डीएनए हिंदीः गुजरात में मौजूद देवी अंबाजी का मंदिर बेहद खास है. नवरात्रि में देवी के दर्शन करने यहां लोग दूर-दूर से आते हैं. खास बात ये है कि यहां देवी सती का हृदय गिरा था लेकिन यहां उनकी कोई प्रतिमा नहीं है. यहां उनकी पूजा किसी अलग ही तरह से होती है.
51 शक्तिपीठों में शामिल सबसे प्रमुख स्थल है अंबाजी मंदिर में दर्शन करने भर से दुखों से मुक्ति मिलने की मान्यता है. यहां माता सती का हृदय गिरा था इसलिए इस मंदिर में मान्यता है कि देवी हर किसी के दिल का हाल जान लेती हैं लेकिन यहां देवी की प्रतिमा की नहीं, बल्कि यहां मौजूद श्रीचक्र की पूजा होती है.
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अंबाजी मंदिर गुजरात का सबसे प्रमुख मंदिर है और ये माउंट आबू से 45 किमी. की दूरी पर स्थित है. यह देवी अंबा का प्राचीन शक्तिपीठ है और गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित है.
शक्तिपीठ बनने की कहानी
शक्तिपीठ की पौराणिक कथा के अनुसार माता दुर्गा ने राजा प्रजापति दक्ष के घर में सती के रूप में जन्म लिया. भगवान शिव से उनका विवाह हुआ. एक बार ऋषि-मुनियों ने यज्ञ आयोजित किया था. जब राजा दक्ष वहां पहुंचे तो महादेव को छोड़कर सभी खड़े हो गए.
यह देख राजा दक्ष को बहुत क्रोध आया. उन्होंने अपमान का बदला लेने के लिए फिर से यज्ञ का आयोजन किया. इसमें शिव और सती को छोड़कर सभी को आमंत्रित किया. जब माता सती को इस बात का पता चला तो उन्होंने आयोजन में जाने की जिद की. शिवजी के मना करने के बावजूद वो यज्ञ में शामिल होने चली गईं.
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यज्ञ स्थल पर जब माता सती ने पिता दक्ष से शिवजी को न बुलाने का कारण पूछा तो उन्होंने महादेव के लिए अपमानजनक बातें कहीं. इस अपमान से माता सती को इतनी ठेस पहुंची कि उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहूति दे दी. वहीं, जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया.
उन्होंने सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और पूरे भूमंडल में घूमने लगे. मान्यता है कि जहां-जहां माता सती के शरीर के अंग गिरे, वो शक्तिपीठ बन गया. इस तरह से कुल 51 स्थानों पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ. वहीं, अगले जन्म में माता सती ने हिमालय के घर माता पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: प्राप्त कर लिया.
अंबाजी शक्तिपीठ की विशेषता
- इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1975 में शुरू हुआ था, जो अब तक जारी है.
- सफेद संगमरमर से बने इस मंदिर का शिखर 103 फुट ऊंचा है और उस पर 358 स्वर्ण कलश हैं.
- हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा पर यहां मेले लगता है.
- नवरात्र के अवसर पर मंदिर में गरबा और भवाई जैसे पारंपरिक नृत्यों का आयोजन किया जाता है.
- मंदिर से लगभग 3 किमी. की दूरी पर गब्बर नामक एक पहाड़ भी है, जहां देवी का एक और प्राचीन मंदिर है.
- ऐसा माना जाता है कि इसी पत्थर पर यहां मां के पदचिह्न एवं रथचिह्र बने हैं.
- अंबा जी के दर्शन के बाद गब्बर पहाड़ी पर स्थित मंदिर में ज़रूर जाना चाहिए.
देवी के दर्शन के लिए 999 चीढ़ियां चढ़नी पड़ती है.
इस मंदिर में अम्बा की पूजा श्रीयंत्र की अराधना से होती है जिसे सीधे आंखों में देख पाना मुमकिन नहीं.
नवरात्रि में यहां नौ दिनों तक चलने वाला पर्व बहुत ही खास होता है. जिसमें गरबा करके खास तरह से पूजा-पाठ किया जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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51 शक्तिपीठ में आता है गुजरात का अंबा मंदिर, यहां गिरा था देवी सती का हृदय