डीएनए हिंदी: मनुष्य जीवन में तभी सफल होता है जब उसके पास ज्ञान रूपी धन होता है. महान संस्कृत कवि भर्तृहरि नीति शतकम् ( Niti Shatakam of Bhartrihari ) में ज्ञान को बड़े ही सुंदर रूप से वर्णित किया है. बता दें कि भर्तृहरि सम्राट विक्रमादित्य के अग्रज माने जाते हैं और पंचतंत्र में भी नीतिशतकम् के पाठ को कहानी के रूप में बताया गया था. नीतिशतकम् के इस भाग में आइए जानते हैं कि ज्ञान से समृद्धि व्यक्ति जीवन में कैसे सफलता पाता है.
शास्त्रोपस्कृतशब्दसुन्दरगिरिः शिष्यप्रदेयागमा
विख्याताः कवयो वसन्ति विषये यस्य प्रभोनिर्धनः।
तज्जाड्यं वसुधाधिपस्य कवयो ह्यर्थं विनापीश्वराः
कुत्स्याः स्युः कुपरीक्षका न मणयो यैरर्घतः पातितः॥
नीतिशतकम् के अनुसार प्रसिद्ध कवि अपने सुंदर शब्दों करना जनता है और उसे शास्त्रों का ज्ञान है तथा अपने शिष्यों तक वह ज्ञान पहुंचाने में सक्षम है. किन्तु आपके( राजा के) राज्य में निर्धन है तो यह आपके के लिए बड़ा दुर्भाग्य कवि का नहीं. वह इसलिए क्योंकि ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान का धनी होता है. ठीक उसी प्रकार जैसे अगर एक जोहरी ठीक से बेशकीमती रत्नों को नहीं देख पाता तो उन रत्नों की कीमत कम नहीं हो जाती है.
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हर्तुर्याति न गोचरं किमपि शं पुष्णाति यत्सर्वदा
ह्यर्थिभ्यः प्रतिपाद्यमानमनिशं प्राप्नोति वृद्धिं पराम्।
कल्पान्तेष्वपि न प्रयाति निधनं विद्याख्यमन्तर्धन
येषां तान्प्रति मानमुज्झत नृपाः कस्तैः सह स्पर्धते॥
ज्ञान रूपी धन से आप वह खुशियां प्राप्त करते हैं जो कभी समाप्त नहीं होती है. जब कोई (छात्र या व्यक्ति) आपसे ज्ञान अर्जित करने की इच्छा व्यक्त करता है और आप उनकी मदद करते हैं तो उस ज्ञान में कई गुना वृद्धि होती है. इस धन को न तो आपके शत्रु और न कोई लुटेरा आपसे चीन पाएगा. दुनिया के समाप्त होने के बाद भी यह खत्म नहीं होगी.
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं
विद्या भोगकारी यशःसुखकारी विद्या गुरूणां गुरुः।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परा देवता
विद्या राजसु पूजिता न तु धनं विद्याविहीनः पशुः॥
जीवन में केवल ज्ञान ही मनुष्य को सफल बनाता है. ज्ञान रूपी खजाना हमेशा सुरक्षित रहता है. यह गौरव और सुख पाने का माध्यम है. ज्ञान ही सभी शिक्षकों का शिक्षक है. विदेशों में हमारा ज्ञान ही बंधू और मित्र की भूमिका निभाता है. ज्ञान ही सर्वोच्च सत्ता है जिसे राजा-महाराजा भी पूजते हैं. विद्या और ज्ञान के बिना मनुष्य एक पशु के समान है.
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प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः
प्रारभ्य विघ्नविहता विरमन्ति मध्याः ।
विघ्नैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः
प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति ॥
संसार में तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं, नीच, मध्यम और उत्तम. इनमें से नीच वह व्यक्ति होता है जो बाधाओं के डर मात्र से ही कार्य को शुरु नहीं करता है. मध्यम प्रकार का व्यक्ति कार्य की शुरुआत तो अच्छी तरह करता है मगर छोटी परेशानी के आते ही काम को बीच में ही अधूरा छोड़ देता है. लेकिन इन दोनों से अलग उत्तम व्यक्ति धैर्य और परिश्रम से बार-बार विपत्तियों से घिर जाने के बावजूद भी अपने काम को लक्ष्य तक पहुंचाते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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