डीएनए हिंदीः देश भर से उलट मिथिलांचल में भाई दूज ( Mithila Bhai Dooj Tradition) पर बहनें अपने भाई को गलियां नहीं देतीं, ( Sisters Not abuse Brother) जबकि अन्य जगहों पर बहनें भाई की लंबी उम्र के लिए इस दिन जमकर गलियां देती हैं और बाद में जीभ पर कांटा चुभाकर (Prick the Tongue) अपनी इस भूल के लिए क्षमा मांगती हैं. ये परंपरा यमराज से भाई को बचाने के लिए है लेकिन मिथिला में इस परंपरा के विपरीत (Contrary to this Tradition in Mithila) बहनें क्यों भाई को गाली नहीं देती हैं, चलिए जानें.
मिथिला में भरदुतिया आज है (Bhaiya Dooj 2022 Tikka Shubh Muhurat) और यहां की संस्कृति में यम एवं यमुना के प्रति देवता का भाव होता है और यही कारण है कि यहां की संस्कृति देश के अन्य संस्कृति से बिलकुल अलग है. मिथिला में क्योंकि यम को विनाशकारी देवता नहीं माना जाता है इसलिए यहां की परंपरा बिलकुल अलग है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार भाई दूज पर यमराज अपनी बहन यमुना के घर जाते हैं और वहां भोजन कर प्रसन्न होते हैं. यमराज और यमुना के पिता भगवान सूर्य हैं. माना जाता है कि इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर भोजन करता है उसकी आयु बढ़ती ै और बहन को अंखड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. भरदुतिया में अन्न भोजन करना प्रमुख होता है. यह मान्यता सभी संस्कृतियों में एक समान रूप से लागू होती है लेकिन मिथिला में इसके बाद कुछ अलग नियम होते हैं.
मिथिला में यम के प्रति अशुभ भाव नहीं
मिथिला की संस्कृति में यम एवं यमुना के प्रति देवता का भाव होता है इसलिए यहां बहने भाई को गाली देने वाली पंरपरा के विपरीत काम करती हैं. यहां क्योंकि यम विनाशकारी देवता नहीं होते इसलिए बहनें भाई को गाली नहीं देतीं. यम को यहां संयम तथा अपराध-नियंत्रक देवता का प्रतीक माना गया है.
क्या कैसे होती है भाईदूज तैयारी
मिथिला में इसकी लोक परम्परा में बहन सबसे पहले ‘बाट(रास्ता) लीपती’ है. आंगन आने का रास्ता गोबर से लीपकर भाई के आने का इंतजार करती है. साथ ही, आंगन में पूरब की ओर रुख कर दसपात पुरैनि का अरिपन देकर उसके पश्चिम में लकड़ी का एक पीढ़ा लगाती है. पीढा पर भी तानी-भरनी जैसा अरिपन दिया जाता है. इसके आगे दसपात पुरैनि के ऊपर पीतल या कांसा का एक अढिया (कठौता) रखती है. इस कठौते में सुपारी, लौंग, इलायची, कुम्हर (कूष्माण्ड- भतुआ) का फूल, चाँदी का सिक्का अथवा कोई भी सिक्का, बड़ा हर्रे, पान का पत्ता तथा जल रहता है. इसके साथ चावल का पिठार (पीठा) तथा सिन्दूर की व्यवस्था रहती है. भाई के आने पर उसे सीधे उसी पीढ़ा पर बैठाया जाता है.
‘नोंत लेना’ एक विशेष विधि
मिथिला की लोक संस्कृति में ‘नोंत लेना’ एक विशेष विधि है, जो अन्य लोक-संस्कृति में नहीं है. इस विषय में मिथिला की संस्कृति के अध्येता पण्डित भवनाथ झा कहते हैं कि इस दिन भाई को बिना बुलाये आना चाहिए. ऐसी स्थिति में बहन सबसे पहले उसे भोजन के लिए निमंत्रण देती है, जो इस पर्व का मुख्य कार्यक्रम है. बहन इन सभी मांगलिक वस्तुओं से भाई की अंजलि को भरकर उसे न्योता देती है. वह एक प्रकार से आगवानी है.
नोत लेने की विधि
इसे ‘धुरिआएल पएरे नोंत लेना’ कहते हैं. भाई अपने सर को ढँककर अंजलि बाँधकर पीढा पर बैढता है और बहन पश्चिम मुंह होकर उसकी अंजलि और दोनों पैरों पर पिठार और सिन्दूर लगाती है. साथ ही कठौते में रखी सारी वस्तुएँ भाई की अंजुरी में भर देती है. लोटा से अंजुरी पर जल गिराती हुई मंत्र पढ़ती है- “जमुना नौंतलनि जम केँ, हम नोंते छी भाए केँ. हमरा नोंतनेँ भाईक अरुदा बढ़ए.” संस्कृत में शिक्षित परिवार में पौराणिक मंत्र पढ़ती है, जिसका अर्थ होता है कि ‘हे भाई मैं तुम्हारी बड़ी (या छोटी) बहन हूं. यमराज और विशेष रूप से यमुना की प्रसन्नता के लिए मेरे घर भात का भोजन करें.’ इस प्रक्रिया तीन बार की जाती है. पैरों पर सिन्दूर-पिठार एक ही बार लगाया जाता है. अंत में भाई के पैरों पर सिन्दूर-पिठार बहन अपने हाथ से पोंछ देती हैं और भाई के माथे पर तिलक लगा देती है.
छोटा भाई भी बुजुर्ग बहन से लेता है नोत
एक साल की छोटी बच्ची भी अपने बुजुर्ग भाई से नोंत लेती है. एक साल की उम्र का भाई भी बुजुर्ग बहन से नोंत लेती है. छोटा भाई हो तो वह बहन को पैर छूकर प्रणाम करता है और यदि बहन छोटी हो तो वह भाई को प्रणाम करती है. इसके बाद भाई को ‘बिगजी’ (भेषजी- सूखा मेवा, फल आदि) खिलाया जाता है. इसी में पानी में भिंगोया गया केराव (मगध के 'बजरी' को मिथिला में 'किर्री' कहते हैं) भी रहता है, जिसमें से कुछ दाने जो भींगकर कोमल नहीं होते हैं, उसे चुनकर बहन अपने हाथ से भाई को देती है. इसे ‘अंकुरी खिलाना’ कहते हैं. इसके बाद भाई को आराम से चावल भोजन कराया जाता है.
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मिथिला में भरदुतिया आज, जानें यहां भाईदूज पर क्यों परंपरा के विपरीत होती है पूजा