महाभारत की शिक्षाएं युगों-युगों तक प्रासंगिक बनी हुई हैं. महाभारत को पढ़ने के बाद उससे मिली शिक्षाओं या सबक को याद रखना भी जरूरी है. आइए जानें महाभारत के ये सात सबक, जिन्हें अगर सीख लिया जाए तो आपके जीवन में बड़ा और अच्छा बदलाव आएगा और आपकी कभी हार नहीं होगी.
1. अपूर्ण ज्ञान खतरनाक होता है
अपूर्ण ज्ञान, बिल्कुल भी ज्ञान न होने से अधिक खतरनाक है. अर्जुन पूत अभिमन्यु की कहानी हमें सिखाती है कि अधूरा ज्ञान कितना खतरनाक होता है. अभिमन्यु यह तो जानता था कि भूलभुलैया में कैसे प्रवेश करना है, परंतु वह यह नहीं जानता था कि इससे बाहर कैसे निकलना है. सर्वोच्च वीरता दिखाने के बावजूद उन्हें इस अधूरे ज्ञान का खामियाजा अपनी जान देकर भुगतना पड़ा.
2. हर बलिदान देकर अपना कर्तव्य निभाना
अर्जुन शुरू में अपने ही परिवार के सदस्यों के खिलाफ लड़ने से झिझक रहे थे. लेकिन गीता के उपदेश के दौरान श्री कृष्ण ने उन्हें उनके कर्तव्य, उनके क्षत्रिय धर्म की याद दिलाई. कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि धर्म के लिए यदि तुम्हें अपनों से भी युद्ध करना पड़े तो पीछे मुड़कर मत देखना. कृष्ण से प्रेरित होकर, अर्जुन ने खुद को सभी संदेहों से मुक्त कर लिया और एक योद्धा होने के अपने धर्म का पालन किया.
3. दोस्ती निभाना
कृष्ण और अर्जुन की मित्रता की मिसाल हर युग में दी गई है. कृष्ण के निस्वार्थ समर्थन और प्रोत्साहन ने पांडवों को युद्ध में विजयी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कृष्ण ने द्रौपदी की लाज तब बचाई जब उसके पति को जुए में हारने के बाद उसे अपने सामने अपमानित होते देखना पड़ा. कर्ण और दुर्योधन की दोस्ती भी कम प्रेरणादायक नहीं है. कुंती पुत्र कर्ण अपने मित्र दुर्योधन की खातिर अपने भाइयों से युद्ध करने से भी पीछे नहीं हटे.
4.कभी भी लालच में न पड़ें
यदि धर्मराज युधिष्ठिर लालच के वशीभूत न हुए होते तो महाभारत का भयानक युद्ध टाला जा सकता था. शकुनि ने युधिष्ठिर की जुआ खेलने की लालसा का फायदा उठाया और उनकी संपत्ति और उनकी पत्नी द्रौपदी को उनसे छीन लिया.
5. बदला केवल विनाश लाता है
महाभारत के युद्ध के मूल में बदले की भावना है. पांडवों को नष्ट करने के पागलपन ने कौरवों का सब कुछ लूट लिया. इस युद्ध में बच्चे भी मारे गये. लेकिन क्या पांडवों को इस विनाश से बचाया जा सका?, नहीं, इस युद्ध में द्रौपदी के पांचों पुत्रों के साथ अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु भी मारा गया था.
6. शब्द हथियारों से भी ज्यादा घातक होते हैं
यदि कुछ लोग अपनी वाणी पर संयम रखते तो महाभारत का युद्ध नहीं होता. उदाहरण के लिए, यदि द्रौपदी ने दुर्योधन को 'अंधे का पुत्र' भी नहीं कहा होता तो महाभारत नहीं होता. शिशुपाल और शकुनि पर हमेशा कटु शब्द बोले जाते थे लेकिन उनके साथ क्या हुआ यह सभी जानते हैं. सबक यह है कि कुछ भी कहने से पहले यह सोचना चाहिए कि इसका किसी के जीवन, परिवार या राष्ट्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
7. काम वो करो जो खुद को तार दे
मानव जीवन जन्म और मृत्यु के बीच की कड़ी है. यह जीवन बहुत छोटा है. आप कभी नहीं जानते कि दिन कब बीत जाएंगे, इसलिए आपको प्रत्येक दिन का अधिकतम लाभ उठाना चाहिए. आपको कुछ ऐसे कार्य भी करने चाहिए, जो आपके अगले जीवन की तैयारी के लिए हों. घर और ऑफिस के बाहर अधिक काम करें, ऐसे काम करें जिससे आपके बच्चे आपको याद करें. गीता का संदेश है कि वह करो जो तुम्हारे जीवन को सुंदर बना दे.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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