सनातन धर्म में संन्यास को ईश्वर का मार्ग और साधु-संतों (Sadhu Sant) को भगवान की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है. साधु संतों में भी वेशभूषा और उनके इष्ट देव अलग होते हैं. उन्हें पाने के लिए भौतिक चीजों को त्यागकर सत्य व धर्म के मार्ग पर निकल पड़ते हैं. इनमें कोई साधु संत पीले तो कोई गेरुआ, केसरिया कपड़े धारण कर लेते हैं, लेकिन इसी मार्ग पर चलने वाले नागा साधु (Naga Sadhu) कभी भी कपड़े धारण नहीं करते हैं. ये तपतपाती धूप और कंपकपाती ठंड में नग्न हालत में धूनी लपेटे भगवान शिव की आराधना और जप तप करते हैं. इनकी दीक्षा आम संतों से अलग अखाड़ों में होती है. इनका जिम्मा संत समाज से लेकर धर्म की रक्षा करना होता है. इसके लिए नागा साधुओं को कमांडों से भी मुश्किल ट्रेनिंग दी जाती है. आइए जानते हैं आज की कड़ी नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया में जानते हैं कि कैसे नागा साधुओं का जीवन बेहद मुश्किल होता है. ये योद्धाओं की तरह लड़ते हैं और धर्म की रक्षा करते हैं.
ऐसे की गई नागा साधुओं की संरचना
दरअसल, 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म (Sanatana Dharm) की स्थापना के लिए देश के चारों कोनों पर चार पीठों का निर्माण किया था. इनमें गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ शामिल है. मठ मंदिरों और धर्म की रक्षा के लिए आदिगुरु ने सशस्त्र शाखाओं के रूप में 13 अखाड़ों की स्थापना की. 13 में से 10 अखाड़ों में नागा साधुओं को ट्रेनिंग और दीक्षा दी जाती है. वहीं 3 अखाड़ों में महिला नागा साध्वियां दीक्षा लेती हैं. नियमित रूप से नागा साधु योग, व्यायाम और शस्त्र अभ्यास करते हैं. नागा साधुओं की ट्रेनिंग अलग अलग चरणों में होती है. इनकी दिनचर्या सर्दी या गर्मी दोनों में एक जैसी ही रहती है.
योग के साथ तपस्या और रमाते हैं धूनी
नागा साधुओं के दीक्षा लेने से लेकर उनके आगे तक का पंथ कठिनाईयों से भरा होता है. कंपकपाती सर्दी हो या फिर तेज गर्मी इनकी दिनचर्या सुबह 3 बजे से शुरू हो जाती है. नागा साधु सुबह उठते ही स्नान के बाद तपस्या शुरू कर देते हैं. शुरुआत में नागा साधुओं को जप तप के साथ धूनी रमाना होता है. ये बड़, पीपल, बेर, आक, खैर और भगवान शिव को अति प्रिय धतूरा के पत्तों से धूनी रमाते हैं. आंखों से कितने भी आंसू आने पर भी ये धूनी से टस से मस नहीं होते. इसके बाद धूने से जो राख निकलती है यानी भस्म, उसे ही सारे नागा अपने शरीर पर मल लेते हैं. पहाड़ों में यही धूनी और उसकी भस्म बाबाओं को सर्दी से बचाती है.
शैव नागा खुद करते हैं अपना पिंडदान
शैव नागा छह साल तक नियमित धूना रमाते हैं. इसके बाद इन्हें नपुंसक बनने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इस दौरान उन्हें शारीरिक के साथ ही मानसिक रूप से भी काफी कष्ट होता है. इसके बाद नागा साधुओं को खुद ही अपना पिंडदान करना होता है. इसके बाद ही दिनचर्या और भी कठोर हो जाती है. नागाओं को दिन और रात घंटों तप करना पड़ता है. इन्हें कड़कड़ाती सर्दी में भी कुछ पहनने की अनुमति नहीं होती. नागा खुद को शिव का गण मानते हुए, जितने कष्ट स्वामी ने सहे हैं. उतने ही गणों को खुद भी सहने का प्रयास करते हैं. यह इच्छा शक्ति और तप नागाओं को बेहद मजबूत कर देती है.
आग और बर्फ में बैठकर करते हैं तप, कई दिनों तक रहते हैं भूखे
नागा साधु सर्दी में बर्फ और गर्मी में आग के सामने बैठकर घंटों तप करते हैं. इस दौरान वह पूरी तरह से नग्न रहते हैं. इन्हें एक मिनट के लिए ध्यान नहीं तोड़ना होता है. तमाम कष्टों के बाद भी तपस्या जारी रहती है. अखाड़ों में नागा साधुओं को 24 घंटे में सिर्फ 1 बार भोजन करने की अनुमति दी जाती है. कई बार इसे भी निरस्त कर दिया है. इस तरह से नागा साधुओं को भूख लगने पर भी खाने दूर रखकर शक्तियों को विकसीत किया जाता है.
अखाड़े में कोतवाल से लेकर होते हैं पंच सब
अखाड़े में नागार साधु कारोबारी, कोतवाल, पंच सब की श्रेणी में अलग अलग होते हैं. अखाड़े के कामकाज और उनकी योग्यता के हिसाब से ही उन्हें पदवी दी जाती है. हालांकि नागाओं को अपने सभी काम खुद करने होते हैं. कुंभ के शाही स्नान में नागाओं के हाथ में एक डंडा दिखाई देता है. चांदी से बने इस डंडे के ऊपर अशोक की लाट जैसी चार शेरों की मूर्ति होती है. इसे दंड कहते हैं और शाही पेशवाई में कोतवाल इसे लेकर चलते हैं. यह परंपरा तबसे शुरू हुई, जब मुगलों ने कुंभ का आयोजन बंद कर दिया था.
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ब्लैक कैट कमांडो से भी कठिन है ट्रेनिंग
बताया जाता है कि नागा साधुओं को ब्लैक कैट कमांडो से भी ज्यादा कठिन ट्रेनिंग दी जाती है. भगवान शिव के सभी 51 तरह के शस्त्रों को चलाना सिखाया जाता है. इसके लिए पहले इन्हें मजबूत कर दिया जाता है. नागा साधुओं अगर 5 दिन तक भी खाना न मिले तब भी ये जिंदा रह सकते हैं. हर मौसम में इनकी दिनचर्या एक जैसी रहती है, जिसमें इन्हें सुबह 3 बजे उठकर स्नान से लेकर तप करना होता है. तब जाकर 24 घंटे में सिर्फ एक बार भोजन करते हैं.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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कमांडो से भी ज्यादा कड़ी होती है Naga Sadhus की ट्रेनिंग, धर्म की रक्षा के लिए रहते हैं सबसे आगे