डीएनए हिन्दी: पिछले दिनों बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) के पैगंबर मोहम्मद (Prophet Muhammad) पर दिए विवादित बयान के बाद देश भर में बवाल मचा हुआ है. सोशल मीडिया में नूपुर के समर्थन में पोस्ट डालने पर अब तक दो लोगों का कत्ल हो चुका है. दोनों का कत्ल खास अंदाज में किया गया. उदयपुर में किए गए कन्हैयालाल की हत्या का हत्यारों ने वीडियो भी तैयार किया था. वीडियो के अंत में हत्यारों ने एक नारा दिया था, '...सर तन से जुदा' (sar tan se juda).
यह कोई नया नारा नहीं है. भारत में भी पिछले कुछ सालों में हम इस नारे को कई बार सुन चुके हैं. करीब 5 साल पहले जब लखनऊ के कमलेश तिवारी ने पैंगबर मोहम्मद को लेकर बयान दिया था तो उस वक्त देशभर में हमें यह नारा सुनने को मिला था. 'गुस्ताख-ए-रसूल की एक ही सजा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा.' उस वक्त पहली बार देश में यह नारा बड़े पैमाने पर सुनने को मिला.
अब सवाल उठता है कि यह नारा आया कहां से. किसने इसकी शुरुआत की? शब्दश: यह नारा पहली बार पाकिस्तान में लगा था. 2011 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर थे सलमान तासीर. सलमान तासीर की उनके ही गार्ड मुमताज कादरी ने हत्या कर दी थी. गवर्नर रहते हुए उन्होंने ईश निंदा कानून की आलोचना की थी. कट्टरपंथियों ने इसे पैगंबर की तौहीन करार दिया था.
उस समय पाकिस्तान में एक मौलाना थे खादिम हुसैन रिजवी (Khadim Hussain Rizvi). उन्होंने इस हत्या को जायज ठहराया था और हत्यारे मुमताज कादरी को 'गाजी' घोषित किया था. सलमान तासीर के बयान के बाद खादिम ने हजारों लोगों को इकट्ठा किया था. उस जलसे में में दो नारे लगे थे. पहला 'रसूल अल्लाह, रसूल अल्लाह' और दूसरा 'गुस्ताख ए रसूल की एक ही सजा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा.' इस नारे ने उस वक्त पूरे पाकिस्तान को अपने प्रभाव में ले लिया था. 2020 में खादिम हुसैन रिजवी की मौत हो गई लेकिन यह नारा अब भारत में भी कट्टरपंथियों के बीच लोकप्रिय हो रहा है.
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यह नारा अब सड़कों से आगे बढ़कर सोशल मीडिया पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. हमें ट्विटर पर 'सर तन से जुदा' हैशटैग देखने को भी मिला.
हालांकि, इस नारे के भाव को लेकर पाकिस्तानी मूल के लेखक तारेक फतेह अलग ही राय रखते हैं. तारेक फतेह कहते हैं भारत का मुसलमान आदर्श ही एक ऐसे व्यक्ति को मानता है जिसने सर्वधर्म की बात करने वाले अपने भाई का गला काट दिया था. भारतीय मुसलमान औरंगजेब की मजार पर चादर चढ़ाते हैं. उसे अपना आदर्श मानते हैं यानी वे दारा शिकोह की गर्दन काटने को सही ठहराते हैं. यह भारत का दुर्भाग्य है कि देश का कोई मुसलमान दारा शिकोह को याद नहीं करता लेकिन औरंगजेब को आदर्श मानता है. तारेक फतेह इसे ही पहला 'सर तन से जुदा' मामला मानते हैं.
तारेक फतेह इस समस्या का समाधान भी बताते हैं. उनका कहना है कि जिस दिन भारत के मुसलमान खुद को पहले भारतीय और बाद में मुसलमान मानने लगें, उस दिन यह समस्या खत्म हो जाएगी. यानी वह शरिया कानून को न मानकर भारतीय संविधान को प्राथमिकता दे.
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'...सर तन से जुदा', जानें, कहां से आया यह नारा और कैसे पूरे भारत में फैल गया