जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं तो अपनी तकलीफ बताने के लिए आपके पास अमूमन दस मिनट का ही समय होता है. इसी छोटे से वक्त में आपको बीमारी के लक्षण, उसका समय, पहले किए गए उपाय और मन की उलझनें बतानी होती हैं. एक अनुमान के मुताबिक सही तरीके से बीमारी ना बता पाने के कारण हर साल दस हजार लोगों का समय रहते इलाज नहीं हो पाता है. यानी जितना जरूरी है अच्छा डॉक्टर उतना ही जरूरी है कि मरीज भी अच्छा हो. दस मिनट की आपकी वो मुलाकात बिलकुल मुकम्मल होनी चाहिए ताकि सही इलाज हो और समय रहते इलाज हो. ये हैं इससे जुड़े मंत्र-
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डॉक्टर के पास बिना प्लानिंग किए मत पहुंचें. पहले उन सवालों की सूची बनाएं जो आपकी समस्या को लेकर हैं. बीमारी के लक्षण कब दिखने शुरू हुए, ये समस्या कब से है. इससे पहले आपने इस समस्या के लिए क्या क्या उपाय किए हैं. इस प्लानिंग के साथ डॉक्टर के पास जाइए, ताकि दस मिनट का एक भी पल बर्बाद ना हो.
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डॉक्टर को शुरुआत से लेकर अब तक की पूरी कहानी बताएं. सबसे पहले तकलीफ कब हुई थी, उसके बाद क्या क्या हुआ, कौन कौन से टेस्ट हुए, कितना सुधार हुआ. किसी भी बीमारी का इलाज ढूंढने में 80 प्रतिशत मदद सिर्फ हिस्ट्री से ही मिलती है. 20 प्रतिशत काम करती है डॉक्टर की एग्जामिनेश और मेडिकल टेस्ट.
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बाहर बैठे मरीजों की लाइन को देखते हुए कोई भी डॉक्टर आपको दस मिनट से ज्यादा समय नहीं दे पाता है. इसलिए अपनी समस्याओं को प्राथमिकता से तय करें. यानी जिस बात से सबसे ज्यादा तकलीफ हो उसे पहले बताएं.
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सबसे बड़ी समस्या को बताने के बाद दूसरी बातों के बारे में बताएं. अगर परिवार में या दोस्तों में कोई औऱ भी इसी समस्या से गुजर रहा है, तो इस बारे में सवाल पूछें. इससे डॉक्टर को आपकी समस्या को समझने का आसान क्लू मिल जाएगा.
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याद रखें इंटरनेट पर हर जानकारी तो है, लेकिन इंटरनेट डॉक्टर नहीं है. कुछ लोग हल्की-फुल्की तकलीफ में किसी साइट पर लिखे परामर्श को ही डॉक्टरी इलाज समझने लगते हैं और अपने लक्षण लिखकर उपाय ढूंढते हैं. ये एक अच्छा मरीज होने के लक्षण बिलकुल नहीं हैं.
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अगर लक्षण वैसे के वैसे ही रहते हैं तो उन्हें नजरअंदाज मत करिए. बिना किसी झिझक के वही समस्या लेकर आप दोबारा उसी डॉक्टर के पास जाएं. इससे डॉक्टर को भी आपकी समस्या की पूरी पिक्चर बनाने में मदद मिलेगी.