डीएनए हिंदीः अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी (Kaal Bhairav Ashtami 2022) होती है. इस बार कालभैरव अष्टमी बुधवार 16 नवंबर, बुधवार को है. 

इस दिन ब्रह्म और इंद्र नाम के 2 शुभ योग भी बनेगा. इससे इस दिन का महत्व और बढ़ गया है. कालभैरव भगवान की उत्पत्ति कब और कैसे हुई, इस बारे में शिवपुराण में विस्तार पूर्वक बताया गया है़, चलिए बाबा कालभैरव से जुड़ी खास बातें जान लें.

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तंत्र-मंत्र से होती है कालभैरव की पूजा
भगवान कालभैरव की पूजा तामसिक प्रवृत्ति से यानी तंत्र-मंत्र से होती है. ये भगवान शिव की संहारक शक्तियों में से एक हैं. इनके 52 रूप माने जाते हैं. कालभैरव को मदिरा का भोग विशेष रूप से लगाया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से कालभैरव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर कामना पूरी करते हैं. अष्टमी पर काल भैरव प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को कालाष्टमी कहते हैं. इस तिथि के स्वामी रूद्र हैं. 

ये है भैरव के 8 रूप
स्कंद पुराण में भगवान कालभैरव के 8 रूप माने गए हैं. इनमें से काल भैरव तीसरा रूप है. शिव पुराण के अनुसार प्रदोष काल यानी शाम के समय शिव के रौद्र रूप से भैरव प्रकट हुए थे. भैरव से ही अन्य 7 भैरव भी प्रकट हुए. इनके नाम इस प्रकार हैं- 1. रुरु भैरव 2. संहार भैरव 3. काल भैरव 4.. असित भैरव 5. क्रोध भैरव 6. भीषण भैरव 7. महा भैरव 8. खटवांग भैरव.

सात्विक रूप से होती है बटुक भैरव की पूजा 
तंत्र शास्त्र में 64 भैरव का उल्लेख मिलता है, लेकिन लोग भैरव के सिर्फ दो रूपों की पूजा सबसे ज्यादा करते हैं- बटुक भैरव और दूसरे कालभैरव. बटुक भैरव की पूजा सात्विक विधि से की जाती है. 
बटुक भैरव स्फटिक के समान गौरे हैं. इनके कानों में कुण्डल और गले में दिव्य मणियों की माला है. बटुक भैरव प्रसन्न मुख वाले और अपनी भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र धारण किये होते हैं. 

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ये है भैरव अवतार की कथा (story of Bhairav Avatar)
शिवपुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ और सर्वशक्तिमान समझने लगे. जब उुन्होंने इसके बारे में वेदों से पूछा तो उन्होंने शिवजी को ही परम तत्व बताया, लेकिन दोनों देवताओं ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया. तभी वहां भगवान शिव प्रकट हुए. उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा “हे चंद्रशेखर, तुम मेरे पुत्र हो. मेरी शरण में आओ.

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ब्रह्मदेव के मुख से ऐसी बात सुनकर शिवजी को क्रोध आ गया. उसी क्रोध से कालभैरव की उत्पत्ति हुई.  कालभैरव से भगवान शिव ने कहा “ काल की तरह होने के कारण आप कालराज हैं. भीषण होने से भैरव हैं. आप से काल भी भयभीत रहेगा, अत: आप कालभैरव हैं. आपको काशी का आधिपत्य हमेशा प्राप्त रहेगा. भगवान शंकर से इतने वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी उंगली के नाखून से ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दिया. जिसके चलते उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा. बाद में काशी जाकर कालभैरव को इस पापा से मुक्ति मिली.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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कालभैरव के हैं 8 रूप, कैसे हुआ भगवान शिव का ये अवतार जानें पौराणिक कथा
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