डीएनए हिंदी: भारत ने मंगल ग्रह पर अपना पहला मिशन नवंबर 2013 में भेजा था. इसे मार्स ऑर्बिटन मिशन यानी MOM नाम दिया गया था. अब लगभग एक दशक बाद एक मिशन का प्रोपेलेंट यानी ईंधन खत्म हो गया है. ऐसे में अब यह स्पेसक्राफ्ट मंगल ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाने के लिए निर्धारित कक्षा से बाहर हो जाएगा. सूत्रों के मुताबिक, इसरो ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि मंगलयान (Mangalyaan) से कनेक्शन टूट गया है और अब यह किसी काम का नहीं रहा.

रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलयान एयरक्राफ्ट में अब ईंधन नहीं बचा है. इसकी बैटरी भी अब पूरी तरह से खराब हो चुकी है. न्यूज़ एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से कहा है, 'पिछले कुछ समय से बार-बार ग्रहण लगे हैं. इसमें से एक ग्रहम तो साढ़े सात घंटे लंबा था. स्पेसक्राफ्ट में लगी बैटरियां किसी भी ग्रहण को सिर्फ़ एक घंटे 40 मिनट तक बर्दाश्त र सकती हैं. ग्रहण का समय ज़्यादा होने से बैटरियां जल्दी खराब हो जाती हैं.'

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छह महीने का मिशन आठ साल चला 
वैसे भी यह मिशन तय लक्ष्य से ज़्यादा काम पहले ही कर चुका है. इसे छह महीने तक मंगल ग्रह का चक्कर लगाने के लिए तैयार किया गया था लेकिन यह आठ साल से ज़्यादा समय तक काम करता रहा. आपको बता दें कि साल 2013 में इसे PSLV-C25 की मदद से लॉन्च किया गया था. इसके पीछे भारत ने सिर्फ़ 450 करोड़ रुपये खर्च किए थे जो कि पूरी दुनिया का सबसे सस्ता मिशन बन गया था.

ईंधन खत्म होने के बाद क्या होगा?
सबसे पहले तो यह जानना ज़रूरी है कि अंतरिक्ष में भेजे गए स्पेसक्राफ्ट या सैटलाइट घूमना बंद नहीं करते. इनके चक्कर लगाने के लिए किसी ईंधन की ज़रूरत नहीं होती है. प्रोपेलेंट का इस्तेमाल खास तौर पर मिशन को किसी दिशा में मोड़ने या अचानक उसकी रफ़्तार में कुछ बदलाव करने के लिए किया जाता है. मंगलयान जैसे एयरक्राफ्ट पर लगाई गई डिवाइसों जैसे कि कैमरे और सेंसर को चलाने के लिए इनमें बैटरियां लगाई जाती हैं. इन बैटरियों को चार्ज करने के लिए सोलर पैनल लगे होते हैं. हालांकि, जैसा कि आप जानते ही होंगे कि हर बैटरी की एक सीमा होती है. कुछ सालों के बाद ये बैटरियां खराब हो जाती हैं.

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मंगलयान में लगी बैटरियां भी अब लगभग 9 साल पुरानी हो चुकी हैं. ऐसे में इस पर लगाए गए सभी पांचों डिवाइसों ने काम करना बंद कर दिया है. कम्यूनिकेशन के लिए लगाया गया सिस्टम भी अब काम नहीं कर पाएगा क्योंकि उसके लिए भी बैटरियों की ज़रूरत होगी. ऐसे में यह मंगलयान, मंगल ग्रह के चारों ओर चक्कर तो काटता रहेगा लेकिन इसका कोई इस्तेमाल नहीं होगा.

पांच डिवाइसों से लैस था मंगलयान
इस स्पेसक्राफ्ट में पांच अहम उपकरण लगाए गए थे ताकि मंगल ग्रह के मौसम, खनिज पदार्थों की उपलब्धता और उसकी संरचना के बारे में जानकारी जुटाई जा सके. इसमें मार्स कलर कैमरा (MCC), थर्मल इन्फ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर (TIS), मीथेन सेंसर फॉर मार्स (MSM), मार्स एग्जोफेरिक न्यूट्रल कॉम्पोजीशन ऐनलाइज़र (MENCA) और लाइमैन अल्फा फोटोमीटर (LAP) को भेजा गया था.

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खत्म हो गया मंगलयान का 'तेल', अब काम करेगा या नहीं? जानिए सब कुछ
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