डीएनए हिंदी: भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी मुमताज के बेहतरीन प्रदर्शन की बदौलत टीम दूसरी बार जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप (Junior Hockey World Cup) की अंतिम चार क्वाविफाई करने वाले टीमों में जगह बना चुकी है. मुमताज की इस सफलता के पीछे उनकी मां कैसर जहान का संघर्ष है. जूनियर विश्व कप के क्वार्टर फ़ाइनल में दक्षिण कोरिया पर भारत की 3-0 से जीत के लिए मुमताज ने एक बेहतरीन मोमेंटम सेट किया था लेकिन लखनऊ में सब्जी बेचकर घर चलाने वाली मुमताज की मां इस मैच को व्यस्तता के कारण ना देख सकीं.
मुमताज ने किया बेहतरीन प्रदर्शन
मुमताज को प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया था. मुमताज मैच ना देख पाने और काम के कारण व्यस्तता को लेकर कैसर ने कहा, " मैं उसे गोल करते हुए देखना चाहती थी लेकिन मुझे काम भी करना है. मुझे यकीन है कि भविष्य में उसे देखने के और भी मौके मिलेंगे." मुमताज ने अब तक भारत के विजयी अभियान के चार मैचों में चार जीत दर्ज करते हुए एक बड़ा योगदान दिया है. आम तौर पर जूनियर स्तर के खिलाड़ियों को खेल के दौरान अधिक संघर्ष करना पड़ता है लेकिन मुमताज ने उन संघर्षों से ऊपर उठकर एक बेहतरीन प्रदर्शन किया है.
मां नहीं देख पाईं बेटी का मैच
प्रतियोगिता में अब तक छह गोल के साथ मुमताज तीसरी सबसे ज्यादा गोल करने वाली खिलाड़ी हैं. वह वेल्स के खिलाफ भारत के शुरुआती मैच में स्कोर-शीट पर थी, उन्होंने प्री-टूर्नामेंट में पसंदीदा जर्मनी के खिलाफ विजयी गोल किया और मलेशिया के खिलाफ सनसनीखेज हैट्रिक बनाई थी. शुक्रवार को जब उनकी मां बाहर काम कर रही थी तो उस दौरान ही मुमताज की पांच बहनें लखनऊ में अपने घर पर मोबाइल स्क्रीन पर मैच को ट्रैक कर रही थीं और उसके पिता हाफिज मस्जिद में थे. मुमताज की बहन फराह ने कहा कि कुछ लोगों ने मुमताज के खेलने पर परिवार खूब ताने मारे थे लेकिन आज वे लोग अपनी खुशी बयां नहीं कर पा रहे हैं.
अपने से वरिष्ठ खिलाड़ियों को दी थी मात
मुमताज की बचपन के कोचों में से एक नीलम सिद्दीकी ने कहा, "उनके पास वह गति और ऊर्जा थी जो हमें लगा कि हॉकी में काम आएगी. हमें लगा कि अगर वह हॉकी कौशल को अच्छी तरह समझ लेती है तो वह एक बहुत अच्छी खिलाड़ी बन जाएगी." उन्होंने कहा, "मुमताज़ मुश्किल से 13 साल की थी और तब तक वह केवल कुछ ही बार अपनी स्कूल टीम के लिए खेली थी. हमने उसे कुछ वरिष्ठ खिलाड़ियों के साथ मैच में रखा, यह देखने के लिए कि वह कैसी प्रतिक्रिया देती है. वह बहुत निडर थी और उसने बहुत अच्छे चकमा दिया. हमने उसे छात्रावास के लिए चुना और उसी क्षण से, उसने भारत के लिए खेलने का सपना देखना शुरू कर दिया."
मुमताज ने उस सपने का पीछा करना शुरू किया तो दूसरी ओर उनके परिजन उत्साहित और चिंतित दोनों था. बहन फराह ने कहा, "मुमताज के जन्म से पहले हमारे पिता साइकिल-रिक्शा चलाते थे. मेरे मामा ने देखा कि वह नौकरी के लिए बूढ़े और कमजोर हो रहे थे, इसलिए उन्होंने हमें एक सब्जी की गाड़ी स्थापित करने में मदद की, जिसे मेरी माँ आज भी चलाती हैं." वहीं बहन शिरीन ने कहा, "ठेले से होने वाली आय बमुश्किल छह लड़कियों के दैनिक खर्च और स्कूल की फीस का भुगतान करने के लिए पर्याप्त थी. परिवार हॉकी किट भी नहीं खरीद सकता था. शुक्र है, उसके कोचों ने उसकी मदद की थी.
मेहनत के दम पर हासिल किया मुकाम
वहीं कोच सिद्दीकी का कहना है कि मुमताज की प्रतिभा को निखारने के लिए उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी और उनके पास ही बेहद प्रतिभा थी जिसके चलते वो जल्दी ही सफलताएं मिलने लगीं. वह युवा ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली नौ में से एक थी जहां खेल का पांच-ए-साइड संस्करण खेला गया था. बड़ी बहन फराह ने कहा, "जब उसने वह पदक जीता, तो ऐसा लगा कि ईद हमारे लिए जल्दी आ गई है. इस बार भी ऐसा ही महसूस हो रहा है."
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रविवार को भारत का मुकाबला नीदरलैंड से है. सभी लोग मैच देखेंगे लेकिन एक बार फिर मां अपनी बेटी को मैच खेलते नहीं देख पाएंगी क्योंकि वो उस समय ठेले पर सब्जी बेचती हैं और जिससे पूरे परिवार का पेट भरा जाता है. यकीनन मां के इन्हीं संघर्षों के दम पर मुमताज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर न केवल अपनी मां का बल्कि पूरे देश का नाम ऊंचा कर रही है.
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