डीएनए हिंदी: Maa Kali Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Significance on Diwali- क्या आप जानते हैं कि दिवाली (Diwali 2022) की रात लक्ष्मी माता के साथ साथ काली मां (Kali Puja 2022) की भी पूजा की जाती है, इसे काली चौदस (Kali Chaudas) कहते हैं, इस साल 23 अक्टूबर की रात चौदस लग रही है और 24 अक्टूबर की शाम तक पूजा हो सकती है. प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को काली चौदस पर्व मनाया जाता है. यह दिन काली मां को समर्पित होता है. आईए जानते हैं काली मां की पूजा का महत्व क्या है, क्यों खास है पूजा और क्या है शुभ मुहूर्त, बंगाल में कैसे खास तरीके से मनाते हैं काली पूजा
दिवाली पर क्यों होती है मां काली की पूजा (Diwali Kali Puja 2022)
काली चौदस के दिन विशेष रूप से मां काली की पूजा अर्चना की जाती है. काली चौदस को रूप चौदस या नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है. बंगाल में काली चौदस के दिन खास काली मां के मंदिर में जाकर पूजा की जाती है, ये पूजा रात को होती है और कई मंदिरों में मां के नाम से बलि भी दी जाती है. ऐसी मान्यता है इस दिन जो व्यक्ति पूजा और दीपक जलाता है उस व्यक्ति को तमाम तरह की परेशानियों और पापों से मुक्ति मिल जाती है
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क्या है मां काली की पूजा का महत्व (Maa Kali Puja Significance in Hindi)
काली मां को सब विकार और कष्ट संघारने के लिए पूजा जाता है, दिवाली से पहले रूप चौदस के दिन घर के कई हिस्सों में यम के लिए दीपक जलाते हैं. इस दिन यमराज के लिए दीपदान करते हैं. इस दिन सभी नकारात्मक और ऊर्जाओं को जला दिया जाता है क्योंकि यह बुरी ऊर्जाओं से छुटकारा पाने के लिए सबसे अच्छा समय होता है. इस दिन तिल का उपयोग कर अभ्यंग स्नान करने का भी सुझाव दिया गया है, बेसन का उबटन बनाकर लगाया जाता है.
शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि आरंभ- 23 अक्टूबर 2022, रविवार, सायं 06:03 मिनट पर
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि समाप्त- 24 अक्टूबर 2022, सोमवार, सायं 05:27 मिनट पर
वहीं नरक चतुर्दशी उदयातिथि के अनुसार दिवाली 24 अक्टूबर 2022 को मनाई जा रही है. काली मां की उपासना मध्य रात्रि को होती है.
मान्यता (Mythological Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार,राक्षसों का संहार करने के बाद भी महाकाली का क्रोध शांत नहीं हुआ था, इसलिए मां का रूप इतना विकराल दिखाया जाता है, काली के इस रौद्र रूप को शांत करने के लिए भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए थे, भगवान शिव के शरीर के स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया था.इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई थी.
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कहां मनाई जाती है काली पूजा (Bengal Kali Puja)
बंगाल, ओड़िशा में खास तौर पर इस दिन मां काली के कई मंदिरों में मध्य रात्रि को पूजा अर्चना होती है, तिल के तेल के दीपक जलाए जाते हैं, काली मंदिर में रात भर तंत्र साधना होती है और मां की प्रतिमा के सामने मेला भी लगता है,मां का सिंदूर लेने के लिए महिलाएं लाइन में लगती हैं.
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कैसे करें पूजा (Kali Puja Vidhi)
काली चौदस के दिन मां काली की प्रिय चीजें, गुड़हल का फूल, दीपक, तिल का तेल, खीर, पूरी, केला, मिक्स सब्जी, मूली ये सब चढ़ाया जाता है. काली के मंत्र का जाप करके, दीपक जलाकर मां काली की आरती होती है, इसके बाद उनकी प्रतिमा के आगे बताशे का भोग लगाया जाता है, फिर काली मां से आशीर्वाद लेकर उनके सिंदूर और बाकी सुहाग की चीजों को महिलाओं में भी बांट दिया जाता है.
चौदस के दिन रात्रि में मां काली की उपासना करने से साधक को मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है. इसके साथ ही शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, मान्यता है की काली चौदस पर काली पूजा करने से शत्रु पर विजय प्राप्ति का वरदान मिलता है, जो साधक तंत्र साधना करते हैं काली चौदस के दिन महाकाली की साधना को अधिक प्रभावशाली मानते हैं
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दिवाली पर कब होगी मां काली की पूजा, विधि, शुभ मुहूर्त, क्यों बंगाल में है मान्यता, क्या है महत्व