डीएनए हिंदी: Mahalaya 2022 in Bengal- महालया (Mahalaya) से ही दुर्गा पूजा (Durga Puja 2022) की शुरुआत हो जाती है. बंगाल में जैसे दुर्गा पूजा का महत्व है ठीक उसी तरह से महालया का पर्व भी बहुत ही माइने रखता है. बंगाल में इस दिन का इंतजार हर कोई करता है क्योंकि इस दिन से ही देवी दुर्गा की (Devi Durga Murti) प्रतिमा को रंग चढ़ना, उनकी आंखें बनती हैं, उन्हें सजाया जाता है और मंडप में बिठाने की तैयारियां होने लगती है. आज हम आपको महालया क्या है और इसका इतिहास क्या है इसके बारे में बताएंगे
महालया के साथ ही जहां एक तरफ श्राद्ध (Shraddh 2022) खत्म हो जाते हैं वहीं मान्यताओं के अनुसार इसी दिन मां दुर्गा कैलाश पर्वत से धरती पर आगमन करती हैं और अगले 10 दिनों तक यहीं रहती हैं. इस साल महालया 25 सितंबर को है. सर्व पितृ अमावस्या (Pitru Amavasya 2022) या महालया अमावस्या के दिन ही पितृपक्ष खत्म हो रहे हैं.
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महालया का महत्व (Mahalaya Significance in Hindi)
बंगालियों का प्रमुख त्योहार के रूप में महालया (Bengal's Famous Festival Mahalaya) का दिन मनाया जाता है लेकिन इसे देशभर में धूमधाम से मनाते हैं.बंगाल के लोगों के लिए महालया पर्व का विशेष महत्व है. मां दुर्गा में आस्था रखने वाले लोग साल भर इस दिन का इंतजार करते हैं. महालया से ही दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है. यह नवरात्रि और दुर्गा पूजा की के शुरुआत का प्रतीक है.मान्यता है कि महिषासुर नाम के राक्षस के सर्वनाश के लिए महालया के दिन मां दुर्गा का आह्वान किया गया था.कहा जाता है कि महलाया अमावस्या की सुबह सबसे पहले पितरों को विदाई दी जाती है फिर शाम को मां दुर्गा कैलाश पर्वत से पृथ्वी लोक आती हैं और पूरे नौ दिनों तक यहां रहकर धरतीवासियों पर अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं.
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इतिहास (History of Mahalaya in Hindi)
सबसे अहम बात है कि इसी दिन से दु्र्गा पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती है. देशभर में नवरात्र को लेकर धूम होती है तो वहीं बंगाल में दुर्गा पूजा का इंतजार रहता है. इस दिन देवी दुर्गा के राक्षण वध की कहानी को सभी को सुनाया जाता है. देवी दुर्गा के अनेक रूपों को दर्शाया जाता है, सुबह सुबह टीवी पर बच्चों को महालया का नाटक दिखाया जाता है. मां दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले कारिगर यूं तो मूर्ति बनाने का काम महालया से कई दिन पहले से ही शुरू कर देते हैं लेकिन महालया के दिन तक सभी मूर्तियों को लगभग तैयार कर छोड़ दिया जाता है. देवी दुर्गा ने शक्ति स्वरूपा बनकर महिषाशुर का संघार किया था.
इस दिन ही पितृपक्ष का आखिरी दिन भी है. इसे सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है. इस दिन सभी पितरों को याद कर उन्हें तर्पण दिया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वह खुशी-खुशी विदा होते हैं. इस दिन के बाद से श्राद्ध के दिन खत्म हो जाते हैं और अच्छे दिन शुरू होते हैं
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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Mahalaya 2022: क्या है महालया, तिथि और इतिहास, बंगाल में क्यों मनाया जाता है यह त्योहार