डीएनए हिंदी : मुहर्रम को इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना माना जाता है. इस पहले महीने को आम तौर पर 'ग़म के महीने' या 'मातम के महीने' के नाम पर सम्बोधित किया जाता है. आम तौर पर इस महीने में कोई भी पाक काम मसलन शादी-ब्याह, हज या जकात नहीं किया जाता है. ग़मी के चांद के इस पूरे महीने में दसवें दिन (Muharram 2022) को ख़ास अहमियत मिली हुई है. कहा जाता है कि इस दिन हजरत मोहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन, उनके परिवार और उनके दोस्तों की हत्या कर दी गई थी. उनकी हत्या 680 ईस्वी में कर्बला की जंग के दौरान हुई थी. आइए जानते हैं इस महीने मुहर्रम के बारे में विस्तार से और समझते हैं क्यों यह दिन इस्लाम के दो पंथों शिया और सुन्नी के बीच तकरार की वजह लाता है...
सुन्नी रखते हैं रोज़ा, शिया निकालते हैं ताज़िया
माह ए ग़म माने जाने मुहर्रम से मोहम्मद साहब की जान जाने की घटना जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि उन्होंने इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी ज़िन्दगी क़ुर्बान कर दी. इस त्योहार को शिया-सुन्नी दोनों अलग-अलग तरीके से मनाते हैं. इस माह के दसवें दिन शिया मुसलमान हुसैन का नारा लगाते हैं, काले कपड़े पहनकर जुलूस निकालते हैं, वहीं सुन्नी समुदाय के लोग रोज़ा रखते हैं. यह रोज़ा दसवें दिन यानी 'रोज-ए-अशुरा' को रखा जाता है. कैलेंडर के हिसाब से इस बार 'रोज-ए-अशुरा' (Ashura Muharram 2022) 9 अगस्त को है. माना जाता है कि यह परम्परा हजरत मूसा ने शुरू की थी.
ऐसे शुरू हुआ था शिया-सुन्नी का झगड़ा
जानकारियों के अनुसार मुहर्रम के दौरान शुरू हुआ शिया-सुन्नी का झगड़ा दरअसल 632 ईस्वी में मोहम्मद साहब की मौत के बाद शुरू हुआ था. यह लड़ाई वास्तव में उनकी मौत के बाद नए खलीफे को चुने जाने से लेकर शुरू हुआ था. कुछ लोग उनके करीबी अबू बकर के पक्ष में थे, वहीं कुछ लोग मोहम्मद साहब (Mohammad Shahab) के दामाद अली को खलीफा देखना चाहते थे. इस वजह से इस्लाम के दो हिस्से हो गए. अबू बकर को मानने वाला पक्ष सुन्नी कहलाया वहीं अली के पक्ष वाले शिया घोषित हुए. अबू बकर पहले खलीफा हुए और अली चौथे.
Muharram: मुहर्रम से होती है नए इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत, जानिए इसके पीछे की वजह
बाद में अली की खिलाफत मोहम्मद साहब की पत्नी आयशा (Mohammad Sahab Ayesha) ने की. दोनों के बीच युद्ध हुआ और आयशा हार गई. इस घटना के बाद दोनों ही समुदाय एक दूसरे के और ख़िलाफ़ हो गए.
670-750 ईस्वी में दोनों पक्षों के बीच फिर लड़ाई छिड़ गई, जिसे कर्बला की जंग कहा जाता है. इस जंग के दसवें दिन मोहम्मद साहब के नाती हजरत इमाम हुसैन की सगे सम्बन्धियों के साथ हत्या कर दी गई. शिया इस दिन को शहीदी दिवस के तौर पर मनाते हैं. उनकी याद में ताज़िया निकालते हैं. यह ताज़िया इमाम हुसैन (Tazia in Muharram) के मकबरे का एक प्रतीक होता है.
(Disclaimer: यह जानकारी प्रचलित कथाओं के आधार पर लिखी गई है. शोध का मुख्य स्रोत इंटरनेट है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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Muharram 2022 : ग़म का है यह त्योहार, सुन्नी रखते हैं रोज़ा, शिया निकालते हैं ताज़िया