हिंदू कैलेंडर के अनुसार, श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष 17 सितंबर 2024 से शुरू होगा और 2 अक्टूबर, बुधवार को समाप्त होगा. यानी भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को महालया अमावस्या या सर्वपितृ अमावस्या मनाई जाएगी. यह पितृ पक्ष का आखिरी दिन है. हमारे धर्मग्रंथों में महालया अमावस्या के बारे में कई धारणाएं वर्णित हैं. यहां जानें उनके बारे में.
1. शास्त्रों के अनुसार कुथुपा, रोहिणी और अभिजित काल में श्राद्ध करना चाहिए. प्रातः काल में देव पूजा और दोपहर में पितरों की पूजा, इसे 'कुतुप काल' कहा जाता है.
2. ऐसा माना जाता है कि यदि मृत पूर्वजों की मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो तो इस दिन श्राद्ध किया जा सकता है. सर्वपितृ अमावस्या के दिन सभी ज्ञात और अज्ञात पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है.
3. यदि कोई किसी कारणवश श्राद्ध तिथि पर श्राद्ध नहीं कर पाता है या श्राद्ध की तिथि ज्ञात नहीं है तो सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन सभी पितर आपके द्वार पर होंगे.
4. सर्वपितृ अमावस्या के दिन तर्पण, पिंडदान किया जाएगा. ऋषियों, देवताओं और पितरों की पूजा करने के बाद पंचबली अनुष्ठान किया जाता है और 16 ब्राह्मणों को उनकी क्षमता के अनुसार भोजन या दान दिया जाता है. यदि कोई उत्तराधिकारी न हो तो प्रपौत्र या परिवार का कोई भी सदस्य श्राद्ध कर सकता है.
पिंडदान
5. श्राद्ध पक्ष के दिनों में और विशेषकर अंतिम तिथि यानी अमावस्या के दिन घर में कोई वाद-विवाद, लड़ाई-झगड़ा आदि मन को ठेस पहुंचाने वाले कार्य नहीं करने चाहिए. शराब, मांस, बैंगन, प्याज, लहसुन, बासी भोजन, सफेद तिल, मूली, लौकी, काला नमक, सत्तू, जीरा, उड़द की दाल, सरसों, चना आदि का सेवन नहीं करना चाहिए.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी समान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.
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क्या आप जानते हैं महालया के बारे में ये बातें? सर्व पितृ अमावस्या क्यों होती है खास