डीएनए हिंदी : होली के वक़्त के अगर की वर्ड तलाशे जाएं तो 'गुझिया' शब्द ज़रूर किसी ऊपरी पायदान पर मुस्कुरा रहा होगा. घर-घर में खाई जाने वाली यह मिठाई अब ऑनलाइन दुकानों से लेकर पांच सितारा होटलों में विशेष व्यंजन के तौर पर सर्व की जाने लगी है. आइए जानते हैं कि कैसे गुझिया(Gujhiya ) ने घर की मिठाई होने से लेकर मेगा-सेलर तक का सफर तय किया?
वृंदावन के राधा रमन मंदिर में बनती रही थी गुझिया - सोलहवीं सदी से ही वृन्दावन के राधा रमन मंदिर में एक ख़ास प्रसाद अर्पित किया जाता है. चोकर निकाले हुए पतले आटे से तैयार किए हुए लिफ़ाफ़े में खोए को भरकर फिर घी में छानकर बनाई गई ख़ास मिठाई मंदिर में रोज़ चढ़ने वाले प्रसाद का हिस्सा होती है. यह मिठाई गुझिया(Gujhiya ) ही है. माना जाता है कि राजस्थान की चन्द्रकला (गोल गुझिया जैसी मिठाई) और वृन्दावन के राधा रमन मंदिर के ख़ास प्रसाद ने गुझिया की लोकप्रियता बढ़ा दी. आज यह हर जगह खाई और खिलाई जाती है.
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सम्भवतः देश की राजधानी से हुआ इसका प्रसार - दिल्ली में मिठाइयों के काफ़ी शैदाई बसते हैं. यहां कई मिष्ठान्न भण्डार हैं जो सौ साल से अधिक पुराने हैं. दिल्ली(Delhi) में कंवरजी दलबीजीवाला, छेना राम सिंधी, गुलाब सरीख़ी मिठाइयों की दुकानें बहुत पहले से गुझिया(Gujhiya ) बेचती आई हैं. बहुत सम्भव है कि उन्होंने वृन्दावन के राधा रमन मंदिर में बनने वाली प्रसादी मिठाई ने दिल्ली में दुकानों का रुख कर लिया हो. वहीं से होली पर घरों में बनने वाली ख़ास मिठाई जगह-जगह फ़ैल गई हो.
फ़िल्मों और धारावाहिकों ने बनाया इसे मेगा सेलर - यह मानद सच्चाई है कि दुनिया भर की सभ्यता संस्कृति पर फिल्मों का असर पड़ता है. गुझिया के संदर्भ में भी यह बात कही जा सकती है. माना जाता है कि 2000 के दशक में शुरू हुए टीवी धारावाहिकों में गुझिया को होली के मुख्य व्यंजन के तौर पर दिखाया गया. दो दशक बीतते- बीतते किसी भी उत्सव पर बन जाने वाली यह घरेलू मिठाई होली का ख़ास पकवान बन गई. ज्ञात हो कि गुझिया (Gujhiya )मूल रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात की मिठाई है. बिहार में सूखे गुझिये बनते हैं जिन्हें पेड़किया कहा जाता है.
घर वाले स्वाद की चाह भी हो सकती है कारन - ग्लोबल होती दुनिया में अधिकांश लोग विस्थापित हो रहे हैं जो त्योहारों में भी अपने घर नहीं जा पाते. गुझिया उत्तर भारत के कई राज्यों में उत्सवों पर बनने वाली स्पेशल मिठाई है. ज्यों-ज्यों आबादी सघन रूप से अपनी जगहों से दूर होती गई, उनके अतीत से जुड़े हुए प्रतीक के प्रति उनका प्रेम बढ़ता गया. आज कई लोकल व्यंजन वैश्विक हो चुके हैं. सम्भवतः गुझिया भी उसी प्रक्रिया में मेगासेलर हुई है.
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