दिल्ली के जनकपुरी का रहने वाला लड़का आज दुनिया में देश का नाम रोशन कर चुका है. हर तरफ बस एक ही नाम की चर्चा है और वह नाम है- यश ढुल. अंडर-19 वर्ल्ड कप टीम के कप्तान के रूप में यश ने भारत को रिकॉर्ड 5वीं जीत दिलाई और सुर्खियों में छा गए. इन्हीं सुर्खियों में सामने आता है यश ढुल का संघर्षों भरा सफर-
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यश ढुल ने 12 साल की उम्र से क्लब क्रिकेट में अंडर-14 क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. यह सिर्फ आमतौर पर खेलना नहीं था, यश में क्रिकेट का जुनून था और यह जुनून उनके पिता ने देख लिया था. बस बेटे का जुनून देखा और ठान लिया कि उसे क्रिकेटर बनाना है. यश की इस उपलब्धि में उनके पिता का भी अहम रोल है क्योंकि उन्होंने बेटे को खेल सिखाने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी.
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पिता के नौकरी छोड़ने के बाद परिवार पूरी तरह दादा की पेंशन पर निर्भर थे. यश धुल के दादा भारतीय सेना से रिटायर हैं. उन्होंने बेटे का ध्यान क्रिकेट से ना हटे इसे लेकर यश के साथ खुद भी कड़ी मेहनत की. हालांकि साथ ही वह पार्ट टाइम काम भी करते रहे, मगर लक्ष्य से नजर नहीं हटने दी.
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अंडर-14 के बाद अंडर-16 में जब यश शामिल हुए तो उन्होंने पंजाब के खिलाफ 185 रनों की धमाकेदार पारी खेली. यह वह पल था जब यश के नाम को पहचान मिलने लगी. वह और भी जी-जान से क्रिकेट के अपने हुनर को धार देने में जुट गए. फिर इस मेहनत और लगन पर पड़ी कोरोना की मार
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साल 2020 में कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते सभी क्रिकेट मैदान बंद हो गए. ऐसे में यश की प्रैक्टिस रुकने ही वाली थी कि पिता ने इसका भी जुगाड़ ढूंढ निकाला. उन्होंने घर की छत पर नेट लगवा दिए. यहां यश प्रैक्टिस करते और उनके पिता वीडियो के जरिए कोच से शेयर करते.
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यश की कामयाबी उनके पूरे परिवार की तपस्या और लगन का नतीजा है. वह अंडर-19 वर्ल्ड कप में कोरोना पॉजिटिव भी हो गए थे, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. टीम इंडिया को फाइनल तक का सफर तय करवाया और जीत का एक और खिताब देश के नाम किया.
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बेशक यश की कहानी विराट कोहली से काफी मिलती-जुलती है, लेकिन जब उनसे पूछा जाता है कि वह किसे आदर्श मानते हैं तो वह कोई नाम नहीं लेते. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि जो भी खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलता है वह उनके लिए हीरो है. उन्होंने कहा था- मैं किसी की नकल नहीं करता, लेकिन हर किसी की खूबी का बारीकी से पालन करता हूं.