टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और 1983 वर्ल्ड कप विजेता टीम के सदस्य दिलीप वेंगसरकर को उनके साथी क्रिकेटर कर्नल नाम से बुलाते थे. वेंगसरकर को क्लासिक बल्लेबाजों में गिना जाता है और उनकी शख्सियत भी खासी रौबदार थी. 1983 वर्ल्ड कप विजेता टीम के सदस्य भी रहे थे. जन्मदिन पर जानें उनकी जिंदगी के कुछ कहे-अनकहे किस्से.
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मौजूदा दौर में टीम इंडिया के पूर्व कप्तान विराट कोहली को रन मशीन के नाम से जाना जाता है. हालांकि, कोहली के आने और टी-20 क्रिकेट से भी बहुत पहले भारत की पहली रन मशीन दिलीप वेंगसरकर ही थे. वेंगसरकर ने अपने टेस्ट करियर में खेले 116 मैचों में करीब 42 की औसत से 6868 रन बनाए थे, जिसमें 17 शतक भी शामिल थे.
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टेस्ट मैचों में 42 के औसत से रन बनाए थे. 80 के मध्य के दौर में लगातार तीन साल तक दुनिया के बेस्ट बैट्समेन की लिस्ट में टॉप पर रहे थे. इंडियन टेस्ट टीम की कप्तानी की और दूसरे इंडियन प्लेयर बने जिसने 100 टेस्ट मैच खेले थे. दिलीप वेंगसरकर को 1981 में अर्जुन अवॉर्ड मिला. साथ ही इंडियन क्रिकेट में अपने योगदान के लिए भारत की सरकार ने उन्हें पद्मश्री भी दिया था.
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वानखेड़े स्टेडियम में 1994-95 में चल रहे मुंबई और पंजाब के मैच में वेंगसरकर बैठे मैच देख रहे थे. तब इन्होंने रिटायरमेंट ले लिया था. दिलीप वेंगसरकर प्रेस बॉक्स में बैठे हुए थे और कुछ दर्शक उन्हें परेशान कर रहे थे. थोड़ी देर बर्दाश्त करने के बाद वह स्टैंड से कूदकर उस तरफ गए और उन्होंने दौड़कर दर्शकों को पकड़ लिया था. कहते हैं कि उनमें से एक दर्शक को उन्होंने पकड़कर तमाचा भी रसीद कर दिया था.
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साल 1974 में फास्ट बॉलर पांडुरंग सलगांवकर इंडियन डोमेस्टिक सर्किट में कहर ढा रहे थे. उनकी गेंद पर गुंडप्पा विश्वनाथ और मंसूर अली खान पटौदी भी आउट हो चुके थे. ऐसे में 18 साल के दिलीप वेंगसरकर बल्लेबाजी करने उतरे और उस इनिंग में वेंगसरकर ने 86 रन बनाए थे. उनकी बेखौफ पारी को देखकर कॉमेंट्री कर रहे लाला अमरनाथ ने दिलीप वेंगसरकर की तुलना कर्नल सीके नायडू से कर डाली थी. आगे चलकर इसी वजह से वेंगसरकर को ‘कर्नल’ कहा जाने लगा.
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1990–91 में वेंगसरकर एक रणजी ट्रॉफी मैच का फाइनल खेल रहे थे. उनका बल्ला जमकर बोल रहा था. उन्होंने शतक पूरा किया और उनकी टीम एक मजबूत स्थिति में पहुंच गई थी. इस बीच 139 के निजी स्कोर पर वेंगसरकर अपना विकेट खो बैठे और यह मैच का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ था. जीता हुआ मैच उनकी टीम के हाथ से निकल गया था. कहते हैं कि इस हार से वेंगसरकर इतने भावुक हो गए कि वह ड्रेसिंग रूम में फफककर रो पड़े थे.