डीएनए हिंदीः हिंदू धर्म शास्त्रों में कई सारे ऐसे नक्षत्र बताए गए हैं जिन नक्षत्रों में बच्चे का जन्म होना बहुत ही अशुभ माना जाता है. हालांकि ऐसा बिल्कुल नहीं है मूलों (Mool Nakshatra) में पैदा हुआ बच्चा हमेशा ही अशुभ नहीं माना जाता है. बता दें कि, कुल 27 नक्षत्र होते हैं इनमें से 6 नक्षत्र गण्डमूल नक्षत्र (Gandmool Nakshatra) होते हैं. इन 6 नक्षत्रों में जन्में बच्चे को मूल (Mool Nakshatra) में जन्मा माना जाता है.
ऐसी मान्यता है कि मूल नक्षत्र (Mool Nakshatra) में पैदा हुआ बच्चा, घर-परिवार और यहां तक की खुद से लिए भी भारी होता है. हालांकि यह नक्षत्र (Mool Nakshatra) हमेशा अशुभ नहीं होते हैं. नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में बच्चे के जन्म के आधार पर उसके ऊपर प्रभाव होता है. बच्चे के जन्म के फलादेश के लिए कुंडली में ग्रहों की स्थिति भी जिम्मेदार होती है. आइये जानते हैं कि कौन से नक्षत्र को जन्मा बच्चा मूलों में माना जाता है.
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मूल में माना जाता है इन नक्षत्रों में पैदा हुआ बच्चा
- अश्विनी नक्षत्र
- आश्लेषा नक्षत्र
- मघा नक्षत्र
- ज्येष्ठा नक्षत्र
- मूल नक्षत्र
- रेवती नक्षत्र
अश्विनी नक्षत्र
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में पैदा हुआ बच्चा पिता के लिए भय और कष्ट का कारण हो सकता है. लेकिन दूसरे चरण में बच्चे के होने से सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. अश्विनी नक्षत्र के तीसरे और चौथे चरण में जन्मा बच्चा उच्च पद और समाज में मान-सम्मान प्राप्त करता है.
आश्लेषा नक्षत्र
आश्लेषा नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मा बच्चा धन नाश और तीसरे चरण में जन्मा बच्चा माता के लिए कष्टकारी होता है. चौथे चरण में जन्मा बच्चा पिता को कष्ट देता है है. हालांकि पहले नक्षत्र में जन्मे बच्चे से सुख-शांति की प्राप्ति होती है.
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मघा नक्षत्र
मघा नक्षत्र के पहले और दूसरे चरण में पैदा हुआ बच्चा कष्ट का कारण हो सकता है. हालांकि तीसरे चरण में होने से बच्चा सुखी होता है. इसके साथ ही चौथे चरण में पैदा हुआ बच्चा विद्या का धनी होता है.
ज्येष्ठा नक्षत्र
मघा नक्षत्र में पैदा हुआ बच्चा भाग्यशाली नहीं होता है. इसके पहले नक्षत्र में पैदा हुआ बच्चा भाई को कष्ट देता है, वहीं दूसरे चरण में पैदा हुआ बच्चा छोटे भाई को कष्ट देता है. तीसरे चरण में माता के लिए और चौथे चरण में बच्चा खुद के लिए अशुभ भारी होता है. चौथे चरण में होने से खुद को हानि पहुंच सकती है.
मूल नक्षत्र
मूल नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मे बच्चे के होने से शांति का अनुभव होता है. जबकि पहले चरण में पिता को कष्ट और दूसरे में माता हो कष्ट होता है. तीसरे चरण में यह धन के नाश का कारण बनता है.
रेवती नक्षत्र
रेवती नक्षत्र के पहले चरण में होने से बच्चे के होने से उसे राजा के समान सुख मिलत है. दूसरे चरण में जन्म लेने से उच्च पद की प्राप्ति होती है. तीसरे चरण में होने से धन लाभ मिलता है, वहीं चौथे चरण में होने से सभी कष्ट और समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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मूल नक्षत्र में जन्मे बच्चे होते हैं भाग्यशाली, पहले से चौथे चरण तक पड़ता है कुछ ऐसा प्रभाव