डीएनए हिंदी: द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौंवा ज्योतिर्लिंग बैद्यनाथ धाम झारखंड (Jharkhand) के देवघर में स्थित है. इस मंदिर में हिंदुओं की काफी आस्था है इसलिए यहां आम दिन पर भी हजारों श्रद्धालु बाबा बैद्यनाथ के दर्शन के लिए आते हैं. बैधनाथ ज्योतिर्लिंग (Baidyanath Jyotirling) की गिनती देश के प्रमुख शक्तिपीठ में भी की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस शक्तिपीठ की स्थापना स्वंय भगवान विष्णु ने की थी. मान्यता यह भी है कि यहां आने वाले सभी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यही कारण है कि बैद्यनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है.
बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थापित है पंचशूल (Panchshool)
आमतौर पर आपने भगवान शिव के सभी मंदिरों में त्रिशूल देखा होगा लेकिन देवघर के बैद्यनाथ मंदिर परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण और अन्य सभी मंदिरों में पंचशूल स्थापित हैं. इसे सुरक्षा कवच की मान्यता प्राप्त है लेकिन महाशिवरात्रि से दो दिन पहले पंचशूल को उतारा जाता है. महाशिवरात्रि से एक दिन पहले उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है. पूजा-अर्चना के बाद इन पंचशूलों को पुनः स्थापित कर दिया जाता है. बता दें कि भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती (Mata Parvati) के गठबंधन को भी हटा दिया जाता है.
मंदिर के पंचशूल को लेकर हैं ये मान्यताएं
पंचशूल के प्रति मान्यता यह है कि त्रेता युग में रावण (Ravan) ने अपने किले के द्वार पर पंचशूल को सुरक्षा कवच के रूप में स्थापित किया था. वहीं एक कथा यह भी प्रचलित है कि लंकापति रावण को पंचशूल यानी सुरक्षा कवच को भेदना आता था, लेकिन यह कार्य भगवान श्री राम (Shri Ram) के वश में नहीं था. रावण के छोटे भाई विभीषण के बताने के बाद ही प्रभु श्री राम अपनी सेना के साथ लंका में प्रवेश कर पाए थे. यह भी माना जाता है कि इस पंचशूल के कारण मंदिर पर आज तक भी किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा का प्रभाव नहीं पड़ा है.
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा
पुराणों में बताया गया है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से समस्त पापों का नाश होता है और भगवान शिव कि कृपा सदा बनी रहती है. भगवान शंकर सभी दोष एवं रोग हर लेते हैं. इस शक्तिपीठ में भक्तों को शांति की अनुभूति होती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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