डीएनए हिन्दी: दिल्ली में बीजेपी (BJP) के लिए खतरे की घंटी बज गई है. एमसीडी (MCD) चुनाव के एग्जिट पोल (Exit Poll) के नतीजों पर भरोसा करें तो दिल्ली नगर निगम (Delhi Municipal Corporation) पर आम आदमी पार्टी का कब्जा होने जा रहा है. भले ही यह स्थानीय स्तर का चुनाव है, लेकिन इसका असर पूरे देश की राजनीति पर पड़ता है. देश की राजधानी होने की वजह से इसका मैसेज हर जगह जाता है.
सोमवार की शाम 6 बजे सभी एजेंसियों/न्यूज चैनलों के एग्जिट पोल के नतीजे आ गए. ज्यादातर एजेंसियां आम आदमी पार्टी को दो तिहाही बहुमत दे रही हैं. इंडिया टुडे/एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी को 149 से 171 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. वहीं, भारतीय जनता पार्टी को सिर्फ 69 से 91 सीटें मिल सकती हैं. कांग्रेस तो डबल डिजीट में भी पहुंचती नहीं दिख रही है. जन की बात भी आम आदमी पार्टी को 159 से 175 सीटें मिलने का अनुमान जता रही हैं. बीजेपी को 70 से 92 सीटें मिलने का अनुमान है. इस एजेंसी के भी एग्जिट पोल में कांग्रेस को 4 से 7 सीटें मिलती दिख रही हैं. ज्यादातर एजेंसियों का एग्जिट पोल कुछ ऐसा ही है. अगर कोई बड़ा उलटफेर न तो एमसीडी पर आम आदमी पार्टी का कब्जा होता दिख रहा है.
अभी तक दिल्ली नगर निगम तीन हिस्सों में बंटी हुई थी. नॉर्थ दिल्ली, ईस्ट दिल्ली और साउथ दिल्ली. हाल ही में केंद्र सरकार ने तीनों निगमों का एकीकरण किया है. दिल्ली में धमाकेदार अंदाज में सरकार बनाने के बाद एमसीडी पर आम आदमी पार्टी का कब्जा केजरीवाल के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी.
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ध्यान रहे कि 2015 में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने जबर्दस्त जीत दर्ज की थी. 70 सदस्यीय विधानसभा में केजरीवाल की पार्टी ने 67 सीटें हासिल की थीं. बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं. लगातार 15 सालों तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई. 2020 में कमोबेश वही स्थिति रही. इस बार केजरीवाल की पार्टी 70 में 62 सीटें जीतने में कामयाब रही. बीजेपी को 8 सीटों में संतोष करना पड़ा.
हाल ही में आम आदमी पार्टी ने पंजाब जैसे बड़े राज्य में दिल्ली की ही तरह धमाकेदार अंदाज में जीत हालिस कर सरकार बनाई है. यह देश की राजनीति में आम आदमी पार्टी का धीरे-धीरे फैलाव का संकेत है. एमसीडी चुनाव में जीत उसे राजनीति में एक नया पंख दे सकती है.
नरेंद्र मोदी जैसे करिश्माई नेता की मौजूदगी और राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह के नेतृत्व वाली बीजेपी को केजरीवाल की पार्टी ने खास रणनीति के तहत पटकनी दी. आइए हम विस्तार से समझते है एमसीडी की इस जीत के कारण और इसके क्या सियासी मायने होंगे.
बीजेपी नकारात्मक पब्लिसिटी के साथ इस चुनाव में उतरी. उसने अपनी उपलब्धियों को कम और केजरीवाल की पार्टी के भीतर के मुद्दों को उजागर करने पर ज्यादा जोर दिया. अपने संसाधनों का उपयोग कर वह दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन का वीडियो सामने लेकर आई. जिसमें दावा किया गया कि एक रेप आरोपी से सत्येंद्र जैन मसाज ले रहे हैं. यही नहीं आम आदमी पार्टी पैसे लेकर टिकट देती है इसका भी वीडियो वायरल किया गया. लेकिन, बीजेपी की रणनीति वोटर के गले नहीं उतर पाई.
वहीं, केजरीवाल की पार्टी ने आम लोगों की समस्याओं को मु्द्दा बनाया. लंबे समय से एमसीडी पर काबिज बीजेपी के खिलाफ एंटी-इन्कंबेंसी का असर था ही, साथ ही आम लोगों जुड़े मुद्दों ने केजरीवाल की पार्टी को नई उड़ान दी.
केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली में अपनी सरकार द्वारा किए गए काम पर लोगों से वोट मांगा. उसने गंदगी और साफ-सफाई को मुद्दा बनाया. चुनाव में कूढ़े का ढेर एक बड़ा मुद्दा बना. जल-जमाव और गंदगी से लोग खासे परेशान थे. ऐसे में बीजेपी बैकफुट पर दिखी. वह स्टिंग और वीडियो के सहारे चुनाव जीतना चाहती थी, जिसे जनता नकार दिया.
बीजेपी के स्टिंग को भी केजरीवाल की पार्टी ने मुद्दा बनाया. केजरीवाल की पार्टी जनता को यह समझाने में सफल रही कि बीजेपी ने एमसीडी में पिछले 15 सालों में कुछ नहीं किया इसीलिए वह स्टिंग को मुद्दा बना रही है.
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पिछले एमसीडी चुनाव में भी बीजेपी के प्रति लोगों का गुस्सा था. लेकिन, बीजेपी एक दांव चली थी. उसने सभी काउंसलरों के टिकट बदल दिए थे. जिससे एंटी-इन्कंबेंसी का असर कम हो गया था. इस बार भी बीजेपी ने कुछ हद तक उसी दांव को दोहराया. लेकिन, एक कहावत है ना 'काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती', कुछ ऐसा ही इस बार बीजेपी के साथ हुआ. जनता को लगने लगा कि बीजेपी के ज्यादातर नेता लोगों की समस्याओं में कम इंट्रेस्ट लेते हैं अपनी समस्या का ज्यादा समाधान करते हैं.
एक और चीज बीजेपी के विरोध में गई. हालांकि, यह समस्या शुरू है. जब से केजरीवाल की सरकार बनी है, तब से है. दिल्ली का उपराज्यपाल केंद्र सरकार द्वारा नियुक्ति किया जाता है. एक तरह से कहे तो केंद्र का प्रतिनिधि होता है. उपराज्यपाल और केजरीवाल सरकार का टकराव भी बीजेपी की लोकप्रियता के लिए घातक साबित हुआ. राज्यपाल की सिफारिश पर दिल्ली में शराब घाटाले के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए.
केंद्र सरकार की एजेंसियों ने इसको लेकर ताबड़तोड़ छापे मारे. उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर और दफ्तर में कई बार छापे मारे गए, लेकिन मिला कुछ नहीं. यह भी बीजेपी के लिए घातक साबित हुई.
7 दिसंबर को यह पता चल पाएगा कि इस बार दिल्ली की एमसीडी किसकी होगी.
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