एक ऐसे परिवार में जन्म हो जहां खाने को रोटी भी मुश्किल से नसीब होती हो, वहां कोई भी बच्चा सपने कैसे देखेगा? अगर देखेगा तो सपने में रोटी के अलावा और क्या ही देखेगा! भारतीय धावक दुती चंद की कहानी भी उस बच्चे जैसी ही है. मगर उन्होंने इस कहानी को अपने तरीके से लिखा औऱ उसमें सफलता के ऐसे पन्ने जोड़े, जो अब इतिहास की किताब भी दर्ज हो चुके हैं. दुती चंद कल यानी 3 फरवरी को 26 साल की हो जाएंगी. उनके जन्मदिन के मौके पर जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़ी ऐसी बातें, जिनसे संघर्ष और समर्पण की गहरी खुशबू आती है-
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ओडिशा के जाजपुर में एक बेहद गरीब परिवार में दुती चंद का जन्म हुआ था. पिता कपड़ा बुनने का काम करते थे और महीने में 500 रुपये ही कमा पाते थे. इतनी आमदनी में बड़े परिवार को पाल पाना मुश्किल था. आलम ये था कि दुती के परिवार को रोज खाने के लिए संघर्ष करना पड़ता था. एक इंटरव्यू में दुती ने बताया था कि उन्होंने अपनी पहली रेस ही रोटी के लिए लगाई थी.
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जब दुती ने दौड़ना शुरू किया तो लोग उन्हें ताना मारते थे कि ये भला क्या दौड़ेगी. दुती ने कहा कि लोग कहते थे कि तुम दौड़ोगी तो तुम्हारे पीछे केवल कुत्ते दौड़ेंगे. लेकिन लोगों के ये ताने दुती को तोड़ते नहीं थे बल्कि उसे हमेशा हिम्मत देते थे कुछ कर जाने की.
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दुती ने जब दौड़ना शुरू किया तो उनके पास न तो जूते था और न ही दौड़ने के लिए कोई मैदान. उन पर लिखी गई एक किताब में इससे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा भी है. लिखा है,'साल 2005 की बात है. तब पहली बार उनके हाथ में सफेद रंग के चमचमाते हुए स्नीकर आए थे. कई दिन तक उनकी हिम्मत नहीं हुई कि वो जूते पहनें.पहली बार अपनी एक रेस के लिए दुती ने वो जूते पहने और इस नजाकत से पहने जैसे कांच का कोई खूबसूरत खिलौना हो. दुती किसी कीमत पर जूतों को खराब नहीं करना चाहती थीं. रेस खत्म होने के बाद उन्होंने बेहद सफाई के साथ वो जूते अपनी अलमारी के लॉकर में रख दिए और फिर अपने स्कूल भी नंगे पैर ही गईं, ताकि जूते खराब न हो जाएं.
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साल 2019 में दुती ने अपने बारे में ऐसा खुलासा किया जिससे हर तरफ हैरानी छा गई. उन्होंने पूरी दुनिया के सामने यह बात मानी थी कि वह समलैंगिक हैं और उनका उनकी ही गांव की एक लड़की के साथ रिलेशन है. इस बात के लिए उन्हें सब जगह से ताने झेलने पड़े थे. यहां तक कि दुति का परिवार भी उन्हें उनकी साथी के साथ रहने से इंकार कर रहा था. दुती की जिंदगी में उनकी बहन सरस्वती उनकी प्रेरणा रही हैं. सरस्वती ने ही दुती को धाविका बनने की राह दिखाई. लेकिन उनके समलैंगिक होने के कुबूलनामे के बाद उनकी बड़ी बहन सरस्वती भी उनसे नाराज हो गई थीं.
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आईएएफ़ का एक नियम था जो अब संशोधित किया जा चुका है. इस नियम के मुताबिक़, जिस महिला धावक में मेल सेक्स हार्मोन जैसे टेस्टोस्टेरॉन की मात्रा ज़्यादा पाई जाती थी तो उसे हार्मोन ट्रीटमेंट के लिए कहा जाता था. उनके मुताबिक टेस्टोस्टेरॉन की ज़्यादा मात्रा से इस खेल में बेहतर धावक होने की क्षमता बढ़ जाती है. इस टेस्ट को फ़ीमेल हाइपरएंड्रोजेनिज्म कहते हैं. जब दुती के ख़ून की जांच हुई तो वह इस टेस्ट में फ़ेल हो गईं और उनमें मेल सेक्स हार्मोन की मात्रा ज़्यादा पाई गई. इस पर आईएएफ ने उन्हें ट्रीटमेंट कराने की सलाह दी और वह 2014 के राष्ट्रमंडल खेल और एशियन गेम्स में नहीं खेल पाईं.
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इसके बाद उन्होंने अदालत में लड़ने का फ़ैसला किया. स्विट्जरलैंड के कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स में उन्होंने केस किया. 2015 में ये केस जीता और अब 100 मीटर रेस पर ये नियम लागू नहीं होता. लेकिन केस जीतने से पहले तक दुती को बहुत अपमान झेलना पड़ा था. बीते दिनों आई फिल्म रश्मि रॉकेट की कहानी भी दुती चंद की जिंदगी से मिलती-जुलती बताई जाती है.
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दुती चंद के रिकॉर्डों की फेहरिस्त काफी लंबी है. दो बार की ओलिंपियन और मौजूदा राष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक, दुती चंद 2013 से भारतीय एथलेटिक्स के लिए एक इंजन रही हैं, जिनसे प्रेरित होकर कई युवा देश के लिए रेस दौड़ने का सपना देख रहे हैं. दुती चंद ने साल 2019 में इटली के नेपल्स में हुए वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में इतिहास रचा था, वह इस ग्लोबल मीट में हुई 100 मीटर स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय बनीं थीं. इतना ही नहीं, 2018 के जकार्ता एशियन गेम्स में 100 और 200 मीटर में रजत पदक भी उनके खाते में दर्ज है. एशियन चैंपियनशिप में दुती चंद के नाम चार कांस्य पदक दर्ज हैं. 2013 में पुणे में उन्होंने 200 मीटर में कांस्य जीता तो 2017 में भुवनेश्वर में सौ मीटर व चार गुणा चार सौ मीटर का ब्रॉंज अपने नाम किया. वहीं 2019 में दोहा में 200 मीटर का कांस्य पदक जीता. दुती चंद आठ बार की राष्ट्रीय चैंपियन भी रह चुकी हैं. इतना ही नहीं, 2016 के रियो ओलिंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई करके वह ओलिंपिक में महिलाओं की 100 मीटर रेस में भाग लेने वाली देश की तीसरी एथलीट बनीं.