात एक सकारात्मक ऊर्जा सारे घर के अंदर फ़ैल जाती है. पवित्र स्वरूप बड़ा ही निर्मल स्वरूप होता है - पवित्रता अर्थात निर्मलता का सूचक कमल का फूल दिखाया गया है. त्रिशूल अर्थात इस कन्या के अंदर तीनों ही स्वरूप हैं. मां दुर्गा, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती का स्वरूप है. मां शैलपुत्री का स्वरूप हमें यह प्रेरणा देता है कि ऐसी देवी (कन्या) के जन्म पर हमें शोक नहीं करना है, हर रीति से उसका स्वागत करना है, उस ऊर्जा को सारे घर के अंदर और प्रवाहित करने देना है
भावार्थ यह है कि वर्तमान समय में शैलपुत्री के माध्यम से मनुष्य को यह संदेश जाता है कि कभी भी ऐसी पुत्री की भूल के भी कभी भ्रूण हत्या नहीं करनी चाहिए, ऐसा इसलिए है कि एक देवी की हत्या करने का जो पाप है, वो बहुत अधिक बढ़ गया है. अर्थात नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री का दिन यह संदेश देता है कि कन्या का स्वागत करो, कन्या को सम्मान दो और वो कन्या के पवित्र आभामंडल की रोशनी को अपने जीवन के उत्थान के लिए स्वीकार करें. भ्रूण हत्या करके देवी की पूजा करने का कोई फायदा नहीं है. घर में आई लक्ष्मी का त्याग कर दें और फिर मंदिर पूजा करने जाए तो उससे प्राप्ति क्या होगी? यह कन्या भी शिव शक्ति है और शिव शक्ति के रूप में, एक वरदान के रूप में आपको प्राप्त हुई है क्योंकि जो इस शक्ति का सम्मान करता है, परमात्मा शिव के भी आशीर्वाद के पात्र बन जाता है
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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First Day Shailputri: समेटने की शक्ति का प्रतीक हैं देवी पार्वती- ब्रह्माकुमारीज