हिमांशु सिंह सेंगर

मेरी उचटी हुई नींद के सपनों के फ़्लैशबैक, तुम शायद मेरी जागती हुई आंखों के ख्वाब से नहीं मिले हो .

 

मैं जब सोने लगता था तो ऐसा लगता था कि गली में बारिश का पानी घुटनों तक आ गया है और सब अपने घरों में जा रहे हैं . मैं सड़क पर इतना गड़ चुका था कि हिल भी नहीं पा रहा था और अचानक से मैंने अपने आप को समुन्दर के बीच पर दूर उठती लहरों  के डर में लिपटा हुआ पाया . डर बढ़ता जा रहा था और महसूस हो रहा था कि लहरों की ऊंचाई जब अपने क़द से बढ़ जाये तो पानी की आवाज़ कान चीरने लगती है . लहरें ऊंची उठी ही थीं कि कानों में "हैलो-हैलो" गूंजने लगा . सिर के ऊपर जाती हुई लहरों का पानी जब आंखों से नीचे उतरा तो किसी वेव पूल का धुंधला-धुंधला जाता हुआ पानी दिखाई देने लगा और नींद खुलने लगी . मैं बात करते करते सोया था और डूबने लगा था . उसने डूबने की आखिरी हद तक इंतज़ार किया और अंत में खींच लाई मुझे .

 

मैं जागती हुई आंखों के ख्वाब में उसके सीने पर सिर रखकर उसकी कलाई का कंगन गिन रहा था .

मेरी जागती आंखों के ख्वाब में उसने मेरा कांपता सिर जकड़ रखा था .

मैं अंधेरे की हद देखना चाहता था उसने शर्त में अपने हाथ पकड़ाए मुझे और मैं उसकी आंखें देखता रहा .

वो आंखों से बोलती थी और उसकी आंखें हंसती थीं .

मेरी जागती आंखों का ख्वाब टूटा, मैं फिर अंधेरे से बाहर उसकी कलाई के कंगन गिन रहा था .

मेरी उचटी हुई नींद के सपनों के फ्लैशबैक, मैं डूबता हूं समुन्दर की लहरों में पर अब वो वेव पूल की लहरों में नहीं बदलतीं और मैं डूबता ही चला जाता हूं  .

मेरी उचटी हुई नींद के सपनों के फ्लैशबैक, मैं अब जब अंधेरे में जाता हूं तो बस चलता ही चला जाता हूं, उसका हाथ दिखता तो है लेकिन दूर जाता हुआ, उसकी आंखें दिखती तो हैं मगर बोलती नहीं हैं, उसके कंगन टूटे हुए दिखते हैं .

मेरी उचटी हुई नींद के सपनों के फ्लैशबैक, जिन अंधेरों से बाहर लाकर उसने मुझे बनाया था, मैं अब उन अंधेरों में रहने ही लगा हूं . मैं जागती आंखों के सपने नहीं देखता, अब चाह के भी तुम्हें उनसे नहीं मिला सकता .

 

मैं अब सिर्फ उचटी हुई नींद का ही सपना देखता हूं,

मेरी उचटी हुई नींद के सपनों के फ़्लैशबैक,

मेरी उचटी हुई नींद के सपनों के फ्लैशबैक.......

(हिमांशु सिंह सेंगर  बलिया के रहने वाले हैं और नवसारी, गुजरात में जॉब करते हैं. पेशे से सिविल इंजीनियर हैं. यह उनकी डायरी का हिस्सा है जो उनकी अनुमति से डीएनए हिंदी पर प्रकाशित हुआ है. )

 

 

 

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dairy on Dream at DNA Hindi by Himanshu Singh Sengar
Short Title
Diary : उचटी हुई नींद के सपनों के फ़्लैशबैक
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Hindi
Tags Hindi
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