डीएनए हिंदी: महाराष्ट्र की राजनीति में चल रहा विवाद अब शिवसेना का चुनाव चिह्न सीज होने तक पहुंच गया है. चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे दोनों ही गुटों को चुनाव चिह्न 'धनुष और तीर' का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी है. अब कोई भी गुट इस चुनाव चिह्न का इस्तेमाल नहीं कर सकता है. अब चुनाव आयोग ने दोनों गुटों को तीन-तीन नामों का विकल्प लाने को कहा है. इनमें से उन्हें अलग-अलग सिंबल दिया जाएगा. ऐसा पहली बार नहीं है कि जब किसी पार्टी में विवाद होने पर उसका चुनाव चिह्न सीज हुआ हो या बदलने की स्थिति पैदा हुई है. राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों से लेकर क्षेत्रीय पार्टियों तक कई बार ऐसे मौके आए हैं जब पार्टी के चुनाव चिह्न चुनाव आयोग ने जब्त किए हैं या ये चुनाव चिह्न बदले गए हैं.
चुनाव चिह्न और चुनाव आयोग
चुनाव चिह्न किसी भी पार्टी की पहचान होते हैं. आप हाथ देखते हैं तो कांग्रेस याद आती है, कमल देखते हैं तो बीजेपी, साइकिल देखते हैं तो सपा...ये चुनाव चिह्न की ही ताकत है कि एक छोटा सा निशान पूरी पार्टी की पहचान बन जाता है. ये चुनाव चिह्न पार्टी अपनी पसंद से चुनती है, मगर इस पर मुहर लगाने का काम करता है चुनाव आयोग. मुहर लगाने के साथ ही चुनाव आयोग के पास चुनाव चिह्नों को जब्त करने की भी ताकत होती है.
ये भी पढ़ें- 7 साल में लिखीं 10 लाख से ज्यादा चिट्ठी, PM Modi के नाम भी इनसे ख़त लिखवाते हैं लोग
आम तौर पर चुनाव आयोग के पास दो तरह की लिस्ट होती हैं. एक लिस्ट में वो चिह्न होते हैं जो किसी ना किसी पार्टी को दिए जा चुके है. दूसरी लिस्ट में ऐसे चिह्न होते हैं जो अभी किसी पार्टी के चुनाव चिह्न के रूप में इस्तेमाल नहीं हो रहे हैं. जब भी किसी पार्टी के चुनाव चिह्न को बदलने की स्थिति होती है तब इन्हीं दोनों लिस्ट के आधार पर चुनाव आयोग अपना फैसला देता है.
जब कांग्रेस का चिह्न 'हाथ' नहीं था और भाजपा को नहीं मिला था 'कमल'
ऐसे मिला था कांग्रेस को 'हाथ' का साथ
कांग्रेस को सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कहा जाता है. आज बेशक इसकी पहचान हाथ का निशान हो, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. सबसे पहले कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न दो बैलों की जोड़ी हुआ करता था. सन् 1969 में जब पार्टी में विभाजन हुआ तो ये चुनाव चिह्न जब्त कर लिया गया.इसके बाद पुरानी कांग्रेस को 'तिरंगे में चरखा' का निशान मिला तो नई कांग्रेस को 'गाय और बछड़े' का चुनाव चिह्न. आपातकाल के बाद सन् 1977 में नई कांग्रेस के चुनाव चिह्न गाय और बछड़े को चुनाव आयोग ने निरस्त कर दिया. इसके बाद सन् 1978 में इंदिरा गांधी ने पार्टी चुनाव चिह्न के रूप में पंजे के निशान को चुना.
बीजेपी में ऐसे खिला था 'कमल'
भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिह्न भी साल दर साल कई बार बदला. सन् 1951 से लेकर 1977 तक भारतीय जनसंघ का चुनाव चिह्न एक दीया हुआ करता था. यह जनसंघ जब बाद में अन्य पार्टियों के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी बनी तब इसका चुनाव चिह्न एक हलधर किसान बना. इसके तीन साल बाद जनता पार्टी की जगह बीजेपी ने ली तो इसके चुनाव चिह्न के तौर पर कमल को चुना गया.
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments

Story of changing party symbols in Indian Politics
शिवसेना का सिंबल फ्रीज, क्या आप जानते हैं कांग्रेस के 'हाथ' और बीजेपी के 'कमल' की कहानी