डीएनए हिंदी: दिल्ली यूनिवर्सिटी के राजधानी कॉलेज में बुधवार को "काव्यांजलि: रचनात्मक लेखन समिति" द्वारा 'सृजन' नाम से काव्य सम्मेलन का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में कॉलेज के प्राचार्य प्रो. राजेश गिरि ने तुलसी, कबीर, रसखान, रहीम का जिक्र करते हुए कहा कि इंसान को इंसान बनाने का काम कविता भी करती है. इन्होंने विज्ञान के इस बोलबाला वाले युग में काव्य संस्कार को आवश्यक बताया.
कार्यक्रम में सबसे पहले कवि डॉ. प्रवीण कुमार अंशुमान ने समां बांधा. उन्होंने एक के बाद एक बेहतरीन कविताएं सुनाईं. उन्होंने जनाब ये आज की नई पीढ़ी है..., 'मुहब्बत से मत कर गुरेज..' और रोमांस कविता सुनाई. अगले कवि डॉ वेद मित्र शुक्ल ने "उम्मीद है, कविताएं है, उसने बड़ी मन से लिखी होगी", घर की किमत और मिट्टी मौसम आंखें नम है..." से महफिल को चार चांद लगाए.
कार्यक्रम में अंग्रेजी की प्रोफेसर वर्षा गुप्ता ने कहा, "कविता विधा बहुतेरे लोगों को वैसे ही आकर्षित करती हैं जैसे फूलों के रंग और सौंदर्य, तितलियों की खूबसूरती, नदियों का संगीत, झरने का मधुर नाद, कविता इन्हें प्रकृति का विशिष्ट अंग लगती है, दुनिया में मौजूद संरचनागत त्रास के बावजूद प्रकृति के ये तत्व इन्हें जीवन ऊर्जा भी देते हैं और संसार को खूबसूरत बनाने का स्वप्न भी"
उन्होंने आगे कहा कि अक्सर सवाल पूछा जाता है कि कविता क्यों करते हो? खुद इसका जवाब देते हुए कहा कि क्या कभी किसी ने पूछा है गुलाब तुम क्यों खिलते हो, नदी तुम क्यों बहती हो. उन्होंने कविता को सभ्यता के विकास के साथ व्याख्यायित करते हुए भवभूति से धूमिल तक को याद किया और दुहराया कि कविता भाषा में इंसान होने की तमीज है. उन्होंने कविता के साथ कला और संस्कृति कर्म की प्रासंगिकता, उपादेयता और महत्ता पर प्रकाश डालते हुए इसे मनुष्य जीवन के लिए जरुरी बताया।
कार्यक्रम में अर्चना शर्मा ने "मैं तुम्हें याद आती हूं कि नहीं...", "मेरी कविता मुझे रात भर जगाती है...", "मेरे साहिब तू मुझे अमृता बनाके छोड़ेगा" जैसी कई अद्भुत कविताएं सुनाईं. डॉ संजीव कुमार व्यासी ने ग्रीन,मास्क और ट्रुथस इन मार्केट शीर्षक नाम से कविता पढ़ी. काव्य सम्मेलन में डॉ जसवीर त्यागी, संजय कुंदन, विमल कुमार सहित कई अन्य कवियों ने भी शिरकत की.
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