डीएनए हिंदी: Maa Skandamata, Power of Cooperation- BK Yogesh- नवरात्रि का पांचवा दिन, (Navratri Fifth Day) इच्छाओं को पूर्ण करने वाली, देवी स्कंदमाता नव दुर्गा के पांचवा स्वरूप की उपासना का दिन है. स्कन्द कुमार की माता होने के कारण, मां दुर्गा के इस स्वरूप को स्कन्द माता के नाम से जाना जाता है. स्कन्द कुमार ही कार्तिकेय कुमार के नाम से भी जाने जाते हैं. ये देवी हमें सही और गलत की पहचान करना सिखाती हैं. यह देवी गायत्री का रूप हैं. ब्रह्माकुमारीज की सीनियर राजयोगा टीचर बीके उषा हमें देवियों के सभी स्वरूप हमें कौन सी शक्ति अपने अंदर धारण करने की प्रेरणा देते हैं वो बता रही हैं. 

हमारे अंदर वो शक्ति आए जिससे हम सही और गलत का निर्णय कर सकें, पहचान कर सकें. दूसरों के संकल्पों को कैच कर सकें और जरूरत पड़ने पर उन्हें सहयोग भी दे सकें. अगर किसी को सहयोग की जरूरत है तो उसकी मदद कर सकें. देवी हमें यही प्रेरणा देती हैं, एक मां जैसे हमेशा मदद के लिए तैयार रहती हैं, ठीक उसी तरह हमें भी मदद के लिए तैयार रहना चाहिए.

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स्कंदमाता और सहयोग की शक्ति

नवरात्रि का यह पांचवा दिन हमें बहुत बड़ा सन्देश दे रहा है कि अपने बच्चों की जिम्मेदारी, उसको संस्कार देने की जिम्मेदारी, उसे स्नेह से पालना देने की जिम्मेदारी को एक कर्तव्य समझ कर निभाना है, ताकि एक बहुत सुन्दर सृष्टि का निर्माण हो. यह भी एक सहयोग की शक्ति है जिसे माँ बाप दोनों को अपने बच्चों को प्रदान करना है. कहा भी जाता है कि सहयोग की शक्ति से बड़े से बड़ा कार्य भी संभव हो जाता है. गायन भी है कि श्रीकृष्ण ने बचपन में अपने मित्रों (ग्वाल-बाल आदि) के संग मिलकर गोवर्धन पर्वत को भी उठा लिया. स्वयं परमात्मा शिव हम सब ईश्वरीय संतानों के सहयोग से विश्व परिवर्तन रूपी बहुत बड़ा कार्य अभी पूरा कर रहे हैं. यह सहयोग की शक्ति असंभव को भी संभव बना देती है. जब निराकार शिव परमात्मा हम ईश्वरीय संतानों द्वारा विश्व को नर्क से स्वर्ग बनाने का सबसे बड़ा कार्य कर सकते हैं तो नारी शक्ति के लिए अपनी संतान को सुसंस्कृत करना क्या बड़ी बात है! यही है शिव शक्ति मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप मां स्कंदमाता का सन्देश है.

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एक मां होने की जिम्मेदारी

कहा जाता है मां स्कन्द की पूजा करने से, परिवार के अंदर आशीर्वाद प्राप्त होता है. इसलिए नारी का यह स्वरूप भी अति सम्माननीय, पूजनीय है. क्योंकि जब वो परिवार की वृद्धि करती और अपने बच्चे को स्नेह की पालना देते हुए, न्यारी और प्यारी होकर उनके अंदर स्नेह का सिंचन करती है, तो श्रेष्ठ संस्कारों का सिंचन करने के लिए धैर्यता चाहिए, वो वात्सल्य चाहिए, जिनके द्वारा हर रीति से बच्चों को एक मां के प्यार के आँचल की उसको सुरक्षा मिलती है लेकिन आज की दुनिया में देखा जाता है कि जहां नारियां भाग रहीं हैं, जीवन में आगे बढ़ने के लिए, या पैसे कमाने के लिए, तो कहीं ना कहीं उसका वात्सल्य भाव छूटता जा रहा है.

उस वात्सल्य भाव की कमी होने के कारण, जिस प्रकार बच्चों के अंदर आना चाहिए, वो संस्कार दे नहीं पा रही है. यही कारण है कि वह परिवार का सृजन (निर्माण) तो कर लेती है, लेकिन स्नेह और संस्कारों की पालना न मिलने के कारण, वही बच्चे समाज में मात-पिता का मान कायम नहीं रख पाते. तब उसको यह एहसास होता है कि आज उस बच्चे को जो संस्कार देना चाहिए था, वो उसने नहीं दिया. उस समय शायद बहुत देर हो चुकी होती है. आज हम देखते हैं कि बच्चों को जब अच्छे संस्कार नहीं मिलते हैं, तो किस प्रकार बुरी आदतों में फंस जाते हैं और उनके शिकार हो जाते हैं, और फिर उन बच्चों को कितना भी वापिस लाने का प्रयत्न करें, तो भी वो बच्चे उन बुरी आदतों से वापिस नहीं आते हैं.  

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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maa skandamata power of cooperation teaches us to decide right and wrong navratri in brahmakumaris
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Navratri: गलत और सही समझकर फैसला लेना सिखाती हैं स्कंदमाता- ब्रह्माकुमारीज
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