डीएनए हिंदी: Maa Kalratri, Power to Confront the Wrong- BK Yogesh- नवरात्रि के सातवें दिन मां काली का स्वरूप कालरात्रि देवी की पूजा होती है, जो हर प्रकार के असुरों (आसुरी प्रवृत्तियों) को समाप्त करने वाली देवी कहलाती हैं. ये देवी हमें गलत से लड़ने की ताकत देती हैं और हमारे अंदर इस शक्ति को भरने की प्रेरणा भी. ब्रह्माकुमारीज की सीनियर राजयोगा टीचर बीके उषा हमें रोजाना हर एक देवी के अलग अलग रूपों की महिमा और उनके अंदर कौन सी शक्ति समाई है, उसपर व्याख्यान देती हैं.
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सामना करने की शक्ति का प्रतीक (Power to Confront the Wrong)
जब हम देवियों की पूजा करते हैं, तो उनका बहुत सुन्दर सजा हुआ स्वरूप देखते हैं, उनके हाथों में अस्त्र-शस्त्र सुशोभित होते हैं, हर देवी को बड़ा ही श्रृंगारा हुआ दिखाया जाता है लेकिन सब देवियों के बीच एक देवी को बिल्कुल अलग दिखाते हैं, वो है काली मां. इनका स्वरूप बहुत ही अलग शक्ति का प्रतीक है. उसमें श्रृंगार और सुंदरता नहीं है, बल्कि शक्ति दिखती है. जो काली देवी का स्वरूप हमारे अंदर सामना करने की शक्ति का प्रतीक है.
जब हम सकारात्मकता, पवित्रता, दिव्यता को अपने अंदर धारण करते हैं, तो हमारे अंदर सुषुप्त शक्तियां जाग्रत होने लगती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम सदा सहन करें, सदा हरेक को और हरेक बात को समाते जाएंगे (एडजस्ट करते). जब हम सम्बन्ध-संपर्क में आते हैं, तो हमें यह ध्यान रखना होता है कि अगर सामने कुछ गलत हो रहा है, अन्याय हो रहा है, कुछ अनैतिक हो रहा है, तो हमें उसे उसे समाना, सहन और स्वीकार नहीं करना है. इसलिए काली मां का रूप, बाकी अष्ट शक्तियों से अलग दिखाया जाता है क्योंकि ये शक्तियां सकारात्मक और पवित्र हैं, लेकिन अगर इन सब शक्तियों को स्वरूप में लाना है तो यह शक्ति बहुत महत्वपूर्ण है.
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कहां समाना और कहां सामना करना है
हम कभी कभी गलत अभ्यास करने लगते हैं. दूसरों के गलत व्यवहार और निर्णयों के साथ एडजस्ट करके फिर उसे सहन करते हैं, और वो हमारे भाग्य को प्रभावित करने लगता है. तो यहां हमें समझना होगा कि सहन कहां करना है, सामना कहां करना है. हमें सहन औरों के संस्कारों के साथ करना है. यदि उनका संस्कार हमारे संस्कार से अलग है, तो हमें एडजस्ट कना है.
पुरानी बातों के विस्तार को हमें संकीर्ण करना है, और संस्कारों के साथ सहन करना है, किन्तु अनैतिक, अनुचित, अन्याय का सामना करना है. फिर भी हम कभी कभी अनजाने में किसी के संस्कारों का सामना करना शुरू कर देते हैं, की "मैं शांत क्यों रहूं?"
जहां गलत हो रहा है, वहां हम सहन करते जाते हैं, कोई घर में गलत चल रहा है, किसी घर में घरेलु हिंसा चल रही है, गाली दी जा रही हैं, किसी व्यापर में भ्रष्टाचार चल रहा है और चलता ही जा रहा है और अगर उस परिवार के सदस्यों को कहो कि यह आप क्या कर रहे हैं तो कहेंगे "क्या करें, परिवार है ना, एडजस्ट करके चलना पड़ता है, सहन करना पड़ता है". यहां हम सही निर्णय शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. परखने की शक्ति हमें मदद करती है कि कहां सहन करना है और कहाँ सामना करना है. तो संस्कारों के साथ एडजस्ट करना है और अनैतिक कार्यों का सामना करना है. तो सामना करना काली मां का स्वरूप है.
सामना करना क्या है?
