वर-वधू का ब्लड ग्रुप एक जैसा नहीं होना चाहिए. कहते हैं इससे प्रेंग्नेंसी रिलेटेड दिक्कतें आती हैं. इसके अलावा कहा जाता है कि बच्चे के जन्म के बाद उसमें कुछ असामान्यता हो सकती है. लव मैरिज अब खूब होते हैं और प्यार करते वक्त कुंडली या ब्लड ग्रुप नहीं देखा जाता है. तो अगर उनका ब्लड ग्रुप एक ही है तो क्या उन्हें शादी कर लेनी चाहिए? क्या इसका असर आगे चलकर बच्चे पर पड़ेगा? लेकिन इन सबमें कितनी सच्चाई हैआइए जानते हैं .
शादी से पहले दूल्हे का ब्लड टेस्ट कराना जरूरी होता है. क्योंकि अगर आपके खून में कोई समस्या है तो इसका पता पहले ही चल जाता है. इसके अलावा, एचआईवी पॉजिटिव है या अन्य यौन संचारित रोगों से संक्रमित है जैसे सवालों के भी जवाब दिए जाते हैं. इसलिए शादी से पहले दूल्हे को खून की जांच करानी चाहिए.
रही बात ब्लड ग्रुप सेम होने से प्रेग्नेंसी में क्या असर पड़ता है तो जान लें इसका कोई असर नहीं होता है. लेकिन अगर महिला का ब्लड ग्रुप A+ है और पति का A- है तो गर्भावस्था के दौरान कुछ परेशानियां हो सकती हैं.
यदि बच्चे को पिता से ए-फैक्टर विरासत में मिलता है, तो बच्चे में आरएच असंगतता नामक बीमारी विकसित हो सकती है. इसके अलावा, यदि पहली गर्भावस्था में बच्चे का रक्त प्रकार सकारात्मक है, तो उसकी रक्त कोशिकाएं प्रसव के दौरान मां के रक्तप्रवाह में प्रवेश करती हैं. इससे मां की प्रतिरक्षा प्रणाली बच्चे के रक्त के खिलाफ कुछ एंटीबॉडी का उत्पादन करने लगती है. जिससे गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की असामान्यता और गर्भपात जैसी गंभीर समस्याओं की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
लेकिन जेनेटिक बीमारियों से बच्चे को बचाने के लिए हर जोड़ों को अपना ब्लड ग्रुप शादी से पहले जरूर मिलवा लेना चाहिए.
(Disclaimer: यह लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है. इस पर अमल करने से पहले अपने विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लें.)
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पति-पत्नी का ब्लड ग्रुप एक नहीं होना चाहिए, क्या प्रेग्नेंसी में आती है दिक्कत?