डीएनए हिंदीः नवरात्रि का आज पहला दिन है और क्या आपको पता है कि देवी के प्रत्येक रूप से एक औषधि भी जुड़ी हुई है. मां दुर्गा के इन नौ रूपों को बेहद शक्तिशाली माना जाता है और यही कारण है कि देवी का प्रतिनिधित्व करने वाली ये औषधियां भी बेहद शक्तिशाली और कई रोगों का इलाज करने वाली मानी जाती हैं. तो चलिए जानें देवी से जुड़ी ये प्रमुख नौ औषधियां कौन सी हैं.
प्रथम शैलपुत्री
नवरात्रि की प्रथम देवी शैलपुत्री से हरड़ नामक औषधि जुड़ी है. आयुर्वेद में इस औषधि को कई रोगांें की दवा मना गया है और इसके सात प्रकार होते हैं. तासीर में गर्म होने के कारण इसका प्रयोग शीत रोग से लेकर पेट से जुड़ी कई बीमारियों कारगर माना गया है. ये आंत से जुड़ी बीमारियों में भी बहुत काम आती है. अल्सर रोगियों के लिए रामबाण औषधि है.
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द्वितीय ब्रह्मचारिणी
देवी के इस स्वरूप का संबंध ब्राह्मी से है. देवी ब्रह्मचारिणी की ये औषधिय आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली मानी जाती है. साथ ही ये रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर बनाने वाली होती है. एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर ये औषधी कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकतती है और इसके नियमित सेवन पाचन क्रिया को भी दुरूस्त होती है. यह मन व मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और आयुर्वेद के चिकित्सक गैस एवं मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा के रूप में भी इसका उपयोग करते हैं. यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है.
तृतीय चंद्रघंटा
देवी के इस स्वरूप से चन्दुसूर या चमसूर नामक औषधि जुड़ी है. यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये जैसा होता है और इसकी सब्जी भीखाई जाती है. हाई बढ़ाने से लेकर मोटापा दूर करने में ये बहुत काम आती है. इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं. शक्ति को बढ़ाने वाली हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है. इसका प्रयोग प्रसूतावस्था में बहुत लाभदायक है. यह स्तनों में दूध को बढ़ाने में सहायक हैण् साथ ही यह काम यानी कि शरीर की ऊर्जा क्षमता को अत्यधिक बढ़ाने में भी सहायक है.
चतुर्थ कुष्माण्डा
देवी के इस स्वरूप से पेठा नामक सब्जी जुड़ी है और ये एक प्रकार से कद्दू की प्रजाति होती है. इससे पेठा बनता है. यह औषधि शरीर में सभी पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के साथ रक्तपित्त, रक्त विकार को दूर करती है. यह पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक, पेट को साफ करने में सहायक होती है. इसे मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान मना गया है. यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है. दूसरे अर्थों में कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता हैण् रोजाना इसका सेवन मानसिक और दिल की बीमारियों से भी बचाता है.
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पंचम स्कंदमाता
देवी के इस स्वरूप से अलसी कां सबंध है. अलसी वो बीज है जो हाई कोलेस्ट्रॉल से लेकर यूरिक एसिड और डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज करती है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर होता है. वात, पित्त, कफ को संतुलित करने और इनसे जुड़े रोगों को ये दूर करने वाली होती है. कैंसर में भी इस बजी का उपयोग कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है.
आयुर्वेदिक के अनुसार अलसी रक्तशोधक, दुग्धवर्द्धक, माहवारी को सही करने के थ्सा ही चर्मविकारनाशक, सूजन एवं दरद निवारक, जलन मिटाने वाली औषधि है. यकृत, आमाशय एवं आंतों की सूजन दूर करने के साथ ये बवासीर और पेट विकार दूर करती है. सुजाकनाशक तथा गुरदे की पथरी दूर करती है. अलसी में विटामिन बी एवं कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर, लोहा, प्रोटीन, जिंक, पोटेशियम आदि खनिज लवण होते हैं और ये ओमेगा 5 से भरी होती है और यही कारण है कि एनिमिया और तमाम अन्य बीमारियों में कारगर है.
षष्ठम कात्यायनी
इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका. इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं. यह कफ, पित्त, अधिक विकार व कंठ के रोग का नाश करती है. इसके अलावा यह औषधि कैंसर का खतरा भी घटाती है.
सप्तम कालरात्रि
यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है. इसके सेवन से ब्रेन पावर बढ़ती है और तनाव, डिप्रेशन, ट्यूमर, अल्जाइमर जैसी समस्याएं दूर रहती हैं. सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है. यह मानव शरीर को ऊर्जा देने वाली और सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है. इसकी 2-3 पत्तियां काली मिर्च के साथ सुबह खाली पेट लेने से पाइल्स में फायदा मिलता है. साथ ही इसके पत्तों से सिंकाई करने पर फोड़े-फुंसी की समस्या भी दूर होती है.
अष्टम देवी महागौरी
नवदुर्गा का आंठवा रूप महागौरी को औषधि नाम तुलसी के रूप में भी जाना जाता है. सेहत के लिए भी यह रामबाण औषधि है. तुलसी का काढ़ा या चाय रोजाना पीने से खून साफ होता है. साथ ही इससे दिल के रोगों का खतरा भी कम होता है. यही नहीं, इससे कैंसर का खतरा भी कम होता है. तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र. ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है व हृदय रोग का नाश करती है. इसके लिए आयुर्वेद में श्लोक आया है –
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी.
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि: .
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् .
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:.
नवम रूप सिद्धिदात्री
इसे नारायणी या शतावरी कहते हैं. शतावरी बुद्धि बल व वीर्य के लिए उत्तम औषधि है. यह रक्त विकार औरं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है. शतावर में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इन्फ्लामेट्री और घुलनशील फाइबर होता है, जो पेट को दुरूस्त रखने के साथ कई रोगों से बचाने में मददगार है. सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है, उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं. कुल मिलाकर यह स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए बेहतरीन औषधि है. यह रक्त विकार को दूर करने में मदद करती है. वहीं रोजाना इसका सेवन करने से शरीर में कैंसर कोशिकाएं नहीं पनपतीं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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Navratri: देवी दुर्गा के नौ रूप से जुड़ी हैं ये औषधियां, जानिए नवरात्रि और आयुर्वेद का कनेक्शन