जीवन में बहुत सी बातों का सामना करना पड़ता है. परिस्थितयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन सबसे पहले हमें अपनी कमज़ोरियों का सामना करना है, हमें अपनी खुद की कमजोरियों को स्वीकार या सहन नहीं करना है. सामना करना मतलब उसे देखना और समाप्त करना. उनके साथ एडजस्ट करके उन्हें अपने अंदर रहने नहीं देना है, यह नहीं कहना है कि चलो धीरे-धीरे जायेगा, पुराना संस्कार है, कोशिश कर रहे हैं, ऐसा कहकर हम अपने संस्कार के साथ एडजस्ट करते हैं. लेकिन नहीं अब हमें अपनी बुराइयों, कमज़ोरियों, विकारों, गलत आदतों पर काली रूप धारण कर उनका सामना करके उन्हें समाप्त करके ही छोड़ना है.
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काली माता के मुंड की माला का महत्व
काली माता के गले में भक्ति में मुंड की माला दिखाते हैं, जिसमें खोपड़ियां दिखाते हैं. वास्तव में वो खोपड़ियां (स्कल्स) एक एक विकार का प्रतीक हैं. उसने हर एक विकार पर विजय पाई है. इसलिए उसकी माला बनाकर मां के गले में पहनाया जाए. काली ने सारे विकारों पर विजय पाई है, क्योंकि उसमे से एक भी रह जाता, तो सारे विकार आ जाते। तो कभी-कभी हमारे अंदर कोई एक कमज़ोरी, बाकी विशेषताओं को भी ढक देती है क्योंकि वो एक कमज़ोरी हमारे ऊपर हावी हो जाती है. किसी भी कमज़ोरी को रहने नहीं देना है, इसलिए अटेंशन देना है, टेंशन नहीं रखनी. तो उस विकार का सामना करके हमें उसे ख़त्म करना है. बाहर समाज में जो हमें सही नहीं लगे कि यह नैतिक नहीं है, उसके खिलाफ भी खड़ा होना है, लेकिन सामना करने का तरीका बहुत स्पष्ट होना चाहिए कि हम गलत का साथ नहीं देंगे, हम उस गलत का हिस्सा नहीं बनेंगे। और हम सही मार्ग पर चलेंगे
काली देवी के एक हाथ में एक खोपड़ी दिखाते हैं, जो आधा होता है और उसमें से खून बाह रहा होता है और कहते हैं कि काली मां ने उस राक्षस को खा लिया, अतः वो उसे खाने का प्रतीक दिखाते हैं. इसका अर्थ है कि अगर अपनी कमज़ोरियों को ख़त्म करना है तो जो मुख्य असुर (विकार) है, उसे पूरी तरह से खा लो, अर्थात उसे पूरी तरह से ख़त्म कर दो. और वो प्रमुख विकार है - देह अभिमान अर्थात अहंकार, अहंकार से ही बाकी विकार आते हैं. तो मैं शरीर नहीं हूँ, मैं एक दिव्य, पवित्र आत्मा हूं. इसका पूरे दिन अभ्यास हमें देह अभिमान से देही अभिमानी की तरफ शिफ्ट करता है. जब हमने अपने अहंकार के विकार को खा लिया, तो बाकी सारे विकार तो ख़त्म हो गए. जब देह अभिमान ख़त्म हो गया तो कोई बात बुरी लगेगी ही नहीं, गुस्सा आएगा ही नहीं।
कहां समाना है और कहां सामना करना है
हमें यही जानना है कि कहां हमें सहन करना है, कहां समाना है, कहां एडजस्ट करना है, कहां विस्तार को संकीर्ण करना है और और कहां सामना करना है. इसे ही हम दूसरे शब्दों में लव और लॉ का बैलेंस करना कह सकते हैं. माँ वो नहीं जो बच्चे को सिर्फ प्यार करे, लेकिन माँ वो जो बच्चे पर सख्ती भी करे, उसमें अनुशासन भी लाये। तो सहन करने की भी शक्ति और सामना करने की भी शक्ति दोनों हों. तो हमें अपने जीवन में चेक करना है कि कौनसी कमज़ोरी बहुत समय से है. और उसके विपरीत गुण को गुणों के सागर सर्वशक्तिमान परमपिता शिव बाबा से लेकर समाप्त करना है. अतः जहां आवश्यक हो, हमें वहां सामना करना है, क्योंकि हमें स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन करना है. मैं आत्मा शक्ति हूं, काली माँ का स्वरूप हूं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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सुंदरता नहीं शक्ति का प्रतीक हैं मां कालरात्रि, गलत का सामना करना सिखाती हैं- ब्रह्माकुमारीज